सोशल संवाद/डेस्क : विश्वस्तर पर मनोविज्ञान विषय की ख्याति एवम लोकप्रियता बढ़ाने में सिगमंड फ्रायड का अमूल्य योगदान रहा है। आधुनिक मनोविज्ञान के जनक कहे जाने वाले महान व्यक्तित्व सिगमंड फ्रायड का जन्म 6 मई 1856 में ऑस्ट्रिया के मोरोबिया में हुआ था। कुशाग्र बुद्धि के धनी फ्रायड की रुचि चिकित्सा विज्ञान में थी। फिजियोलॉजी से कैरियर शुरू करने वाले वैज्ञानिक फ्रायड ने बाद में रुचि का स्थानांतरण न्यूरोपैथालॉजी में कर दिए जहां वो ऑस्ट्रिया में 1882 में वियना के जेनरल हॉस्पिटल में एक क्लिनिकल असिस्टेंट से कैरियर शुरू किए जहां वो आगे चलकर 1885 में न्यूरोलॉजी के व्याख्याता भी बने। मगर वो इतना से संतुष्ट नही थे। उनकी शादी मार्था वरनेज से हुई जिससे कुल छः संताने हुई जिसमें सबसे छोटी बेटी अन्ना फ्रायड है जो अपने पिता से भिन्न अकेडमिक दृष्टिकोण रखते हुए इगो साइकोलॉजी की स्थापना की।
एकेडमिक अभिरुचि ने वर्ष के अंत में पेरिस ले गया जहां वो शार्कों के संपर्क में आए जो हिस्टीरिया के रोगियों का रोग निदान कर रहे थे। फ्रायड ने प्रथमत: यह अनुभव किया कि हिस्टीरिया सेंसरी मोटर डिसऑर्डर न होकर एक साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो माइंड फंक्शनिंग का परिणाम है न कि ब्रेन गड़बड़ी का। इसी ज्ञान जिज्ञासा से बढ़ते हुए आगे 1880 के दशक में ही वो जोसेफ ब्रूअर के सम्पर्क में जो सेक्स जनित समस्याओ का समाधान सम्मोहन ( हिप्नोसिस) के द्वारा करते थे। इससे फ्रायड दमन और अचेतन जैसी बातो व विचारों से प्रभावित हुए। ‘ अन्ना ओ’ की चर्चा चिकित्सा मनोविज्ञान के क्षेत्र हिस्टीरिया को समझने में काफी बल मिला। जहां वो ऐसे विकृत व्यवहारों के अध्य्यन विषेश में यौन इच्छाओं का अचेतन मन में दमन और क्रमश: प्रस्फुटन पाया तो वही वो इड की संकल्पना के तहत सभी व्यवहारों के पीछे का कारण सेक्स यानि आनंद प्राप्ति को माना। यहां सेक्स का आशय उन बातो व व्यवहारों से सम्बन्धित था जिसे देखने, छूने , बातचीत आदि करने से आत्मतोष मिलता था। शुकून मिलता था। लेकिन फ्रायड ने अचेतन भेदन के दौरान कई केसेस में नजदीकी रिश्तों के बीच अनैतिक संबंध को भी होते पाए जो मानसिक विकृति का कारण था। फ्रायड का यह मानना था कि कोई भी व्यवहार यूं नही होता है बल्कि उसका इक अर्थ (इकोनॉमी) होता है, मतलब होता है जिसे ‘ साइकिक डिटरमिनिज्म ‘ का संज्ञा दिया ।
फ्रायड के कुल योगदानों को तीन टीज अर्थात् थ्योरी (पर्सनेलिटी थ्योरी), थॉट (उनके विचारों को एक स्कूल में रखना)एंड थेरेपी (साइकोएनालिसिस) में रखकर समझा जा सकता है। फ्रायड ने सभी व्यवहारों को समझने में सेक्स अर्थात् प्लेजर सीकिंग बिहेवियर को महत्वपूर्ण माना। व्यक्ति के एब्नॉर्मलिटी या न्यूरोटिक बिहेवियर का कारण यौन असंतुष्टि का होना कारण बताया तो वहीं मां व नवजात बेटे के संबंध के बीच भी सेक्स संतुष्टि मानते थे। बच्चों में इरोटिक जॉन की बात की है जिसके सहारे बच्चे यौन इच्छा अर्थात् लैंगिक आनंद की प्राप्ति करते है। फ्रायड इस बात से सहमत थे व्यक्ति के अंदर ‘ यौन ऊर्जा ‘ अर्थात् लिबिडो होता है जो उसे प्लेजर सीकिंग बिहेवियर के लिए अभिप्रेरित करता है। ऐसे इच्छापूर्ति के बाधा के मध्य जहां मानकों का होना मानते थे तो वही मन के इस भावना का दमन होना डिफेंस मैकेनिज्म की कार्यवाही को मानते थे। ये डिफेंस मेकेनिज्म अहम के सहायतार्थ होते है जिसमें प्रक्षेपण, दमन, शमन, विस्थापन, स्थानांतरण, बौद्धिकीकरण, अस्वीकरण, उदात्तीकरण, तार्किककरण, आदी प्राथमिक व द्वितीय रक्षा प्रक्रम होते है। जब व्यक्ति वातावरण के चुनौतियों के आगे जब इन रक्षा प्रक्रमों का इस्तेमाल नहीं कर पाता है तो उसका अत्मविश्वास कमजोर हो जाता है। भय होता है। नींद उड़ जाती है।
निर्णय नही ले पाता है। और ऐसे में वो मनोरोग का शिकार हो जाता है। दूसरी तरफ व्यक्ति में मानकों का पालन करना, सीमा में रह व्यवहार करना, मर्यादा का उल्लंघन न करना उसके मजबूत सुपर इगो को बतलाता है। नैतिकता के प्रभाव को दर्शाता है तो वही दमित इच्छाएं स्वप्न का कारण बनती है। जहां उन्होंने 1900 में स्वप्न आधारित पुस्तक ‘ इंटरप्रिटेशन ऑफ ड्रीम’ नामक पुस्तक भी लिखे। ड्रीम को उन्होंने ‘ रॉयल रोड टू ए नॉलेज ऑफ द अनकॉनसेस ‘ कहा। इस अचेतन मन में दमित इच्छाएं पूरी तरह शांत नहीं रहती है बल्कि अमेठी की आग की तरह होती है जहां इलेक्ट्रॉन की तरह मन में घूमती रहती है और जहां कहीं इच्छापूर्ति के दौरान कुछ भूले भी होती है जिसे ‘ साइकोपैथोलॉजी ऑफ एवरीडे लाइफ ‘ कहा जाता है जिसमें मुख्य रुप से लिखने, बोलने, पहचाने, छपाई आदि संबंधी भूले आती है जो इसी भावना को दर्शाती है जिसे फ्रायडियन स्लिप भी कहा जाता है। फ्रायड ने जहां चिन्ता या भय जैसे न्यूरोटिक लक्षणों के पीछे ईड, इगो व सुपर इगो के बीच कॉन्फ्लिक्ट का होना, इगो का कमज़ोर होना या उसके अस्तित्व के लिए खतरा आदि होना बताया तो वहीं भावनाओं का अभिव्यक्त न होना भी पाया। फ्रायड ने मनोविश्लेषण चिकित्सा विधि के माध्यम से रोगी के अचेतन मन में छिपे कंटेंट, दमित यौन इच्छाएं, कुंठा, आदि को बाहर निकाल यथार्थ के आलोक में व्याख्या कर रोगी का रोग उपचार करते थे जहां वो मनोलैंगिक विकास की पांचों अवस्थाओं ( ओरल, एनल, फेलिक, लेटेंसी और जेनिटल) के कॉन्फ्लिक्ट को भी समझने का प्रायस करते थे। फ्रायड ने इस किसी भी अवस्था में वंचना या दोषपूर्ण प्रशिक्षण का होना विकृति का कारण माना। जैसे ओरल वंचना से व्यक्ति आगे चलकर शराबी, सिगरेट, पान, आदि के साथ ओरल सेक्स को भी पसंद करता है। फेलीक अवस्था में बच्चों में इलेक्ट्रा कॉम्प्लेक्स ( लड़कियों का पिता के प्रति झुकाव) और ऑडीपस कॉम्प्लेक्स (लड़कों का मां के तरफ़ लगाव) भी विकसित होता है जहां भी विशेष देखभाल की जरूरत होती है तो वही लड़कियों में शिश्न ईर्ष्या ‘ (पेनिस इन्वी) होती हैं। जो बचपन से ही मन में कुंठा का भाव भर जाता है।
फ्रायड ने अपने मनोचिकित्सा में फ्री एसोसिएशन मेथड (मुक्त सहचार्य विधि) अर्थात् जो भी मन में आए बिना किसी बदलाव के बोलते जाए। चिकित्सा के मध्य ‘ रेजिस्टेंस ‘ यानि प्रतिरोध आता है जिसे पार कर रोगी को रोगमुक्त किया जाता है। यहां ड्रीम के बारीकियों का, उसके कंटेंट का भी अध्य्यन किया जाता है।
फ्रायड का मनोविज्ञान के क्षेत्र में अमूल्य योगदान है। उन्होंने न केवल मानव व्यवहारों का समझने व समझाने का काम किया है बल्कि विश्व में शांति व कल्याण के लिए भी काम किया। उन्होंने इरोज व थेनाटोज अर्थात् जीवन मूलप्रवृत्ति तथा मृत्यु मूलप्रवृत्ति के द्वारा संस्कृति विशेष के व्यवहारों को समझाने का भी प्रयास किया। जीवन मूलप्रवृत्ति वाले जहां रचनात्मक कार्य करते है, विश्व कल्याण की सोचते और व्यवहार करते है वही पाशविक इरादों से भरपूर मृत्यु मूलप्रवृत्ति वाले लोग समाज में पीड़ा देने का काम करते है। विध्वंसक कार्यों को अंजाम देते है। फ्रायड ने मनोविज्ञान को उम्दा एवम उच्च कोटि का विषय बनाने में जीवन के आखिरी क्षण तक प्रयास किया। हालांकि जर्मनी के लिपजिग में काम करने के दौरान काफ़ी ख्याति हासिल किए लेकिन जर्मनी में हिटलर की तानाशाही ने उसे जर्मनी छोड़ने को मजबूर किया जहां से वो इंग्लैंड चले गए जहां वो दंत कैंसर के कारण द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 23 सितंबर 1939 को हमेशा के लिए दुनिया छोड़ गए। उनकी प्रमुख कृतियों में ” स्टडीज इन हिस्टीरिया (1895), साइकोपैथोलॉज ऑफ एवरी डे लाइफ (1904), थ्री कंट्रीब्यूशन ऑफ सेक्सुअल थ्योरी (1905), द ओरिजिन एंड डेवलपमेंट ऑफ साइकोएनालिसिस (1910), टोटेम एंड टेबूज (1913), फ्यूचर ऑफ इल्यूजन (1929) आदि प्रमुख है जो मनोविज्ञान के विद्यार्थियो के लिए बहुत ही उपयोगी हैं।