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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा: भारत की कूटनीति का संतुलन, व्यापार का विस्तार और तुर्की के प्रभाव की काट

By Riya Kumari

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PM Narendra Modi's Cyprus visit:

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सोशल संवाद / डेस्क :  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा भारत की पश्चिमी कूटनीति में एक निर्णायक क्षण है। यह दौरा न केवल भारत-साइप्रस संबंधों को नई ऊर्जा देता है, बल्कि वैश्विक कूटनीति में भारत के संतुलनकारी दृष्टिकोण और रणनीतिक सोच को भी दर्शाता है।

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यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब भारत को तुर्की जैसे देशों की वैश्विक मंचों पर दोहराए गए विरोधी रुख़ का सामना करना पड़ता है। साइप्रस, जो स्वयं तुर्की की आक्रामक नीतियों से दशकों से जूझ रहा है, भारत के लिए एक स्वाभाविक कूटनीतिक साझेदार बनकर उभर रहा है।

साइप्रस: इतिहास, भू-राजनीति और भारत से संबंध

1960 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, साइप्रस 1974 में तुर्की के सैन्य हस्तक्षेप का शिकार हुआ, जिससे यह दो भागों में बँट गया—दक्षिण साइप्रस (ग्रीक बहुल और अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त) और उत्तर साइप्रस (तुर्की-समर्थित)।

साइप्रस यूरोपीय संघ का पूर्ण सदस्य है और ग्रीस, इज़रायल, मिस्र जैसे देशों के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी भारत के लिए एक नए त्रिकोणीय सहयोग का अवसर है। भारत ने साइप्रस की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का हमेशा समर्थन किया है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के समय से दोनों देशों के बीच आत्मीयता रही है।

 मोदी की यात्रा: उद्देश्य, रणनीति और संकेत

 राजनयिक संदेश:

भारत वैश्विक मंचों पर तुर्की की बार-बार की गई टिप्पणियों (जैसे कि कश्मीर मुद्दे पर) का सीधा जवाब देने के बजाय रणनीतिक तरीके से ऐसे देशों से संबंध मज़बूत कर रहा है जो तुर्की की आक्रामक नीतियों के शिकार रहे हैं।

 रणनीतिक सहयोग:

प्रधानमंत्री मोदी और साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडुलाइड्स के बीच रक्षा, समुद्री सहयोग, साइबर सुरक्षा, आतंकवाद विरोध और तकनीकी क्षेत्र में गहरे सहयोग की सहमति बनी।

 तुर्की की घेराबंदी का कूटनीतिक विकल्प:

साइप्रस, ग्रीस और इज़रायल जैसे देशों के साथ मिलकर भारत एक ऐसा रणनीतिक नेटवर्क खड़ा कर सकता है, जो न केवल तुर्की के प्रभाव को संतुलित करे बल्कि भारत के वैश्विक हितों की रक्षा करे।

 भारत को साइप्रस से लाभ

  • यूरोपीय बाजार तक आसान प्रवेश
  • डबल टैक्सेशन ट्रीटी द्वारा निवेशकों को कर राहत
  • फिनटेक, शिक्षा, मेडिकल, टूरिज्म और स्टार्टअप्स में सहयोग
  • शिपिंग और समुद्री व्यापार में रणनीतिक केंद्र
  • ग्रीन हाइड्रोजन, सोलर एनर्जी में साझा निवेश की संभावना

 साइप्रस को भारत से लाभ

  • विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था तक पहुँच
  • भारतीय निवेश और व्यापारिक साझेदारों से जुड़ाव
  • वैश्विक मंचों पर समर्थन व सहयोग (UN, WTO आदि)
  • भारतीय स्टार्टअप्स, छात्र और तकनीकी विशेषज्ञों से द्वीप की अर्थव्यवस्था को मजबूती
  • तुर्की के खिलाफ एक सामरिक संतुलन, पर बिना सीधे टकराव के

 भारत-तुर्की संबंध: क्यों जरूरी थी यह यात्रा?

तुर्की ने हाल के वर्षों में संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे मंचों पर भारत के कश्मीर रुख का खुलकर विरोध किया है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन की इस नीति को भारत ने कभी आक्रामक प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन अब वह ‘मूक कूटनीति’ से जवाब दे रहा है।

साइप्रस के साथ मजबूत होते संबंध भारत को पश्चिम एशिया और यूरोप में एक ऐसे ठोस खेमे में लाते हैं जहाँ तुर्की का प्रभाव सीमित है। यह दौरा तुर्की को स्पष्ट संकेत देता है कि भारत अपने विकल्प मज़बूत कर रहा है।

 भू-राजनीतिक स्थिति: भारत का नया संतुलन

  • ग्रीस–साइप्रस–इज़रायल–भारत चौकड़ी: तुर्की की जियो-पॉलिटिकल आक्रामकता के विरुद्ध एक संभावित साझेदारी।
  • साइप्रस: भारत की “Act West Policy” का प्रवेशद्वार
  • भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की संभावना को बल

 प्रमुख समझौते

  • डबल टैक्सेशन ट्रिटी को अपडेट
  • साइबर सुरक्षा और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन सहयोग
  • हरित ऊर्जा (ग्रीन हाइड्रोजन व सोलर) में संयुक्त निवेश
  • शिक्षा और संस्कृति में द्विपक्षीय कार्यक्रम

 सारांश

प्रधानमंत्री मोदी की साइप्रस यात्रा भारत की बहुपक्षीय कूटनीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह न केवल व्यापार, निवेश और सांस्कृतिक सहयोग को विस्तार देती है, बल्कि भारत की तुर्की जैसे राष्ट्रों की नीतियों का जवाब संतुलन और कूटनीति के माध्यम से देने की नियत को भी दर्शाती है।

भारत अब सिर्फ एशिया तक सीमित नहीं, बल्कि मेडिटरेनीयन सागर से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक अपने हितों और प्रभाव को स्थापित कर रहा है—शांतिपूर्वक और साझेदारी के माध्यम से।

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