सोशल संवाद/डेस्क : जब कभी रावण का जिक्र आता है हमारे दिमाग में 10 सिर जरूर आ जाते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि रावण के 10 सिर नहीं थे, ऐसा बस भ्रम पैदा होता था। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि रावण 6 दर्शन और 4 वेदों का ज्ञाता था इसलिए उसके 10 सिर थे। इस वजह से रावण को दसकंठी भी कहा जाता है।
मान्यता ये भी है कि रावण के 10 सिर बुराई के प्रतीक थे। इन 10 सिर का अलग-अलग मायने भी हैं; इसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेष, घृणा, पक्षपात, अहंकार, व्यभिचार और धोखा शामिल है। शास्त्रों में उल्लेख है कि रावण अपने गले एक माला पेहेनता था जिसमें बड़ी-बड़ी गोलाकार नौ मणियां होती थीं। उन नौ मणियों में उसका सिर दिखाई देता था जिसके कारण उसके दस सिर होने का भ्रम होता था। राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी मायावी या कृत्रिम माना जा सकता है।
रामचरितमानस में वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते थे पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। सोचने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहां पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? यही कारण है की रावण के 10 सर को मायावी कहा जाता था ।