सोशल संवाद डेस्क : भगवान् शिव के वैसे तो कई नाम हैं लेकिन उनके भक्त उन्हें भोलेनाथ ही पुकारना पसंद करते हैं। वे ऐसे देव है जिन्हें प्रसन्न करना बहुत ही आसान है। भगवान शिव मात्र जल, फूल, बेलपत्र और भांग-धतूरा से ही प्रसन्न हो जाते हैं। उनके अंदर ना अहंकार है ना ही चालाकी। वे मनुष्य ,दैत्य ,देवों में कोई भी भेद नहीं करते । उन्हें अपनी शक्ति पर बिल्कुल भी अभिमान नहीं है इसीलिए वह भोलेनाथ हैं।
उन्हें भोलेनाथ कहे जाने के पीछे एक कहानी भी है। एक असुर था जो हजारों वर्षों से उनकी तपस्या कर रहा था। उस का नाम था भस्मासुर । भगवान शिव भलीभांति जानते थे कि वह एक राक्षस है और उसे वरदान देना अच्छा नहीं होगा। फिर भी वह प्रकट हुए और भस्मासुर से वरदान मांगने के लिए कहा। भस्मासुर ने भगवान शिव से वरदान मांगा कि वह जो कुछ भी छुए, तुरंत भस्म हो जाए। महादेव ने तुरंत उसे यह वरदान दे दिया। अब भस्मासुर वरदान की परीक्षा लेना चाहता था। भस्मासुर को लगा कि अगर वह भगवान शिव को ही भस्म कर दे तो फिर उससे ज्यादा श्रेष्ठ कोई नहीं रहेगा।
शिव भागे। वे आगे-आगे और भस्मासुर पीछे-पीछे। फिर उस असुर से छुटकारा पाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। मोहिनी को देख भस्मासुर सुध बुध खो बैठता है और उससे विवाह का प्रस्ताव उसके सम्मुख रख देता है पर मोहिनी कहती है की वो सिर्फ उसी से विवाह करेगी जिसे नृत्य आता हो, यह सुन भस्मासुर थोड़ा चिन्तित हुआ परंतु उसने मोहिनी से ही मदद मांगी और मोहिनी भी उसे नृत्य सिखाने के लिए तैयार हो गयी।
अब जैसा नृत्य मोहिनी करती, भस्मासुर भी उसे देख उसे दोहराता। तभी नृत्य करते करते मोहिनी ने अपना दायां हाथ अपने सर पर रखा और उसकी देखा देखी भस्मासुर ने भी अपना हाथ अपने सर पर रख लिया, बस फिर भगवान शिव का वरदान रंग लाया और उसी क्षण वह जल कर भस्म हो गया ।