सोशल संवाद/ डेस्क: ऐसे तो भगवान भोलेनाथ के सैकड़ो नाम है, लेकिन शायद ही आपने मुर्गा महादेव का नाम सुना होगा। झारखंड-ओडिशा सीमा पर नोवामुंडी से करीब 8 किलो मीटर दूर पहाड़यों एवं मनोरम हरे-भरे वादियों और कल-कल करते झरनों के बीच स्थित भगवान भोलेनाथ अर्थात बाबा मुर्गा महादेव मन्दिर अपनी हरी-भरी वादियों एवं प्राकृतिक छटा के कारण बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। यही कारण है की यहां सालों भर पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है।
वैसे तो इस पौराणिक बाबा मुर्गा महादेव मंदिर जिसका वास्तविक नाम बाबा मृगेश्वर महादेव मंदिर है। अति पौराणिक बाबा मुर्गा महादेव मंदिर में यूं तो सालों भर भक्तों एवं श्रद्धालुओं का आना-जाना और पूजा पाठ करने का सिलसिला चलता रहता है।
विशेष कर सावन के महीने में ओम नमः शिवाय के मंत्रोच्चार, जय भोले नाथ, बोल बम, हर-हर महादेव के गगन भेदी नारों से पूरा मुर्गा महादेव मन्दिर परिसर गुंजायमान हो उठता है। इस ऐतिहासिक एवं पौराणिक मंदिर में स्थापित भगवान बाबा मृगेश्वर महादेव अर्थात मुर्गा बाबा के दर्शन के लिए चाईबासा जमशेदपुर सरायकेला खूंटी रांची के अलावे झारखंड-ओडिशा सहित अन्य दूर दराज के शहरों से प्रति वर्ष शादी विवाह, पिकनिक मुंडन एवं नाम करण के साथ भगवान के दर्शन के लिए हज़ारों भक्तों के आने जाने का सिलसिला अनवरत लगा रहता है। इस शिव लिंग का नाम वन में हिरणों की संख्या अधिक होने के कारण पड़ा है।
इस मन्दिर के पीछे एक किवदंती बताई जाती है। जिसके अनुसार यह क्षेत्र घने जंगलों एवं जंगली जानवरों से भरा पड़ा था। इनमें मृगों की बहुतायत थी। भगवानश्री राम अपने वनवास काल मे ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों हरे-भरे पेड़ों एवं कल कल करते झरनों की प्राकृतिक छटा को माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ इस वन में विश्राम के लिए रुके थे। और यहां भगवान भोले शंकर के लिंग की स्थापना कर पूजा किए थे।
चूंकि मंदिर के आस पास मृगों यानि हिरणों की संख्या काफी थी। जिसके नाम पर भगवान श्री राम चन्द्र ने इस शिव लिंग की पूजा अर्चना के बाद इसे बाबा मृगेश्वर महादेव मन्दिर का नाम दिया। किन्तु कालांतर में मृग से नामांतरण होते हुए इसका नाम मुर्गा महादेव मन्दिर के रूप में प्रचलित हो गया।