धर्म

बक्सर का अनोखा पंचकोसी परिक्रमा मेला, लिट्टी-चोखा खा कर होती है समाप्ति

सोशल संवाद / डेस्क : बिहार के बक्सर में हर साल एक अनोखा पर्व मनाया जाता है। जिसे पंचकोसी परिक्रमा मेला कहते हैं। इस साल इस मेले की शुरुआत 2 दिसंबर से हुई। पांच दिनों तक चलने वाले इस मेले में देश के अलग-अलग हिस्सों से लाखों लोग पहुंचे। अंतिम दिन लिट्टी चोखा के भोग के साथ मेला का समापन हुआ। इस पंचकोशी परिक्रमा की कहानी रामायणकाल से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि पहली बार भगवान राम ने बक्सर में राक्षसों के वध के बाद पंचकोशी परिक्रमा की थी। तब से यह परंपरा चली आ रही है।

पंचकोसी मेला अपने आप में अद्भुत मेला है।  पांच कोस की दूरी तय करने  वाले इस मेले की शुरुआत बक्सर से सटे अहिरौली से होती है। जहां माता अहिल्या का मंदिर है। दूसरे दिन नदांव, तीसरे दिन भभुअर, चौथे दिन बड़का नुआंव और पांचवे दिन बक्सर के चरित्रवन में मेला लगता है। पांच दिनों में अलग-अलग तरह के पकवान बनाकर भगवान को समर्पित किया जाता है। पांचवें दिन विधिवत मेला समाप्त होता है।

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कहा जाता है, भगवान राम और लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ सिद्धाश्रम आए थे। उस समय उस प्रांत में ताड़का ,सुबाहु और मारीच नामक राक्षसों का आतंक था। श्रीराम ने उन राक्षसों का वध कर इस सिद्ध क्षेत्र में रहने वाले पांच ऋषियों के आश्रम पर आशीर्वाद लेने चले गए। और ताड़का को मारने के बाद जो नारी हत्या का पाप उनपे लगा था उसका भी प्रायश्चित किया । जिन पांच जगहों पर वे गए, वे पंचकोसी के मुख्य पड़ाव बनते गए।  इस दौरान स्थानीय लोगों ने उनका स्वागत, जिस इलाके में जो उपलब्ध था। वहीं देकर किया।  पहला पड़ाव गौतम ऋषि का आश्रम है। जहां उनके श्राप से अहिल्या पत्थर हो गयी थीं। वहाँ उन्होंने माता अहिल्या के पाँव छु कर उनका उद्धार किया।  और फिर उत्तरवाहिनी गंगा में स्नान कर वहा पकवान खाय ।  

दूसरा पड़ाव नदांव में शुरू होता है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक यहां नारद मुनी का आश्रम हुआ करता था। इसी गांव में नर्वदेश्वर महादेव का मंदिर और नारद सरोवर विद्यमान है।यहाँ आने वाले श्रद्धालु खिचड़ी-चोखा बनाकर खाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान राम और लक्ष्मण का स्वागत खिचड़ी-चोखा से हुआ था।

तीसरा पड़ाव भभुअर है। जहां भार्गव ऋषि का आश्रम हुआ करता था। भगवान ने तीर चलाकर यहां तालाब का निर्माण किया था। उसके बाद से इसका नाम भभुअर हो गया। यहाँ श्रद्धालु पूजा अर्चना करने के बाद दही चूड़ा खाते हैं।

चौथा पड़ाव बड़का नुआंव गांव है। जहां उद्दालक मुनी का आश्रम बताया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि यहां माता अंजनी और हनुमान का निवास था। यहां मूली का प्रसाद चढ़ता है।

अंतिम यानि पांचवे दिन चरित्रवन में विश्वामित्र मुनी के आश्रम परिसर में लिट्टी चोखा भोज का आयोजन होता है। यहां श्रद्धालु उपले को जलाकर लिट्टी बनाते हैं। उसके बाद आलू और बैगन के चोखे के साथ उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

आपको बता दे अंतिम दिन का प्रसाद बहुत पवित्र माना जाता है क्यूंकि यह उस पवित्र धरती पर तैयार होता है जहाँ श्री राम और लक्ष्मण के चरण पड़े थे । दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ इस मेले में हिस्सा लेने आते हैं।

Tamishree Mukherjee
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