November 18, 2024 8:21 am

आखिर लक्ष्मण रेखा का असली नाम क्या था

सोशल संवाद / डेस्क :  क्या आपको लक्ष्मण रेखा का असली नाम पता है । चलिए जानते हैं ।  पर उससे पहले एक बार फिर आपको बता दे  कि लक्ष्मण रेखा आखिर थी क्या । कथाओं के अनुसार , जब श्रीराम स्वर्ण मृग को पकड़ने गए थे , तब लक्ष्मण को माता सीता की रक्षा के लिए छोर के गए थे । पर फिर जब मारीच ने श्रीराम की आवाज़ में मद्दद मांगी तो माता सीता ने लक्ष्मण को श्रीराम की रक्षा के लिए भेजा । कहते है उस समय लक्ष्मण ने एक रेखा खिची और माता सीता से कहा ,की वे इस रेखा से बहार ना जाय और किसी को भी इस रेखा के अन्दर ना आने दे । उस रेखा को आज सब लक्ष्मण रेखा के नाम से जानते है । कई इतिहासकार तर्क देते है की लक्ष्मण रेखा थी ही नहीं ।पर आप सबको बता दे लक्ष्मण द्वारा खिची गयी जिस रेखा के बारे में बताया जा रहा है वो असल में भारत की प्राचीन विद्याओ में से एक है जिसका अंतिम प्रयोग महाभारत युद्ध में हुआ था। जी हा लक्ष्मण रेखा का नाम सोमतिती विद्या है ।

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महर्षि श्रृंगी कहते हैं कि एक वेदमंत्र है जो की सरल भाषा एक  कोड है जो सोमना कृतिक यंत्र से जुड़ा है । पृथ्वी और बृहस्पति के बीचों बिच  कहीं अंतरिक्ष में वह केंद्र है जहां यंत्र को स्थित किया जाता है। वह यंत्र जल, वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अंदर सोखता है। कोड को उल्टा कर देने पर एक खास प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है। उस खास वेदमंत्र को सिद्ध करने से उस सोमना कृतिक यंत्र में  उन परमाणुओं में फोरमैन आकाशीय विद्युत मिलाकर उसका पत्ता बनाया जाता है। फिर उस यंत्र को एक्टिवेट करने से और उसकी मदद से एक लेजर बीम जैसी किरणों से उस रेखा को पृथ्वी पर गोलाकार खींच दिया जाता है । इससे होता ये है कि उसके अंदर जो भी रहेगा वह सुरक्षित रहेगा। लेकिन बाहर से अंदर अगर कोई जबर्दस्ती प्रवेश करना चाहे तो उसे आग  और बिजली का ऐसा झटका लगेगा कि वहीं राख बनकर उड़ जाएगा ।

आपको बता दे त्रेता युग में चार गुरुकुलों में वह विद्या सिखाई जाती थी।  श्रीराम आग्नेयास्त्र ,वरुणास्त्र, ब्रह्मास्त्र का संधान करना जानते थे । और लक्ष्मण को सोमतिती विद्या में महारत हासिल थी। जिस वजह से समय के साथ साथ सोमतिती विद्या का नाम बदल कर लक्ष्मण रेखा हो गया ।

ये विद्या हर किसी नहीं आती थी । श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण इस विद्या को जानने वाले अंतिम थे। उन्होंने कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में मैदान के चारों तरफ यह रेखा खींच दी थी। ताकि युद्ध में जितने भी भयंकर अस्त्र शस्त्र चलें उनकी अग्नि उनका ताप युद्धक्षेत्र से बाहर जाकर दूसरे प्राणियों को हानि न पहुंचाय ।

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