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1973 का ब्लैक बजट बनाम 2025 का डेथ बजट: दो आर्थिक दृष्टिकोणों की कहानी – सिद्धार्थ प्रकाश

By Tamishree Mukherjee

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1973 का ब्लैक बजट बनाम 2025 का डेथ बजट

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सोशल संवाद / डेस्क : 1973 में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंतराव चव्हाण ने जो बजट पेश किया, उसे ब्लैक बजट कहा गया क्योंकि इसमें ₹550 करोड़ का राजकोषीय घाटा था। उस समय भारत आर्थिक मंदी, औद्योगिक बाधाओं और खाद्य संकट से जूझ रहा था, इसलिए यह बजट एक साहसिक प्रयास था जो दीर्घकालिक औद्योगिक विकास और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा।

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मुख्य बिंदु:

• भारी उद्योगों पर जोर: इस बजट में स्टील, कोयला और ऊर्जा जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के लिए बड़ा निवेश किया गया।

  घाटे की पूर्ति से विकास: इसे आलोचना झेलनी पड़ी, लेकिन इसका उद्देश्य मांग को बढ़ाना और औद्योगिक विस्तार को गति देना था।

• आयात निर्भरता में कटौती: घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित कर विदेशी सामानों पर निर्भरता कम करने की नीति अपनाई गई।

• सामाजिक कल्याण योजनाएं: वित्तीय सीमाओं के बावजूद सरकार ने ग्रामीण रोजगार और कृषि विकास को समर्थन देने का प्रयास किया।

हालांकि यह बजट आलोचकों के निशाने पर था, लेकिन इसने आर्थिक सुधारों की नींव रखी, जिससे भारत धीरे-धीरे आधुनिक आर्थिक प्रणाली की ओर बढ़ा।

2025 का डेथ बजट: विकास और स्थिरता को झटका

2025 का बजट एक अलग ही आर्थिक परिदृश्य प्रस्तुत करता है। आलोचकों ने इसे डेथ बजट करार दिया क्योंकि इसमें भारी कराधान, सब्सिडी में कटौती और कठोर आर्थिक उपायों का प्रावधान है, जिससे मध्यम वर्ग और व्यापार जगत पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

मुख्य समस्याएं:

 करों का भारी बोझ: प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि से खपत और आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ेगा।

 कठोर वित्तीय नीति: 1973 के घाटे-आधारित विकास मॉडल के विपरीत, 2025 का बजट घाटे को कम करने के लिए सख्त व्यय कटौती पर केंद्रित है।

• औद्योगिक समर्थन में गिरावट: सरकार ने उद्योगों और स्टार्टअप्स के लिए मिलने वाली सब्सिडी में कटौती का प्रस्ताव रखा है।

• रोजगार के अवसरों में गिरावट: सरकारी खर्च में कमी और निजी निवेश की सुस्ती से रोजगार के अवसर सीमित होंगे।

• सार्वजनिक असंतोष: स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण कल्याण योजनाओं में बजट कटौती के कारण आम जनता में असंतोष बढ़ सकता है।

मुख्य अंतर: विकास बनाम मितव्ययिता

पहलू   1973 ब्लैक बजट     2025 डेथ बजट

वित्तीय दृष्टिकोण     घाटे से संचालित विकास     वित्तीय अनुशासन

कर नीति     मध्यम कर बोझ     भारी कराधान

औद्योगिक समर्थन   सार्वजनिक क्षेत्र को बढ़ावा    औद्योगिक निवेश में गिरावट

रोजगार प्रभाव रोजगार वृद्धि पर जोर नौकरी के अवसर कम

सामाजिक व्यय कल्याण योजनाओं का विस्तार कल्याण योजनाओं में कटौती

आर्थिक दृष्टिकोण    दीर्घकालिक विकास    अल्पकालिक वित्तीय संतुलन

1973 का ब्लैक बजट भारत की दीर्घकालिक आर्थिक ताकत पर दांव था, जबकि 2025 का डेथ बजट घाटे को नियंत्रित करने के नाम पर आर्थिक विकास को दबा सकता है।

इतिहास ने दिखाया है कि घाटे से प्रेरित विकास नीति, यदि सही दिशा में लागू की जाए, तो यह देश को समृद्धि की ओर ले जा सकती है। लेकिन 2025 की नीतियां भारत को आर्थिक ठहराव और संकट की ओर धकेल सकती हैं, जब तक कि इसमें संतुलन और दूरदर्शिता नहीं लाई जाती।

निष्कर्ष: 1973 का ब्लैक बजट और 2025 के डेथ बजट के बीच का अंतर दो आर्थिक विचारधाराओं को दर्शाता है—एक जो विकास पर केंद्रित है, और दूसरी जो अल्पकालिक वित्तीय अनुशासन पर जोर देती है। अब यह भारत पर निर्भर करता है कि वह इन चुनौतियों का सामना कैसे करता है और दीर्घकालिक स्थायी विकास सुनिश्चित करता है।

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