सोशल संवाद / डेस्क ( लेखक -आनंद कुमार झा ): हमारे देश में एक तरफ हम लगभग 90% त्योहारों की पूजा महिला देवी पर आधारित करते हैं। वहीं दूसरी तरफ हमारे देश में सबसे ज़्यादा अपराध भी स्त्रियों पर ही होते हैं जैसे बलात्कार, छेड़छाड़। हमारे देश में हम ज्ञान और पढ़ाई के लिए माँ सरस्वती (महिला देवी) की पूजा करते हैं और सफलता चाहते हैं। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग अपनी लड़कियों को विदेश में पढ़ने नहीं देते। हमारे देश के लोगों की दोहरी मानसिकता आज भी कई लड़कियों के करियर को खराब कर देती है।
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एक तरफ हम सामाजिक बुराइयों पर जीत के लिए माँ दुर्गा (महिला देवी) की पूजा करते हैं, वहीं दूसरी तरफ हम अपनी बेटियों को उनके विचारों को उजागर करने की अनुमति नहीं देते। हमारे यहाँ पहले से ही महिलाओं को पुरुषों की तुलना में ज़्यादातर समय कष्ट सहना पड़ता था। रामायण में श्री राम को नहीं बल्कि देवी सीता को उनकी पवित्रता का प्रमाण देना पड़ा था। एक तरफ हम “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का नारा देते हैं, वहीं गर्भावस्था के दौरान भी वे पुत्र चाहते हैं। यही उनकी मानसिकता है । और अल्ट्रासाउंड जांच जैसी अवैध प्रथाएं हैं।
महिलाएं अपने घरेलू कर्तव्यों को और भी बढ़ा देती हैं, हिंदू धर्म में ‘शक्ति’ के रूप में जानी जाने वाली देवी की स्त्रीलिंग, रचनात्मक शक्ति को साझा करती हैं। जबकि इस मुख्य रूप से हिंदू देश के क्षेत्रों में देवी की पूजा सार्थक है, क्या यह एक ऐसी प्रथा है जो लड़कियों को सशक्त बनाती है? दुर्भाग्य से केवल कानून उन प्रथाओं को नहीं बदल सकता जो अनादि काल से चली आ रही हैं। खासकर अगर इसमें धार्मिक विश्वास शामिल हो।
एक देश की तस्वीर तभी बदलेगी जब स्त्रियों के प्रति हमारे विचार पुरुषों के समान सम्मान से भर जाएंगे। जब आप सोचेंगे कि स्त्रियाँ पुरुषों के बराबर हैं। किसी भी देश की प्रगति तभी संभव है जब हम जाति के आधार पर किसी भी भेदभाव के बिना समान रूप से एक साथ कर्म करें।