सोशल संवाद / डेस्क : महाभारत के युद्ध के दौरान भारतवर्ष के सारे राजा या तो कौरवों के साथ थे या फिर पांडवों के साथ परन्तु एक राजा ऐसे भी थे जो युद्ध नहीं लड़ना चाह रहे थे । लेकिन उन्होंने भी अपनी भागीदारी महाभारत के युद्ध में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और अलग रूप से दिया ।
युद्ध शुरू होने से पहले श्रीकृष्ण की 1 अक्षौहिणी नारायणी सेना दुर्योधन ने मांग ली थी, जिसके बाद कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना थी, तो वहीं पांडवों ने भी 7 अक्षौहिणी सेना एकत्रिक कर ली थी। अब सबसे अहम सवाल यह उठता है कि इतनी विशाल सेना के लिए युद्ध के दौरान भोजन कौन बनाता था और इतने लोगों के भोजन का प्रबंध कैसे होता था ? इसके लिए सामने आय उडुपी के राजा।
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उडुपी के राजा ने श्रीकृष्ण से कहा हे माधव! दोनों ओर से जिसे भी देखो युद्ध के लिए व्याकुल दिखता है, किन्तु क्या किसी ने सोचा है कि दोनों ओर से उपस्थित इतनी विशाल सेना के भोजन का प्रबंध कैसे होगा? तब इस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बिलकुल सही सोच रहे है। हालांकि, आपके पास अगर कोई योजना हो तो बताएं। उसके बाद उडुपी नरेश ने कहा वासुदेव! इस युद्ध में हिस्सा लेने की मेरी कोई इच्छा नहीं है, इसलिए मैं अपनी पूरी सेना के साथ यहां उपस्थित समस्त सेना के भोजन का प्रबंध करूंगा।
आपकी जानकारी के लिए बता दे एक अक्षौहिणी सेना में 21 हजार आठ सौ सत्तर रथ, 21 हजार आठ सौ सत्तर हाथी, एक लाख नौ हजार 350 पैदल सैनिक, पैंसठ हजार छह सौ दस घोड़े होते हैं। अर्थात 2 लाख 18 हजार 700 (218700) यह सभी एक अक्षौहिणी सेना में होते हैं। संपूर्ण 18 अक्षौहिणी सेना की संख्या जोड़े तो लगभग अनुमानित 1968300 सैनिकों की संख्या होती है।
युद्ध में हर दिन हज़ारो मौतें होती थी पर कभी भी दिन के अंत में भोजन कम नहीं होता था और ना ही भोजन अधिक होता था। हर एक योद्धा के लिए भरपेट भोजन बनता था और बर्बाद भी नहीं होता था । किसी को ये समझ नहीं आता था कि उडुपी नरेश को ये कैसे ज्ञात होता है कि कितने लोगो के लिए खाना बनाना है।
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युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर ने उडुपी नरेश से पूछ ही लिया की आप इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध किस प्रकार करते थे कि अन्न का एक दाना भी बर्बाद नहीं होता था और आपको रोजाना इतने सैनिकों के मरने के बाद कैसे पता चलता था कि आज कितने सैनिकों का खाना बनाना है? तब इसका जवाब देते हुए उडुपी नरेश ने बताया, कि उन्हें भी इसी बात कि चिंता थी और वे इसी चिंता को लेकर युद्ध शुरू होने के पहले ही श्रीकृष्ण के पास पहुचे थे।
उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा था, कैसे निश्चित किया जाए की हर दिन युद्ध समाप्त होने के पश्चात सैनिकों के लिए कितना खाना बनाया जाए, क्योकि युद्ध में हर दिन अनेकों सैनिक मारे जाते थे। ऐसे में यदि किसी दिन कम खाना बनाया जाए तो उस दिन सैनिक भूखे मर जाएंगे और जिस दिन यदि खाना ज्यादा बन जाए तो बर्बाद होने पर अन्नपूर्णा का अपमान होगा। परन्तु श्री कृष्ण ने उन्हें इस मामले में मदद कि थी ।
जब युधिष्ठिर ने पूछा कि क्या तो उडुपी नरेश कहा महाराज! श्रीकृष्ण प्रतिदिन रात में मूंगफली खाते थे। मैं प्रतिदिन उनके शिविर में गिन कर मूंगफली रखता था और उनके खाने के पश्चात गिन कर देखता था कि उन्होंने कितनी मूंगफली खायी है।वे जितनी मूंगफली खाते थे उससे ठीक 1000 गुणा सैनिक अगले दिन युद्ध में मारे जाते थे। अर्थात अगर वे 50 मूँगफली खाते थे तो मैं समझ जाता था कि अगले दिन 50,000 योद्धा युद्ध में मारे जाएंगे। उसी अनुपात में मैं अगले दिन भोजन बनाता था। यही कारण था कि कभी भी भोजन व्यर्थ नहीं हुआ। श्रीकृष्ण के इस चमत्कार को सुनकर सभी उनके आगे नतमस्तक हो गए थे।
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