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संतूर और कथक ने त्रिवेणी कला संगम में रचाया जादू

By Muskan Thakur

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संतूर और कथक ने त्रिवेणी कला संगम में रचाया जादू

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सोशल संवाद/नई दिल्ली: मंडी हाउस स्थित त्रिवेणी कला संगम का मंच उस समय सुर और ताल से गूंज उठा जब कालंगन फ़ाउंडेशन ने भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की एक अविस्मरणीय संध्या का आयोजन किया। कला-प्रेमियों और रसिकों से खचाखच भरे सभागार ने संतूर और कथक की इस अनूठी संगति का भरपूर आनंद लिया।

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कार्यक्रम का शुभारंभ संतूर वादक डॉ. बिपुल कुमार राय (पद्मश्री पं. भजन सोपोरी के शिष्य) ने किया। उन्होंने राग भूपेश्वरी की प्रस्तुति में आलाप, जोर और झाला से शुरुआत कर मध्यलय और द्रुत तीनताल तक अद्भुत निपुणता दिखाई। अंत में मिश्र काफी में एक मनभावन धुन प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्हें तबले पर उस्ताद ज़रग़म अक़रम ख़ान ने सुगठित संगति दी।

दूसरे चरण में प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना शालु श्रीवास्तव अपनी टीम के साथ मंच पर उतरीं। संगति में थे — जयवर्धन दाधीच (गायन), आशीष मिश्रा (तबला), दिव्यांशु कुमार (पखावज), शंभू सिसोदिया (सारंगी) और अंजलि चौहान (पढ़ंत)। उन्होंने “सावरा गिरधर गोपाल” भजन से आरंभ कर तकनीकी बंदिशों, टुकड़ों और परन तिहाइयों की प्रस्तुति दी। “घूँघट” पर उनका अभिनय विशेष आकर्षण रहा, वहीं अंत में “कभी बन सवारकर आ गए” ग़ज़ल ने पूरे सभागार को भावविभोर कर दिया। उनकी शिष्याएँ — आयुषी, जूही, प्रेरणा और त्विशा — ने बसंत ऋतु पर कोरियोग्राफी प्रस्तुत कर कार्यक्रम में रंग भर दिए।

कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने पहुंचे विशिष्ट अतिथि — पं. दीपक महाराज, लोकेश आनंद तथा कला समीक्षक सुश्री चित्रा शर्मा। संध्या का संचालन सुश्री सोमिका श्रीवास्तव ने गरिमापूर्ण अंदाज़ में किया।

यह आयोजन मात्र एक प्रस्तुति नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव था, जहाँ संतूर की मधुर ध्वनियाँ और कथक की भाव-लयात्मक अभिव्यक्ति ने दर्शकों को अविस्मरणीय अनुभव प्रदान किया।

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