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महादेव के इस मंदिर में होता है कई बीमारियों का इलाज, समुद्र मंथन से है नाता

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सोशल संवाद /डेस्क (रिपोर्ट : तमिश्री )-  कहते हैं काशी महादेव की नगरी है जहां खुद महादेव वास करते हैं। वैसे तो वाराणसी काशी विश्वनाथ धाम के लिए प्रसिद्ध है लेकिन वाराणसी में और भी कई मंदिर हैं जो उतने ही दिव्य हैं। ऐसा ही महादेव का एक मंदिर है मृत्युंजय महादेव मंदिर। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और दरनगर से कालभैरव मंदिर के रास्ते में स्थित है। यहां एक प्राचीन कुआं है जिसका धार्मिक महत्व है और ऐसा माना जाता है कि इसका पानी कई बीमारियों का इलाज करता है। ji ha वाराणसी में मृत्युंजय महादेव मंदिर का इतिहास एक प्राचीन कुएं और शिवलिंग से जुड़ा है।

मृत्युंजय शब्द का अर्थ है मृत्यु पर विजय प्राप्त करना। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में शिवलिंग सभी भक्तों को उनकी अप्राकृतिक मृत्यु से दूर रखता है। अप्राकृतिक मृत्यु पर विजय पाने के लिए भक्तों द्वारा मृत्युंजय महादेव की पूजा की जाती है। पूरे भारत से लोग यहां आते हैं और अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए “मृत्युंजय पाठ” करते हैं। मंदिर के परिसर में एक प्राचीन कुआँ है जिसे कूप भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस कुएं के पानी का मानव पर चिकित्सीय प्रभाव पड़ता है।मान्यता है कि जो चल-फिर नहीं सकता उसके कानों में महामृत्युंजय नाम जाने मात्र से वह स्वस्थ होने लगता है।  यह माना जाता है कि इसमें कई भूमिगत जल धाराओं का मिश्रण है और कई बीमारियों को ठीक करने के लिए इसका चमत्कारी प्रभाव है।

चमत्कारी कुएं के पीछे एक और कहानी यह है एक बार धन्वन्तरि वैद्य ने एक रोगी का बहुत इलाज किया, मगर उसे ठीक नहीं कर पाए।एक बार वो भक्त यहां आया और इस कूप का जल पीकर वो ठीक हो गया। बाद में जब धन्वन्तरि को ये बात पता चली तो वो भी इस कूप पर आए और सत्य सिद्द होते देख अपनी सारी जड़ी बूटियां इसी कूप में डाल दीं। तब से लेकर आज तक इस कूप के जल से अनेक असाध्य रोगों का इलाज भी होता है। भक्त पहले मृत्युंजय महादेव के दर्शन कर जल चढ़ाते हैं फिर कूप का जल ग्रहण करते हैं।

पुराणों की मानें तो समुद्र मंथन के समय जब भगवान शिव ने जनमानस के रक्षा के लिए हलाहल विष को पिया तभी उनका एक रूप यहां प्रकट हुआ। तब से लेकर आज तक यहां आने वाला कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटा। भोलेनाथ ने अपनी कृपा से अपनी शरण में आने वाले हर भक्त की झोली भर दी और दे रहे हैं मोक्ष का वरदान।

मंदिर सुबह 4 बजे खुलता है और देर रात 12 बजे बंद हो जाता है। आरती का समय सुबह 5.30 बजे, शाम 6.30 बजे और रात 11.30 बजे है। कहते है देश में कहीं भी महामृत्युंजय का दूसरा मंदिर नहीं है। यहीं नागेश्वर महादेव हैं तो अस्टांग भैरव का विग्रह भी है। गोस्वामी तुलसी दास द्वारा स्थापित हनुमान जी का मंदिर है, प्राचीन पीपल का वृक्ष है तो शनिदेव का मंदिर भी है।

बाबा का साल भर में चार विशेष श्रृंगार होता है। इसमें महामृत्युंजय के साकार रूप का शृंगार सबसे खास होता है। इसमें बाबा की आठ भुजाएं, सिर से चंद्र वर्षा, बगल में बगला मुखी माता विराजती हैं। बगला मुखी माता को बाबा के अर्धांगिनी के रूप में मान्यता प्राप्त है। एक हाथ में रुद्राक्ष की माला तो 4 भुजाओं में कलश होता है।मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से मन की हर कामना पूरी होती है। कहा जाता है कि यदि कोई भक्त लगातार 40 सोमवार यहां हाजिरी लगाए और त्रिलोचन के इस रूप को फूलों के साथ दूध और जल चढ़ाए तो उसके जीवन से कष्टों का निवारण हो जाता है।

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