दिवंगत महाराज श्रीकांतदत्त नरसिम्हराज वाडियार और रानी प्रमोदा देवी की अपनी कोई संतान नहीं थी।

इसलिए रानी ने अपने पति की बड़ी बहन के बेटे यदुवीर को गोद लिया और वाडियार राजघराने का वारिस बना दिया।

यह घराना राज परंपरा आगे बढ़ाने के लिए 400 सालों से फैमिली के किसी दूसरे मेंबर के पुत्र को गोद लेते आया है।

कहा जाता है कि 1612 में साम्राज्य के पतन के बाद वाडियार राजा के आदेश पर विजयनगर की संपत्ति लूटी गई थी।

उस समय विजयनगर की तत्कालीन महारानी अलमेलम्मा ने कथित तौर पर श्राप दिया था कि जिस तरह तुम लोगों ने मेरा घर उजाड़ा है उसी तरह तुम्हारा राजवंश संतानविहीन रहे।

तब से हर एक पीढ़ी बाद मैसूर के राजपरिवार को उत्तराधिकारी के रूप में किसी को गोद लेना पड़ता है।

कहते है  मैसूर राजघराने को 400 सालों बाद एक श्राप से मुक्ति मिली है।