January 22, 2025 2:40 am

क्या LMV ड्राइविंग लाइसेंस से ट्रांसपोर्ट व्हीकल चला सकते हैं:सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार, कहा- संसद में एक्ट पारित होने का इंतजार नहीं करेंगे

सोशल संवाद /डेस्क : सुप्रीम कोर्ट बुधवार को लाइट मोटर व्हीकल (LMV) लाइसेंस से जुड़े एक मामले की सुनवाई दोबारा शुरू करने को राजी हुई है। इस केस में यह तय किया जाना है कि क्या LMV चलाने का लाइसेंस रखने वाले शख्स को 7,500 kg से कम वजन वाले ट्रांसपोर्ट व्हीकल को चलाने की इजाजत होगी।

दरअसल इस सवाल के चलते कई विवाद खड़े हो रहे हैं। इंश्योरेंस कंपनियां ऐसे क्लेम के पेमेंट पर सवाल उठा रही हैं, जिसमें LMV लाइसेंस धारकों के ट्रांसपोर्ट व्हीकल चलाने से एक्सीडेंट हुआ हो। मामले में पिछली सुनवाई 16 अप्रैल को हुई थी।

संसद के शीत सत्र में पेश होंगे MVA में संशोधन के सुझाव
केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि मोटर व्हीकल एक्ट 1998 में संशोधन के लिए सुझाव लगभग तैयार हैं, उन्हें सिर्फ संसद में पेश किया जाना है। इसे संसद के शीत सत्र में पेश किया जा सकता है। इसके बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई करने को राजी हुई।

इस बेंच में जस्टिस ऋषिकेश रॉय, पीएस नरसिम्हा, पंकज मित्तल और मनोज मिश्रा शामिल हैं। बेंच ने कहा कि उन्होंने इस मामले को कुछ समय पहले ही सुना है, इसलिए संसद में इस एक्ट के संशोधनों के पारित होने का इंतजार किए बिना इस पर सुनवाई करेंगे।

2017 के एक मामले से उठा सवाल
2017 में मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि ऐसे ट्रांसपोर्ट व्हीकल, जिनका कुल वजन 7,500 किलोग्राम से ज्यादा नहीं है, उन्हें LMV यानी लाइट मोटर व्हीकल की परिभाषा से बाहर नहीं कर सकते हैं।

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि इस केस में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को केंद्र ने स्वीकार किया था और फैसले के साथ तालमेल बिठाने के लिए नियमों में बदलाव किए गए थे। ऐसे में अब इसे लेकर केंद्र सरकार का मत जानना जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में लाखों ड्राइवर देवांगन मामले के फैसले के आधार पर काम कर रहे हैं। यह कोई संवैधानिक मामला नहीं है। यह पूरी तरह से कानूनी मामला है। और यह सिर्फ कानून का सवाल नहीं है, बल्कि कानून के सामाजिक प्रभाव का भी सवाल है। हमें ये देखना होगा कि इससे लोगों के सामने कड़ी मुश्किलें खड़ी न हों। हम संविधान बेंच में सामाजिक नीति के मामलों पर फैसला नहीं सुना सकते हैं।

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