सोशल संवाद डेस्क: बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड चार धामों में से एक है यह बात तो सभी जानते हैं। बद्रीनाथ लगभग 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां से जुड़ी धार्मिक मान्यता है कि, मंदिर में जाने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिलती है। मंदिर समुद्र तल से 10200 फीट की ऊंचाई पर है। मंदिर के ठीक सामने भव्य नीलकंठ चोटी है।
जब इस प्राचीन मंदिर के इतिहास की बात आती है, तो ये कितने वर्ष पुराना है इससे जुड़े कोई पुख्ता तथ्य नहीं हैं। इतिहास की किताबें कहती हैं कि मंदिर वैदिक युग का है जो लगभग 1500 ईसा पूर्व में शुरू हुआ था। मंदिर का उल्लेख कई वैदिक ग्रंथों, पुराणों में मिलता है। यह भी माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया था, आज भी बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं जो रावल कहलाते हैं।
आइये बद्रीनाथ धाम से जुडी कुछ रोचक बाते जानते है
1.बद्रीनाथ के कपाट साल में मात्र 6 महीने ही खुले होते है- बद्रीनाथ मंदिर के कपाट, उत्तराखंड चार धाम यात्रा के दौरान मात्र 6 महीने तक दर्शन के लिए खुलते हैं। लगभग मई माह में कपाट खुलने के बाद दीवाली के बाद मंदिर के कपाट बंद किये जाते है। सर्दियों के दौरान भारी बर्फवारी की वजह से मंदिर, दर्शन के लिए बंद रहता है।
2. मंदिर के स्वर्ण द्वार और सिंहासन- बद्रीनाथ मंदिर के गर्भगृह के द्वार पहले चांदी के थे। लेकिन 12 अक्टूबर 2005 को मुंबई के हीरा व्यवसायी सेठ मोतीराम विशनदास लखी द्वारा मंदिर के द्वार को सोने का बनाया गया था। साथ ही लखी परिवार ने बद्रीनाथ धाम में भगवान बद्रीनाथ को स्वर्ण सिंहासन और गर्भगृह (गर्भगृह), स्वर्ण द्वार की पेशकश की।
3..दिव्य-ज्योत- हर साल भगवान बद्रीनाथ के कपाट बंद होने की स्थिति में मंदिर के अंदर हमेशा एक विशाल दीपक (दीया) जलाया जाता है। कपाट बंद करने पर यह दीया पूरी तरह से तेल से भर दिया जाता है। यह तब तक जलता रहता है जब तक कि कपाट खुल नहीं जाते।
4.चारो युगों से धरती पर है बद्रीनाथ- कहते है सतयुग तक यहां पर हर व्यक्ति को भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुआ करते थे। त्रेता में यहां देवताओं और साधुओं को भगवान के साक्षात् दर्शन मिलते थे। द्वापर में जब भगवान श्री कृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे उस समय भगवान ने यह नियम बनाया कि अब से यहां मनुष्यों को उनके विग्रह के दर्शन होंगे।
5.प्रभु की मूर्ति- मंदिर के गर्भग्रह में भगवान विष्णु के साथ नर नारायण की मूर्ति भी स्थापित है। कहा जाता है कि इन्हें स्पर्श करने का अधिकार केवल केरल के पुजारी को होता है। माना जाता है कि रावल ही इस मूर्ति को छू सकते हैं। लेकिन, दूसरों को स्पर्श करने के लिए मना किया जाता है।
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