सोशल संवाद / डेस्क : भोलेनाथ के अलग-अलग नामों की कथा अद्भुत और काफी रहस्यमयी है। ऐसे ही उनका एक नाम त्रिपुरारी है। ये नाम बहुत कम लोग जानते है। ये नाम उनका तब पड़ा था जब उन्होंने एक तीर से तिन शहर ख़तम कर डाले थे । जी हा आइये इस नाम के पीछे की कथा जानते है।
शिवपुराण के अनुसार, दैत्य तारकासुर के तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नाम के तीन पुत्र थे। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। तब ब्रह्माजी प्रकट हुए और उन्हें वर मांगने का कहा। इसपर उन तीनों ने अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने कहा कि वह यह वरदान तो नहीं दे सकते लेकिन इसके अलावा कुछ और वर मांगना चाहें तो मांग सकते हैं।
ब्रह्माजी के दूसरे वर मांगने की बात पर तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने तीन नगरों का वरदान मांगा। तीनों ने कहा कि हे ब्रह्मदेव यदि आप प्रसन्न हैं और वर देना चाहते हैं तो हमारे लिए तीन नगरो का निर्माण करवा दे । हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया। ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण कर दिया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का, चांदी का कमलाक्ष का और लोहे का नगर विद्युन्माली का था। इन नगरो को त्रिपुर कहा जाने लगा ।
इन नगरों के बाद तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने तीनों लोकों पर आक्रमण करके अपना अधिपत्य जमा लिया। इससे परेशान सभी देवता भोलेनाथ की शरण में पहुंचे और अपनी रक्षा की गुहार लगाई। देवताओं की करुण पुकार बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। तब भगवान विश्वकर्मा ने भोलेनाथ के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। जिसमें चंद्रमा और सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बनें। वहीं शेषनाग उसकी प्रत्यंचा बनें। यही नहीं स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बनें। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भोलेनाथ त्रिपुरों का नाश करने चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया।
दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। उसी दौरान जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए। भोलेनाथ ने उसी समय दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रिपुरों का नाश होते ही सभी देवता भोलेनाथ की जय-जयकार करने लगे और उसी समय सभी देवी-देवताओं ने भोलेनाथ को त्रिपुर का अंत करने वाले त्रिपुरारी के नाम से पुकारा। मान्यता है तभी से भोलेनाथ को त्रिपुरारी कहा जाने लगा।