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सूर्यमंदिर परिसर में संगीतमय श्रीराम कथा के दूसरे दिन शिव-पार्वती विवाह के प्रसंग में भावविभोर हुए श्रोता, शिव बारात में पहुंचे भूत-प्रेत-औघड़

By Tamishree Mukherjee

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सूर्यमंदिर परिसर में संगीतमय श्रीराम कथा के दूसरे दिन शिव-पार्वती विवाह

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सोशल संवाद / जमशेदपुर : सिदगोड़ा सूर्य मंदिर समिति द्वारा श्रीराम मंदिर स्थापना के पंचम वर्षगांठ के अवसर पर सात दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के दूसरे दिन कथा प्रारंभ से पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच व्यास पीठ एवं व्यास का विधिवत पूजन किया गया। सिदगोड़ा स्थित सूर्य मंदिर परिसर के शंख मैदान में चल रहे श्रीराम कथा में पूजन पश्चात श्रीधाम वृंदावन से पधारे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मर्मज्ञ कथा वाचक आचार्य राजेंद्र जी महाराज का श्रद्धापूर्वक स्वागत किया गया। स्वागत के पश्चात कथा व्यास राजेंद्र जी महाराज ने श्रीराम कथा के द्वितीय दिन शिव-पार्वती विवाह प्रसंग का सुंदर वर्णन किया। कथा के दौरान राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सूर्य मंदिर समिति के मुख्य संरक्षक रघुवर दास मुख्यरूप से मौजूद रहे। शिव एवं पार्वती के विवाह प्रसंग से पंडाल पूरी तरह से भक्तिमय नजर आया।कथा के दौरान बीच-बीच में मनोहर गीत प्रस्तुत किया गया।

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कथा में आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने शिव-पार्वती के शुभ विवाह का रोचक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह दिव्य है। माता पार्वती की कठिन तपस्या का परिणाम है कि भगवान शिव ने अपनी शक्ति के रूप में चयन किया। कहा कि माता पार्वती बचपन से ही बाबा भोलेनाथ की अनन्य भक्त थीं। एक दिन पर्वतराज के घर महर्षि नारद पधारे और उन्होंने भगवान भोलेनाथ के साथ पार्वती के विवाह का संयोग बताया। शिव पार्वती के विवाह की कथा का श्रवण कराते हुए आचार्य राजेंद्र जी ने कहा कि नंदी पर सवार भोलेनाथ जब भूत-पिशाचों के साथ बरात लेकर पहुंचे तो माता पार्वती के माता-पिता बारात में सम्मिलित भूत, प्रेत औघड़ को देखकर अचंभित रह गए। भगवान शिव स्वयं नंदी पर विराजमान थे और गले में नाग की माला धारण किए हुए थे। साथ में भगवान विष्णु और ब्रह्माजी भी देवताओं की टोली लेकर चल रहे थे।

त्रिलोक शिव विवाह के आनंद से मगन हो रहा था। हर तरफ शिवजी के जयकारे लग रहे थे। बारात नगर भ्रमण करते हुए देवी पार्वती के पिता राजा हिमवान के द्वार पहुंची। बारात के स्वागत के लिए महिलाएं आरती की थाली लेकर आयीं। भगवान शिव की सासु मां मैना देवी अपने दामाद की आरती उतारने दरवाजे पर पहुंची। भगवान शिव की सामने जब मैना पहुंची तो शिवजी का रूप देखकर चकरा गईं। उस पर शिवजी ने अपनी और लीला दिखानी शुरू कर दी। शिवजी के नाग ने फुफकार मारना शुरू किया तेज हवा से मैने वस्त्र अस्त-व्यस्त होने लगे। मैना वहीं अचेत होकर गिर गईं। मैना को जब होश आया तो उन्होंने शिवजी के साथ अपनी सुकुमारी कन्या देवी पार्वती का विवाह करने से मना कर दिया। मैना ने कहा कि देवी पार्वती सुकुमारी को बाघंबरधारी, भस्मधारी मसानी को नहीं दे सकती। माता को व्याकुल देख पार्वती समझ गईं कि यह सब शिवलीला के कारण हो रहा है।

श्रीराम कथा में उपस्थित श्रद्धालुओं के समक्ष भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के प्रसंग का व्याख्यान करते हुए आचार्य राजेंद्र महाराज ने कहा कि माता-पिता से आज्ञा लेकर देवी पार्वती जनवासे में गईं जहां शिवजी विराजमान थे। देवी पार्वती भगवान शिव से बोली के ‘हे प्रभु आप अपनी लीला समेटिए’ , मेरी माता आपका मसानी रूप देखकर व्याकुल हो रही हैं। हर माता की तरह उनकी भी इच्छा है कि उनका दामाद सुंदर और मनमोहक हो इसलिए आप अपने दिव्य रूप को प्रकट कीजिए।

माता पार्वती की मनोदशा समझकर शिवजी ने अपनी लीला समेट ली और भगवान विष्णु और चंद्रमा ने मिलकर भगवान शिव को दूल्हे के रूप में तैयार किया। भगवान शिव अपने चंद्रमौली रूप को धारण करके सबका मन मोह रहे थे। देवी मैना ने जब शिवजी का चंद्रमौली रूप देखा तो निहारती रह गईं। उन्हें अपने नेत्रों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। वह खुशी-खुशी शिवजी के विवाह की तैयारी करने लगीं और माता पार्वती ने खुशी से भोलेनाथ को पति के रूप में स्वीकार किया। विवाह प्रसंग सुन श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।

कथा में आगे वर्णन करते हुए राजेंद्र जी महाराज ने कहा कि धर्म में भगवान शिव को देवों का देव महादेव माना जाता है। जब सृष्टि की संरचना हुई तो देवों के देव महादेव उसके पहले से मौजूद थे। भारतीय संस्कृति में शिव के अर्धनारीश्वर रूप का भी उल्लेख है। जब शिव की पूजा की जाती है तो जीवन में सुख की अनुभूति होती है। सारे क्लेश मिट जाते हैं। लोगों का आपसी द्वंद्व, लड़ाई समाप्त हो जाता है और इसीलिए विवाह रूपी बंधन के सबसे उत्तम उदाहरण शिव और पार्वती हैं।

कथा के समापन सत्र में मंच संचालन सूर्य मंदिर समिति के सह- कोषाध्यक्ष अमरजीत सिंह राजा ने किया। कल राम कथा के तृतीय दिवस पर श्रद्धा और उत्साह के साथ भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। कथा दोपहर 3:30 बजे से प्रारंभ होती है।

बिरसानगर एवं साकची क्षेत्र के सूर्यभक्तों का हुआ सम्मान: कथा के समापन सत्र में बिरसानगर एवं साकची क्षेत्र में निवास करने वाले सूर्यधाम समिति के सक्रिय सदस्यों को आचार्य राजेंद्र जी महाराज के द्वारा सम्मानित कर आशीर्वाद प्रदान किया गया।

कथा के दौरान राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सह सूर्य मंदिर समिति के मुख्य संरक्षक रघुवर दास, संरक्षक चंद्रगुप्त सिंह, अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह, महासचिव अखिलेश चौधरी, राकेश चौधरी, बबलू गोप, विकास शर्मा, युवराज सिंह, सूरज सिंह, दीपक झा, श्रीराम प्रसाद, बोलटू सरकार, सुशांत पांडा, अमरजीत सिंह राजा, शैलेश गुप्ता, शशिकांत सिंह, रूबी झा, कंचन दत्ता, प्रेम झा, राकेश सिंह, हेमंत साहू, अनूप सिंह, मनीष पांडेय, जितेंद्र मिश्रा, नरेश प्रसाद, अमित गुप्ता, ममता दास, रंजू झा, लकी कौर, कृष्णा शर्मा, गौरीशंकर, राकेश राय समेत अन्य मौजूद रहे।

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