सोशल संवाद/डेस्क : भारत में स्पाई थ्रिलर शोज़ की दुनिया में ‘द फैमिली मैन’ ऐसा नाम बन चुका है, जिसने न सिर्फ दर्शकों की उम्मीदों को नई ऊंचाई दी बल्कि ओटीटी पर भारतीय कंटेंट का स्तर भी लगातार ऊंचा किया है। पहले दो सीज़न की अभूतपूर्व सफलता के बाद ‘द फैमिली मैन सीजन 3’ को लेकर जो उत्साह था, वह आखिरकार इसके रिलीज़ के साथ परवान चढ़ा। लंबे इंतजार के बाद आए इस तीसरे अध्याय में कहानी पहले से कहीं ज्यादा राजनीतिक, भावनात्मक और एक्शन-ड्रिवन नज़र आती है।

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इस बार मेकर्स राज–डीके ने नॉर्थ-ईस्ट के अस्थिर हालात को कहानी की पृष्ठभूमि बनाया है। पिछले सीजन के अंत में संकेत मिल गए थे कि अब श्रीकांत तिवारी का मिशन पूर्वोत्तर भारत की जटिल परिस्थितियों के बीच आगे बढ़ेगा। सीजन 3 वहीं से शुरू होता है, जहां देश के अंदर लगातार हो रहे धमाके और चीन की संदिग्ध गतिविधियां माहौल को और संवेदनशील बनाती दिखती हैं। भारत की प्रधानमंत्री ‘प्रोजेक्ट सहकार’ के जरिए शांति बहाल करने का बड़ा लक्ष्य लेकर आगे बढ़ती हैं, और इस मिशन की जिम्मेदारी टास्क फोर्स के चीफ के साथ मिलकर एक बार फिर श्रीकांत तिवारी के कंधों पर आ जाती है।
श्रीकांत, जो हमेशा की तरह एक जिम्मेदार एजेंट और परेशानी में घिरे फैमिली मैन दोनों के किरदार को साथ लेकर चलता है, नागालैंड पहुंचता है। यहां कई संगठन, अलग-अलग अपनी मांगों और नाराज़गियों के साथ मौजूद हैं। योजना थी कि बातचीत करके प्रोजेक्ट सहकार को आगे बढ़ाया जाए, लेकिन हालात तब बिगड़ जाते हैं जब एक खूंखार कॉन्ट्रैक्ट किलर और ड्रग लॉर्ड रुक्मा अचानक हमला कर देता है। यह हमला सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि एक बड़े षड्यंत्र की तरफ इशारा है, जहां विदेशी ताकतें भारत के भीतर अस्थिरता से अपना फायदा चाहती हैं।
हमले के बाद कहानी तेजी से मोड़ लेती है। श्रीकांत घायल होने के बावजूद हमलावर का चेहरा पहचान लेता है और सच की तलाश में जुट जाता है। लेकिन वह जितना आगे बढ़ता है, उतना ही जाल उसके चारों ओर फैलता जाता है। इस बार मुश्किल और बड़ी है उसे खुद ही अपने ही सिस्टम में फंसाया जाता है। एक साजिश के तहत उसे अपने ही बॉस की हत्या का संदिग्ध बना दिया जाता है। अब उसके सामने दो लड़ाइयां हैं एक पेशेवर मिशन और दूसरी अपने परिवार को बचाने की।
सीजन में श्रीकांत की निजी जिंदगी भी बिखरती नजर आती है। सुची से उसका तलाक तय हो चुका है, बच्चे धृति और अथर्व भी इस सच्चाई से जूझ रहे हैं। भावनात्मक स्तर पर यह संघर्ष कहानी को गहराई देता है। इनके बीच जेके का किरदार एक बार फिर श्रीकांत का सबसे मजबूत साथी बनकर उभरता है और दोनों के बीच की बॉन्डिंग शो के कुछ सबसे प्रभावशाली पलों को जन्म देती है।
सीरीज की सबसे बड़ी खूबी इसका स्क्रीनप्ले है, जो पॉलिटिकल थ्रिलर, इमोशनल ट्रैक और शहरी रिश्तों के तनाव को एक साथ जोड़े रखता है। कहानी में रुक्मा और मीरा जैसे किरदारों की परतें भी दिलचस्प हैं। रुक्मा सिर्फ विलेन नहीं, अपने निजी प्रतिशोध और जटिल भावनाओं के साथ एक इंसानी पहलू भी लिए हुए सामने आता है। यह शो दर्शकों को न सिर्फ नायक बल्कि खलनायक की पीड़ा से भी जोड़ देता है।
दूसरी तरफ मेकर्स ने नॉर्थ-ईस्ट की वास्तविक परिस्थितियों, विदेशी हथियार कंपनियों की भूमिका, चीन की रणनीतियों, ट्रोलिंग, डीपफेक और ऐप बैन जैसे मौजूदा मुद्दों को बिना बोझिल बनाए कहानी में पिरोया है। यह हिस्सा सीजन को और प्रासंगिक बनाता है।
तकनीकी स्तर पर सीजन मजबूत है। बैकग्राउंड स्कोर, खासकर स्थानीय लोकगीतों के साथ, माहौल की बेचैनी और तनाव को और बढ़ाता है। शुरुआती एपिसोड जहां तेज रफ्तार के साथ कहानी में खींच लेते हैं, वहीं बीच में थोड़ी धीमी रफ़्तार नजर आती है, लेकिन आखिरी एपिसोड फिर से गति पकड़ लेते हैं।हालांकि, क्लाइमैक्स कुछ दर्शकों को अधूरा लग सकता है। कई सवाल खुले छोड़ दिए गए हैं, जो स्पष्ट रूप से चौथे सीजन की तरफ इशारा करते हैं।
अभिनय की बात करें तो मनोज बाजपेयी इस शो की रीढ़ हैं। श्रीकांत तिवारी के रूप में उनकी सादगी और गहराई एक बार फिर दर्शकों को जोड़ लेती है। जयदीप अहलावत रुक्मा के रूप में शो को नए स्तर पर ले जाते हैं। प्रियामणि, शारिब हाशमी, निमरत कौर, अश्लेषा ठाकुर, वेदांत सिन्हा और बाकी कलाकारों ने भी अपने किरदारों को खूब मजबूती से निभाया है।
कुल मिलाकर ‘द फैमिली मैन सीजन 3’ पहले दो सीजन की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करता है। तेज-तर्रार एक्शन, राजनीतिक साज़िशें, मानवीय रिश्तों की जटिलता और दमदार परफॉर्मेंसेज सब मिलकर इसे एक आकर्षक और असरदार सीरीज बनाते हैं। हालांकि कुछ जगहों पर यह और बेहतर हो सकता था, लेकिन यह बात साफ है कि यह सीजन कहानी को नई ऊंचाई पर ले जाता है और दर्शकों को अगले अध्याय के लिए उत्साहित छोड़ देता है।








