सोशल संवाद / डेस्क :(सिद्धार्थ प्रकाश) बिहार की राजनीति हमेशा से अप्रत्याशित रही है, लेकिन हाल के वर्षों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का व्यवहार जिस तरह से अस्थिर नजर आया है, उसने एक नई बहस को जन्म दिया है। क्या यह महज उम्र और दबाव का असर है, या फिर कोई गहरी राजनीतिक साजिश रची जा रही है?
नीतीश कुमार का अस्थिर व्यवहार: सिर्फ संयोग या किसी साजिश का संकेत?
बीते दो-तीन वर्षों में, बिहार के मुख्यमंत्री के व्यवहार में असामान्य परिवर्तन देखे गए हैं। कभी वे विधानसभा में अप्रत्याशित बयान देते हैं, तो कभी सार्वजनिक मंचों पर उनकी बॉडी लैंग्वेज अस्वाभाविक नजर आती है।
नवंबर 2023: विधानसभा में महिलाओं की शिक्षा को लेकर एक विवादास्पद टिप्पणी, जिस पर तीखी आलोचना हुई।
जनवरी 2025: राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने दावा किया कि नीतीश मानसिक रूप से अक्षम हैं और अब उनके लिए मुख्यमंत्री बने रहना मुश्किल है।
मार्च 2025: सेपक टकराव विश्व कप 2025 के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रीय गान के दौरान उनका असामान्य व्यवहार विपक्ष के निशाने पर रहा।
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क्या नीतीश कुमार को राजनीतिक रूप से हेरफेर किया जा रहा है?
बिहार की सत्ता संतुलन बेहद नाजुक है। सवाल उठता है कि क्या कोई जानबूझकर नीतीश कुमार की छवि को खराब करने का प्रयास कर रहा है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनके विरोधी, विशेष रूप से आरजेडी के तेजस्वी यादव, इस स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश कर सकते हैं।
संभावित साजिश के संकेत:
चिकित्सकीय हेरफेर:
क्या उनकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करने के लिए दवाओं का उपयोग किया जा रहा है? उनके निजी सहायक और चिकित्सकीय टीम पर नजर रखने की जरूरत है।
मनोवैज्ञानिक दबाव:
लगातार गठबंधन परिवर्तन और राजनीतिक अस्थिरता उनकी निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है।
राजनीतिक षड्यंत्र:
अगर यह सच साबित होता है कि उन्हें किसी प्रकार की दवा दी जा रही है, तो यह बड़ा राजनीतिक षड्यंत्र होगा। संभव है कि उनके विरोधी उन्हें अस्थिर दिखाकर चुनावी फायदा लेना चाहते हों।
गहरी जांच की जरूरत
अगर मुख्यमंत्री का व्यवहार बाहरी कारकों से प्रभावित हो रहा है, तो यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। इस मामले की गहन जांच होनी चाहिए ताकि स्पष्ट हो सके कि कहीं सत्ता हथियाने के लिए उनके स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति से खिलवाड़ तो नहीं किया जा रहा। राजनीति में विरोध स्वाभाविक है, लेकिन अगर इसके लिए षड्यंत्र और हेरफेर का सहारा लिया जा रहा है, तो यह बिहार के मतदाताओं के साथ भी विश्वासघात होगा।
आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सिर्फ राजनीतिक अटकलें हैं या कोई बड़ा षड्यंत्र बिहार की राजनीति को हिलाने वाला है