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अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप की मुश्किलें और बढ़ीं, फंड डायवर्जन मामले में कॉर्पोरेट अफेयर मिनिस्ट्री ने शुरू की जांच

By Muskan Thakur

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अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप की मुश्किलें और बढ़ीं

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सोशल संवाद/डेस्क : पहले से ही कई मामलों में ED और CBI की जांच का सामना कर रहे अनिल अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस ग्रुप की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. अब समूह के खिलाफ लगे फंड डायवर्जन के मामले में केंद्रीय कॉर्पोरेट मंत्रालय ने भी जांच शुरू करने की घोषणा की है. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार को मंत्रालय ने जांच का ऐलान किया है.

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रिपोर्ट में कहा गया है कि अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप पर जांच एजेंसियों का शिकंजा और कस गया है. प्रवर्तन निदेशालय (ED), सीबीआई (CBI) और सेबी (SEBI) की जांचों के बाद अब कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) ने भी समूह की कई कंपनियों में कथित फंड डायवर्जन की जांच शुरू की है. मंत्रालय ने यह मामला गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) को सौंप दिया है.

कई कंपनियों पर जांच की आंच

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि MCA की शुरुआती जांच में बड़े पैमाने पर फंड डायवर्जन और कंपनी अधिनियम के उल्लंघन के सबूत मिले हैं. जांच में रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर, रिलायंस कम्युनिकेशन, रिलायंस कॉमर्शियल फाइनेंस और CLE Pvt Ltd का नाम शामिल है. अब SFIO यह जांच करेगा कि फंड का प्रवाह किन कंपनियों के बीच हुआ और जिम्मेदारी किस स्तर तक तय होती है.

7,500 करोड़ की संपत्ति अटैच

इस बीच, ED ने भी रिलायंस ग्रुप की कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी है. एजेंसी ने हाल ही में करीब 7,500 करोड़ की संपत्ति अटैच की है, जिसमें Reliance Infrastructure की 30 संपत्तियां भी शामिल हैं. इसके अलावा आधार प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी, मोहनबीर हाई-टेक बिल्ड, गमेसा इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट, विहान 43 रियल्टी और कैम्पियन प्रॉपर्टीज से जुड़े एसेट्स भी अटैच किए गए हैं. ED का कहना है कि ये कार्रवाई रिलायंस इन्फ्रा से जुड़े करोड़ों रुपये के बैंक फ्रॉड केस के सिलसिले में की गई है.

13,600 करोड़ का डायवर्जन

ED की रिपोर्ट के मुताबिक, रिलायंस कम्युनिकेशन और समूह की कंपनियों ने 2010 से 2012 के बीच भारतीय बैंकों से हजारों करोड़ रुपये के लोन उठाए. इनमें से 19,694 करोड़ अब भी बकाया हैं. कुल 40,185 करोड़ के ड्यूज को लेकर पांच बैंकों ने RCOM के खातों को फ्रॉड घोषित किया है. कंपनी पर आरोप है कि लोन की राशि का दुरुपयोग किया और रकम को एक-दूसरे के बीच घुमाकर पुराने कर्ज चुकाने में लगा दिया. इस तरह की एवरग्रीनिंग प्रक्रिया ने बैंकिंग नियमों का उल्लंघन किया है.

फंड डायवर्जन में इनकी हो रही जांच

ED का अनुमान है कि 13,600 करोड़ से अधिक की राशि लेयर्ड ट्रांजैक्शन के जरिए डायवर्ट की गई है और इसका एक हिस्सा विदेशों में भी ट्रांसफर हुआ. इस मामले की जांच में रिलायंस होम फाइनेंस, रिलायंस कॉमर्शियल फाइनेंस, रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर और रिलायंस पावर के नाम शामिल हैं.

इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया में ये कंपनियां

रिलायंस ग्रुप की कई कंपनियां बीते कुछ वर्षों से भारी कर्ज दबाव में हैं. RCOM पहले से ही इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया में है, जबकि अन्य ग्रुप कंपनियों पर भी लेंडर्स और अदालतों में रिकवरी केस चल रहे हैं. अगस्त में CBI और ED ने अनिल अंबानी के घर और ग्रुप ऑफिसों पर छापेमारी की थी, जिसके बाद एक वरिष्ठ वित्त अधिकारी को गिरफ्तार किया गया था.

SFIO जांच से बढ़ी कानूनी मुश्किलें

MCA की तरफ से जांच को SFIO को सौंपना दर्शाता है कि सरकार अब इस मामले की गहराई से फॉरेंसिक जांच चाहती है. वहीं ED की संपत्ति जब्ती और बैंकों द्वारा खातों को धोखाधड़ी घोषित करने से रिलायंस ग्रुप की कानूनी और वित्तीय मुश्किलें और बढ़ गई हैं.

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