सोशल संवाद / डेस्क : कैंसर का नाम आते ही मन में डर और चिंता दोनों एक साथ आ जाते हैं। खासकर फेफड़ों का कैंसर, जो न केवल तेज़ी से बढ़ता है, बल्कि शुरुआती लक्षणों को अक्सर नज़रअंदाज़ भी कर दिया जाता है। धूम्रपान करने वालों में यह बीमारी आम हो गई है, लेकिन अब धूम्रपान न करने वाले भी इसकी चपेट में आ रहे हैं।

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फेफड़ों के कैंसर का निदान कैसे किया जाता है?
फेफड़ों के कैंसर का शुरुआती पता लगाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इसके लक्षण सामान्य सर्दी-ज़ुकाम, खांसी या सांस लेने में तकलीफ जैसे लगते हैं। लेकिन अगर ये लक्षण लंबे समय तक बने रहें, तो डॉक्टर से सलाह ज़रूर लें। जाँच की प्रक्रिया इस प्रकार है।
- छाती का एक्स-रे-: फेफड़ों की असामान्य संरचना की जाँच के लिए एक सामान्य पहला कदम।
- सीटी स्कैन : फेफड़ों की बारीकी से जाँच करने के लिए विस्तृत चित्र प्रदान करता है।
- थूक परीक्षण : कैंसर कोशिकाओं का पता लगाने के लिए बलगम का प्रयोगशाला विश्लेषण।
- बायोप्सी : संदेहास्पद क्षेत्रों से नमूने लेकर कैंसर की जाँच की जाती है।
- पीईटी स्कैन / ब्रोंकोस्कोपी : कैंसर के चरण और प्रसार का पता लगाने के लिए उन्नत तरीके।
किस चरण तक मरीज़ की जान बचाई जा सकती है?
चरण 1: कैंसर केवल फेफड़ों तक ही सीमित होता है। इस चरण में पता चलने पर, उपचार के माध्यम से रोगी के बचने की संभावना 70-80 प्रतिशत तक होती है।
चरण 2: कैंसर आस-पास की लिम्फ नोड्स तक फैल चुका होता है, लेकिन उपचार संभव है। ठीक होने की दर लगभग 50 प्रतिशत होती है।
चरण 3: कैंसर छाती के अन्य भागों में फैल चुका होता है। उपचार अधिक कठिन हो जाता है, लेकिन कभी-कभी कीमोथेरेपी और विकिरण से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
चरण 4: यह अंतिम चरण है जहाँ कैंसर शरीर के अन्य भागों में फैल चुका होता है। इस चरण में, उपचार से जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है, लेकिन पूरी तरह से ठीक होना मुश्किल होता है।








