सोशल संवाद /डेस्क (सिद्धार्थ प्रकाश ): भारत सरकार ने एक बार फिर अमेरिका को खुश करने और अपने नए A3 सुनील भारती मित्तल को लाभ पहुंचाने के लिए टेलीकॉम सेक्टर में बड़ा खेल खेला है। बिना नीलामी के स्पेक्ट्रम आवंटन और बीएसएनएल को हाशिए पर धकेलने की यह चाल किसी भी लोकतंत्र में एक घोटाले से कम नहीं। जनता के सामने सब कुछ साफ होते हुए भी सरकार इसे कुशलतापूर्वक छुपाने में लगी है।
स्पेक्ट्रम आवंटन: न नीलामी, न पारदर्शिता
सामान्यत: सार्वजनिक संसाधनों को पारदर्शी नीलामी के जरिए बेचा जाता है, ताकि सरकार को अधिकतम राजस्व मिले। लेकिन मोदी सरकार में यह नियम केवल किताबों में रह गया है। स्पेक्ट्रम, जिसे नीलामी के माध्यम से बेचा जाना चाहिए था, उसे चुपचाप सुनील भारती मित्तल की एयरटेल और मुकेश अंबानी की जियो को सौंप दिया गया, और स्टारलिंक को एक नए साथी के रूप में खड़ा कर दिया गया।
बिना नीलामी के स्पेक्ट्रम देने का मतलब है कि सरकारी खजाने को अरबों का नुकसान और चहेते उद्योगपतियों को सस्ते में बड़ी संपत्ति। इससे सबसे बड़ा नुकसान सरकारी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल को हुआ है, जिसे जानबूझकर कमजोर किया गया, ताकि यह निजी कंपनियों को टक्कर न दे सके। कभी भारत की शान रही बीएसएनएल आज अपनी आखिरी सांसें गिन रही है।
स्टारलिंक–जियो–एयरटेल गठबंधन: किसे क्या मिला?
स्टारलिंक की भारत में एंट्री को एक डिजिटल क्रांति बताया जा रहा है, लेकिन असल में यह एक बेशर्म कॉरपोरेट गठबंधन है। आइए देखें किसे क्या मिला:
सरकार के लिए बुरी खबर, जनता के लिए अच्छी?
मोदी सरकार के लिए यह डील तात्कालिक रूप से फायदेमंद लग सकती है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह देश के लिए घातक सिद्ध होगी। एक तरफ इससे अमेरिका के साथ संबंध मजबूत होंगे और कारपोरेट मित्रों को खुश किया जाएगा, वहीं दूसरी ओर सरकारी कंपनियों का खात्मा होगा और टेलीकॉम सेक्टर में एकाधिकार बढ़ेगा।
जनता को शुरू में सस्ती सेवा का लालच जरूर मिलेगा, लेकिन जब मार्केट में सिर्फ दो ही खिलाड़ी बचेंगे, तब कीमतें मनमाने ढंग से बढ़ाई जाएंगी।
टीवी न्यूज़ की मौत: सेट–टॉप बॉक्स का अंत?
इस डील का सबसे बड़ा अनदेखा प्रभाव टीवी न्यूज़ चैनलों पर पड़ेगा। जैसे ही हाई-स्पीड इंटरनेट हर जगह उपलब्ध हो जाएगा, लोग सेट-टॉप बॉक्स के लिए पैसे क्यों खर्च करेंगे? इंटरनेट पर फ्री न्यूज़, फ्री कंटेंट और वीडियो स्ट्रीमिंग के बाद पारंपरिक न्यूज़ चैनल चलाने वालों की दुकान बंद हो जाएगी।
जब भारत के न्यूज़ चैनल पहले से ही सरकार के दबाव और विज्ञापनदाताओं की पकड़ में हैं, तब इंटरनेट आधारित मीडिया आखिरी उम्मीद बन सकता है। लेकिन असली सवाल यह है कि इंटरनेट का नियंत्रण किसके पास रहेगा? वही जियो और एयरटेल, जिन्होंने अपने मनमुताबिक कंटेंट दिखाने की तैयारी कर ली है। जो बातें सरकार के खिलाफ होंगी, वो दबा दी जाएंगी।
मोदी की गुप्त भूमिका: क्रोनी कैपिटलिज्म का मास्टर प्लान
यह पूरा खेल एक दिन में नहीं रचा गया। इसके लिए वर्षों से माहौल तैयार किया गया:
नतीजा: कौन जीता, कौन हारा?
जीतने वालों की लिस्ट छोटी, लेकिन प्रभावशाली है:
अंत में:
जनता आज सस्ते इंटरनेट की खुशियां मना रही है, लेकिन जब पूरा टेलीकॉम सेक्टर दो कॉरपोरेट्स के हाथ में आ जाएगा, तब उनकी मर्जी से ही कॉल होगी, इंटरनेट मिलेगा और ख़बरें दिखेंगी।
यह घोटाला सिर्फ़ स्पेक्ट्रम तक सीमित नहीं है, यह भारत की डिजिटल स्वतंत्रता को बेचने की शुरुआत है।
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