धर्म

मंदिर में क्यों लगाई जाती है परिक्रमा, जानें अहम कारण

सोशल संवाद / डेस्क : हिन्दू धर्म में मंदिर की परिक्रमा लगाना शुभ माना जाता है। परिक्रमा पूजा का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की ही नहीं पीपल, बरगद, तुलसी समेत अन्य शुभ प्रतीक पेड़ों के अलावा यज्ञ, नर्मदा, गंगा आदि के चारों ओर परिक्रमा भी की जाती है । मंदिर में परिक्रमा हो या फिर भगवान के सामने एक स्थान पर घूम कर की गई परिक्रमा हो। इनका धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही महत्व है। चलिए जानते हैं आखिर परिक्रमा क्यों की जाती है।

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मंदिर और भगवान के आसपास परिक्रमा करने से सकारात्मक उर्जा शरीर में प्रवेश करती है । इस ऊर्जा को जब आप घर लेकर जाते हैं तो घर से नकारात्मक ऊर्जा चली जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। जिससे घर में सुख-शांति आती है। माना जाता है कि परिक्रमा करने से सुख समृद्धि धन धान्य की प्राप्ति होती है। जीवन में खुशियां आती रहती हैं। परिक्रमा लगाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी जुड़ा हुआ है। माना जाता है जिन जगहों पर हर रोज पूजा होती है, वहां एक सकारात्मक ऊर्जा विद्यमान रहती हैं। जब इस ऊर्जा में मनुष्य प्रवेश करता है तो उसके मन में शांति आती है और आत्मबल मजबूत होता है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव के दोनों पुत्र गणेश और कार्तिक के बीच पूरी सृष्टि के चक्कर लगाने की प्रतिस्पर्धा चल रही थी। तब गणेशजी ने पिता शिव और माता पार्वती को पूरी सृष्टि मानकर तीन चक्कर लगाए थे। और अपनी चतुराई के दम पर जीते थे। कहते है इसके बाद से ही परिक्रमा करने की प्रथा की शुरुआत हुई।

परिक्रमा का संस्कृत शब्द है प्रदक्षिणा। प्रा से अर्थ है आगे बढ़ना और दक्षिणा मतलब है दक्षिण की दिशा। यानी कि दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी-देवता की उपासना करना। परिक्रमा के दौरान प्रभु हमारे दाईं ओर गर्भ गृह में विराजमान होते हैं।

परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में करनी चाहिए। यानी भगवान के दाएं हाथ की तरफ से परिक्रमा शुरू करनी चाहिए। परिक्रमा शुरू करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए, साथ ही परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से आरंभ की गई थी । इस दौरान मन में निंदा, बुराई, दुर्भावना, क्रोध, तनाव आदि विकार न आने दें।

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