सोशल संवाद / डेस्क : हर साल 25 नवम्बर को क्रिसमस डे मनाया जाता है। दुनिया भर में इस त्यौहार को मानाने के लिए तैयारिया चल रही हैं। माना जाता है कि इस दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था। और क्रिसमस में क्रिसमस ट्री न हो तो मज़ा ही नहीं आता। क्रिसमस ट्री इस त्यौहार के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। क्रिसमस ट्री एक खूबसूरत सा पेड़ होता है जिस पर गिफ्ट लगाए जाते हैं। दिसंबर के पहले सप्ताह से ही क्रिसमस पेड़ को सजाना शुरू कर दिया जाता हैं। यह नये साल तक सजा रहता है। चलिए क्रिसमस ट्री का इतिहास जानते हैं।
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हमेशा से क्रिसमस के समय क्रिसमस ट्री नहीं लगता था। माना जाता है कि 16वीं सदी के ईसाई धर्म के सुधारक मार्टिन लूथर ने क्रिसमस ट्री को सजाने की शुरुआत की थी। एक बार वे बर्फीले जंगल से गुजर रहे थे। वहां उन्होंने सदाबहार फर (सनोबर) के पेड़ को देखा। पेड़ की डालियां चांद की रोशनी में चमक रही थीं। वे इससे बहुत प्रभावित हुए और अपने घर पर भी इस पेड़ को लगा लिया। जब ये थोड़ा बड़ा हुआ तो 25 दिसंबर की रात को उन्होंने इस पेड़ को छोटे-छोटे कैंडिल और गुब्बारों से सजाया। ये इतना खूबसूरत लग रहा था कि तमाम लोग इसे घर में लगाकर सजाने लगे। धीरे-धीरे हर साल 25 दिसबंर के दिन इस पेड़ को सजाने का चलन शुरू हो गया।
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अगर देखा जाए तो सदाबहार के पेड़ को ईसा मसीह के जन्म से पहले ही काफी महत्व दिया जाता था। सदाबहार के पेड़ों को मिस्त्र और रोम में अपने घरों में रखना काफी शुभ माना जाता था। रोम साम्राज्य में इन पेड़ों का इस्तेमाल घर को सजाने के लिए किया जाता था। 1800 के दशक में क्रिसमस ट्री को बेचने का सिलसिला शुरू हुआ। अमेरिका में एक व्यापारी ने साल 1851 में क्रिसमस ट्री को बेचना शुरू किया था।
क्रिसमस ट्री से खुशियां आती हैं, इसलिए इस घर में लगाया जाता है। इसमें रंगीन ब्लब, सांता का गिफ्ट, चाकलेट आदि लगाये जाते हैं। क्रिसमस का पेड़ आशीर्वाद का प्रतीक है। दरवाजे पर क्रिसमस पेड़ लगाने की परंपरा ईसाई धर्म के लोग क्रिसमस ट्री अपने दरवाजे पर लगाते हैं।