सोशल संवाद / डेस्क ( सिद्धार्थ प्रकाश ) : मार्क फेबर, जिन्हें अक्सर “डॉ. डूम” कहा जाता है, दशकों से वित्तीय बाजारों में अपनी सटीक भविष्यवाणियों के लिए प्रसिद्ध हैं। 1946 में स्विट्जरलैंड में जन्मे फेबर ने ज्यूरिख विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की और फिर वॉल स्ट्रीट से लेकर एशिया तक की यात्रा में कई निवेशकों को मूल्यवान सलाह दी। उनका समाचार पत्र द ग्लूम, बूम और डूम रिपोर्ट वैश्विक आर्थिक चक्रों, स्टॉक मार्केट रुझानों और निवेश रणनीतियों पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
मार्क फेबर की बाजार भविष्यवाणी यात्रा
फेबर 1980 के दशक से प्रमुख बाजार गिरावटों और आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी कर रहे हैं। उन्होंने 1987 के स्टॉक मार्केट क्रैश की भविष्यवाणी की थी, जो सच साबित हुई। इसी तरह, 2000 के डॉट-कॉम बबल और 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बारे में भी उन्होंने सही भविष्यवाणी की थी। उनकी निवेश रणनीति “कॉन्ट्रेरियन” सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें वे भय की स्थिति में खरीदारी और अति-आशावाद की स्थिति में बिकवाली की सलाह देते हैं।
मार्क फेबर का मंदी पर दृष्टिकोण
फेबर का मानना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था एक गंभीर मंदी की ओर बढ़ रही है। वे इसके लिए केंद्रीय बैंकों द्वारा अत्यधिक तरलता इंजेक्शन, अस्थिर सरकारी ऋण स्तर और भू-राजनीतिक अस्थिरता को जिम्मेदार मानते हैं। उनका कहना है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व और अन्य केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में आक्रामक बढ़ोतरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक मंदी की ओर धकेल सकती है। वे चेतावनी देते हैं कि यदि मौजूदा संरचनात्मक कमजोरियों और मुद्रास्फीति के दबाव को नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह संकट 2008 के आर्थिक संकट से भी अधिक गंभीर हो सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था और मंदी पर मार्क फेबर का दृष्टिकोण
हालांकि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन फेबर का मानना है कि यह वैश्विक झटकों से अछूता नहीं रह सकता। वे चेतावनी देते हैं कि भारतीय स्टॉक मार्केट अत्यधिक ओवरवैल्यूड है और इसमें एक महत्वपूर्ण सुधार (करैक्शन) की संभावना है। वे बढ़ते राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति और बाहरी ऋण को प्रमुख चिंताओं के रूप में चिन्हित करते हैं। हालांकि, वे यह भी स्वीकार करते हैं कि भारत की लंबी अवधि की विकास संभावनाएं मजबूत हैं, जिसका मुख्य कारण इसकी युवा आबादी और बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था है। फेबर भारतीय निवेशकों को सतर्क रहने, अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने और अस्थिर बाजार में सट्टेबाजी से बचने की सलाह देते हैं।
जेपी मॉर्गन के मुख्य अर्थशास्त्री की भविष्यवाणी: अमेरिका इस साल ही मंदी का सामना करेगा
जेपी मॉर्गन के मुख्य अर्थशास्त्री ने चेतावनी दी है कि अमेरिका इस साल ही मंदी (Recession) का सामना कर सकता है और इसके होने की व्यापक संभावना है। उन्होंने कहा कि वर्तमान आर्थिक संकेतक यह दर्शा रहे हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था दबाव में है, और फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीतियों, ऊंची ब्याज दरों, और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के चलते मंदी की संभावना लगातार बढ़ रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि उपभोक्ता खर्च में गिरावट, कॉर्पोरेट आय में दबाव और श्रम बाजार में ठहराव के संकेत इस बात को और मजबूत करते हैं कि अमेरिका इस साल के अंत तक मंदी की चपेट में आ सकता है। यदि ऐसा होता है, तो इसका वैश्विक वित्तीय बाजारों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर भी व्यापक असर पड़ सकता है।
जेपी मॉर्गन के अनुसार, निवेशकों और व्यवसायों को इस संभावित मंदी के लिए तैयार रहना चाहिए और सतर्क निवेश रणनीतियों को अपनाना चाहिए।
डॉ. अजय कुमार की बाजार भविष्यवाणियां फिर से सही साबित हुईं
फॉक्स पेट्रोलियम ग्रुप के चेयरमैन डॉ. अजय कुमार, पीएचडी, ने हाल ही में भारतीय स्टॉक मार्केट पर लिखे अपने लेख में इस महीने महत्वपूर्ण अस्थिरता (टर्बुलेंस) की भविष्यवाणी की थी, जो अब तक बिल्कुल सही साबित हुई है। उनकी सटीक भविष्यवाणियों ने एक बार फिर से उनकी विशेषज्ञता को साबित कर दिया है।
डॉ. कुमार इससे पहले तीन प्रमुख बाजार गिरावटों की भविष्यवाणी कर चुके हैं, जो पूरी तरह सच साबित हुईं। उनकी गहरी आर्थिक समझ और वैश्विक वित्तीय प्रवृत्तियों पर शोध ने उन्हें निवेशकों के लिए एक भरोसेमंद विशेषज्ञ बना दिया है। मौजूदा बाजार परिस्थितियों को देखते हुए, वे खुदरा निवेशकों (रिटेल इन्वेस्टर्स) को विशेष रूप से सतर्क रहने की सलाह देते हैं।
रिटेल निवेशकों के लिए सलाह: बाजार में सकारात्मक रुझान दिखते ही बाहर निकलें
डॉ. अजय कुमार का स्पष्ट मानना है कि मौजूदा बाजार की स्थिति अत्यधिक अस्थिर है। वे सलाह देते हैं कि खुदरा निवेशकों को किसी भी छोटे सकारात्मक रुझान (मार्केट गेन) को मुनाफावसूली का अवसर समझकर बाजार से बाहर निकल जाना चाहिए। वे चेतावनी देते हैं कि आम तौर पर खुदरा निवेशक बाजार में सबसे आखिरी में प्रतिक्रिया देते हैं, जिसके कारण उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
निष्कर्ष: अनिश्चित समय के लिए तैयार रहें
मार्क फेबर और डॉ. अजय कुमार, दोनों ही अर्थशास्त्री वैश्विक और भारतीय अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहे संकटों की ओर इशारा कर रहे हैं। बढ़ती मुद्रास्फीति, भू-राजनीतिक तनाव और केंद्रीय बैंक की नीतियों के कारण अनिश्चितता बनी हुई है। निवेशकों, विशेष रूप से खुदरा निवेशकों को, इस समय सतर्क रहना चाहिए और सुरक्षित निवेश विकल्पों की ओर रुख करना चाहिए।
आने वाले महीनों में वैश्विक बाजारों की परीक्षा होगी, और केवल वे निवेशक जो समझदारी से योजना बनाएंगे, वे इस कठिन समय से सुरक्षित बाहर निकल सकेंगे। फिलहाल, सतर्क रहना ही सबसे अच्छा विकल्प है।
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