सोशल संवाद डेस्क: महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद सभी पांडव सशरीर स्वर्ग के लिए रवाना हुए ।पांचों पांडव अपना राजपाट परीक्षित को सौंपकर जब स्वर्ग की कठिन यात्रा कर रहे थे तब इस यात्रा में द्रौपदी भी उनके साथ गई थी। सभी चाहते थे सशरीर स्वर्ग पहुँचना। परंतु रास्ते में कुछ ऐसा घटा कि एक एक करके पांडव मृत्यु को प्राप्त हो गए। सिर्फ युधिष्ठिर ही सशरीर स्वर्ग जा पाए। ये बात हम सभी जानते हैं। आइये जानते है की किन पापो की वजह से उनकी मृत्यु हुई ।
सबसे पहले द्रौपदी का हुआ पतन
महाभारत की कथा अनुसार पांचों पांडव, द्रौपदी तथा एक कुत्ता आगे चलने लगे। तभी द्रौपदी लड़खड़ाकर गिर पड़ी। द्रौपदी को गिरा देख भीम ने युधिष्ठिर से कहा कि- द्रौपदी ने कभी कोई पाप नहीं किया। तो फिर क्या कारण है कि वह नीचे गिर पड़ी? युधिष्ठिर ने कहा कि- द्रौपदी हम सभी को एक सामान प्रेम नहीं करती थी । हम सब में अर्जुन को ही वो अधिक प्रेम करती थीं। इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ । ऐसा कहकर युधिष्ठिर द्रौपदी को देखे बिना ही आगे बढ़ गए।
फिर गिरे सहदेव
द्रौपदी के गिरने के थोड़ी देर बाद सहदेव भी गिर पड़े। भीम ने सहदेव के गिरने का कारण पूछा तो युधिष्ठिर ने बताया कि सहदेव किसी को अपने जैसा विद्वान नहीं समझता था, इसी दोष के कारण इसे आज गिरना पड़ा है।
ऐसे हुई नकुल की मृत्यु
द्रौपदी व सहदेव के बाद चलते-चलते नकुल भी गिर पड़े। भीम ने जब युधिष्ठिर से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था। वह किसी को अपने समान रूपवान नहीं समझता था। इसलिए आज इसकी यह गति हुई है।
ये था अर्जुन के पतन का कारण
युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन व वह कुत्ता जब आगे चल रहे थे, तभी थोड़ी देर बाद अर्जुन भी गिर पड़े। युधिष्ठिर ने भीम को बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर बहुत अभिमान था। इसने कहा थी कि मैं एक ही दिन में शत्रुओं का नाश कर दूंगा, लेकिन ऐसा किया नहीं। अपने अभिमान के कारण ही अर्जुन की आज यह हालत हुई है।
इसलिए हुआ भीम का पतन
थोड़ी आगे चलने पर भीम भी गिर गए। तब भीम ने युधिष्ठिर को पुकार कर पूछा कि- हे राजन यदि आप जानते हैं तो मेरे पतन का कारण बताईए? तब युधिष्ठिर ने बताया कि तुम खाते बहुत थे और अपने बल का झूठा प्रदर्शन करते थे। इसलिए तुम्हें आज भूमि पर गिरना पड़ा है। यह कहकर युधिष्ठिर आगे चल दिए। केवल वह कुत्ता ही उनके साथ चलता रहा।
युधिष्ठिर कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आ गए। तब युधिष्ठिर ने इंद्र से कहा कि- मेरे भाई और द्रौपदी मार्ग में ही गिर पड़े हैं। वे भी हमारे हमारे साथ चलें, ऐसी व्यवस्था कीजिए। तब इंद्र ने कहा कि वे सभी पहले ही शरीर त्यागकर स्वर्ग पहुंच चुके हैं। आप सशरीर स्वर्ग में जाएंगे।
इंद्र की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता भी मेरे साथ जाएगा लेकिन इंद्र ने ऐसा करने से मना कर दिया। काफी देर समझाने पर भी जब युधिष्ठिर बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने के लिए नहीं माने तो कुत्ते के रूप में यमराज अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गए। (वह कुत्ता वास्तव में यमराज का ही रूप था)। युधिष्ठिर को अपने धर्म में स्थित देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद देवराज इंद्र युधिष्ठिर को अपने रथ में बैठाकर सशरीर स्वर्ग ले गए।