सोशल संवाद / नई दिल्ली : नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का मंजर देखकर दिल दहल गया। आस्था और विश्वास से भरे श्रद्धालु कुंभ की ट्रेन पकड़ने के किए आए तो ज़रूर लेकिन प्रशासन की नाकामी से ना सिर्फ़ भगदड़ मची बल्कि आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक दम घुटने से 18 लोगों की तड़प तड़प कर वहीं मौत हो गई। इसमें 9 महिलाएं, 4 पुरुष, 5 बच्चे शामिल हैं:-
* विजय: 15 साल
* नीरज: 12 साल
* पूजा: 8 साल
* रिया: 7 साल
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जो चश्मदीद गवाह बता रहे हैं, वो सुनकर रोंगटे खड़े हो रहे हैं। उस भीड़ से कुली भाइयों ने शवों को लाद लादकर बाहर निकाला, फिर अस्पतालों में एक ही जगह लाशों का अंबार लगा था और असहाय लोगों के चेहरों पर अपनों को खोने के दुख के साथ ही साथ दहशत और डर साफ़ नज़र आया पर ये हादसा नहीं नरसंहार है – यह श्रद्धालुओं की हत्या है ।
और इसके बाद जो हुआ वो शर्मनाक है, कलंक है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई मौतों में जिसमें छोटे-छोटे बच्चे भी हैं – रेल मंत्री इस्तीफा देने के बजाय बेशर्मी पर उतर आए। बात लीपा पोती से शुरू की और उसके बाद बेशर्मी पर आमादा हैं । जब लोग भगदड़ से मर रहे थे तो रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव मौत छिपाने में जुट गए थे।

पर इनकी ये बेशर्मी नई नहीं है, यही काम ये बार बार करते हैं। कोई भी ट्रेन हादसा हो, ये उसे छोटी घटना बता कर किनारा कर लेते हैं। इनका पूरा फोकस मृतकों के आंकड़ें छिपाने और रील बनाने पर रहता है। लेकिन कल रात इन्होंने सारी हदें पार कर दीं। जब मृतकों के परिवार वाले सच बयां करने लगे तब रेलवे पुलिस पत्रकारों को धमकाने डराने में जुट गई। जिस तंत्र को श्रद्धालुओं को सही सलामत रेल से कुंभ पहुंचाना चाहिए था वो खबर दबाने, मौत के आंकड़ों को कम करने, लोगों की आपबीती नकारने में जुट गया ।
कुछ रिपोर्टर्स के फ़ोन ज़ब्त किए जाने, जबरन फ़ुटेज डिलीट करने और रेलवे स्टेशन से ख़बर ना दिखाने के भी वीडियो सामने आए हैं। यही नहीं महिला रिपोर्टर के आईडी तक छीने गए – बस ऊपर से एक आदेश था हर क़ीमत पर सच पर पर्दा डालना था ।
दिल्ली स्टेशन पर हुई भगदड़ से कुछ घंटे पहले ही सेफ्टी रिव्यू मीटिंग हुई थी और उसके कुछ देर बाद सेफ्टी और सेफ्टी रिव्यू मीटिंग की धज्जियां उड़ गई। आखिर इस मीटिंग का क्या निष्कर्ष निकला? क्या यह मीटिंग सिर्फ चाय समोसा खाने के लिए थी?
एक और ज़रूरी आंकड़ा कल 15 फ़रवरी की तारीख़ में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हर घंटे क़रीब 1500 जनरल टिकट कटे, तो रेलवे को पहले से ही भली भांति पता था कि भारी संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं, फिर भीड़ के संचालन के लिए क्या इंतज़ाम किए गये थे? कितने पुलिसकर्मी तैनात थे? क्या अनाउंसमेंट किए जा रहे थे? क्या जो ख़बरों में लोग बोल रहे हैं वो सच है कि आख़िरी वक्त पर प्लेटफार्म बदला गया – जिससे अफ़रा तफ़री मच गई? इन सबके लिए ज़िम्मेदार कौन है?

इतना कुछ हो जाने के बाद ज़िम्मेदारी लेना और गलती मानना तो दूर की बात है। यह सरकार जनता को ही जिम्मेवार ठहराने में मशगूल है। आख़िर जनता की अपनी सरकार से क्या उम्मीद है? यही ना कि आस्था के पर्व महाकुंभ में जाने के लिए आवागमन के उचित प्रबंध हों, पुलिस प्रशासन भीड़ का संचालन करे – अगर आप वो भी नहीं कर सकते हैं तो किस बात को सरकार हैं?
ऐसा लगता है इस देश में आम लोगों की जान की कोई क़ीमत नहीं है, क्योंकि अगर होती तो वो यूँ गाजर मूली की तरह हर बार मरते नहीं । अगर इस सरकार को उनकी जान की परवाह होती तो उनके आने जाने के लिए उचित प्रबंध किए गए होते, पुलिस प्रशासन को तैनात किया गया होता. लोगों को उनके हाल पर नहीं छोड़ा जाता।
क्या सरकार को नहीं पता है कि भारी संख्या में लोग कुंभ जाने के इच्छुक हैं. क्या सरकार ने विज्ञापन की चकाचौंध के अलावा कोई पुख्ता प्रबंध किए हैं? आवा गमन के लिए कितनी अतिरिक्त रेल और बसें चलायी गईं? अगर चलाई गईं तो कौन वे ग्रह पर चलाई जा रहीं हैं? क्या चेतावनी के बावजूद हवाई जहाज़ की आसमान छूती क़ीमतों को नियंत्रण में लाने के लिए कुछ किया गया?
पहले 29 जनवरी को भी महाकुंभ में भगदड़ में लोगों की दर्दनाक मृत्यु हुई जिसके बाद मृतकों और लापता लोगों की कोई विस्तृत सूची नहीं निकाली गई। एक चीज़ साफ़ है कि इस सरकार में दो हिंदुस्तान हैं । एक तरफ़ राजा कुंभ में अपने ख़ास दोस्तों को वी-वीआईपी डुबकी लगवाता है ,दूसरी तरफ़ आम लोगों को भीड़ में दम घुटने के लिये छोड़ जाता है। एक तरफ़ राजा अपने दोस्तों को हैलीकाप्टर से प्रयागराज की सैर करवाता है, दूसरी तरफ़ आम जनता को रेलवे प्लेटफ़ार्म पर कुचलने के लिए छोड़ जाता है।
एक तरफ़ राजा अमेरिका में भरे मंच से अपने दोस्त का साथ निभाता है ,दूसरी तरफ़ अपनी प्रजा के हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियाँ लगते देख मौन रहता है।
इस मंच से हमारी माँग है कि रेल मंत्री निर्लज्जता छोड़ कर इस हादसे की ज़िम्मेदारी लेते हुए अपने पद से तत्काल इस्तीफ़ा दें । रेलवे से इस देश का आम नागरिक सफ़र करता है – उसका जीवन इतना सस्ता नहीं कि एक ऐसे नाकारा और निकम्मा रेल मंत्री के भरोसे छोड़ा जाये जो जनता को राहत देने की जगह उनकी मौतों को छिपाता रहे।
