सोशल संवाद/डेस्क : रिटेल महंगाई घटकर 5 साल 7 महीने के निचले स्तर पर आ गई है। मार्च में ये 3.34% रही। इससे पहले अगस्त 2019 में महंगाई 3.28% पर थी। मार्च से एक महीने पहले यानी, फरवरी में महंगाई 3.61% पर थी। सांख्यिकी मंत्रालय ने आज यानी, मंगलवार 15 अप्रैल को महंगाई के आंकड़े जारी किए।
महंगाई के बास्केट में लगभग 50% योगदान खाने-पीने की चीजों का होता है। इसकी महंगाई महीने-दर-महीने आधार पर 3.75% से घटकर 2.67% हो गई है। वहीं ग्रामीण महंगाई 3.79% से घटकर 3.25% और शहरी महंगाई 3.32% से बढ़कर 3.43% हो गई है।
फरवरी में रिटेल महंगाई:
- फरवरी में महंगाई 7 महीने के निचले स्तर 3.61% पर आ गई थी।
- खाने-पीने की महंगाई महीने-दर-महीने आधार पर 5.97% से घटकर 3.75% हो गई थी।
- ग्रामीण महंगाई 4.59% से घटकर 3.79% और शहरी 3.87% से घटकर 3.32% हो गई थी।
महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है?
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वे ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी।
इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी।
CPI से तय होती है महंगाई
एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI करता है। हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता है।
कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मेन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 300 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।