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कान क्लासिक में शर्मिला टैगोर की संगत में सत्यजीत रे की फिल्म ‘ अरण्येर दिन रात्रि ‘ का प्रदर्शन

By Tamishree Mukherjee

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कान क्लासिक में शर्मिला टैगोर की संगत में सत्यजीत रे की फिल्म ' अरण्येर दिन रात्रि

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सोशल संवाद / फ़्रांस (अजित राय) : 78 वें कान फिल्म समारोह के कान क्लासिक खंड में भारत के विश्व प्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजीत रे की फिल्म ‘ अरण्येर दिन रात्रि ‘(1969) का प्रदर्शन किया गया।  यह भारत के लिए गौरव का क्षण था। कान के बुनुएल थियेटर में कान फिल्म समारोह के निर्देशक थियरी फ्रेमों ने सत्यजीत रे के साथ इस समारोह के लंबे रिश्ते को याद करते हुए विश्व सिनेमा में उनके योगदान को बेमिसाल बताया। बुनुएल थियेटर दर्शकों से खचाखच भरा था और काफी दर्शक जगह न मिल पाने के कारण वापस लौट गए।इस अवसर पर इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाली शर्मिला टैगोर और सिमी ग्रेवाल भी उपस्थित थी। छह साल के कठिन प्रयास के बाद इस फिल्म को शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर की संस्था फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ( मुंबई) ने रिस्टोर ( संरक्षित) किया है।

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इस समारोह को हालीवुड के दिग्गज फिल्मकार वेस एंडरसन ने होस्ट किया

वेस एंडरसन ने कहा कि कुछ साल पहले उन्होंने सोचा था कि सत्यजीत रे के फिल्म संगीत के साथ कान फिल्म समारोह में वे अपनी एक फिल्म प्रदर्शित करेंगे। इस क्रम में मैंने सत्यजीत रे को जानना शुरू किया जिन्होंने करीब तीस से अधिक फीचर फिल्में और डाक्यूमेंट्री बनाई है। वे एक साथ लेखक, निर्देशक, ग्राफिक डिजाइनर, संगीतकार, उपन्यासकार और कलाकार सबकुछ थे। उनकी यह फिल्म ‘ अरण्येर दिन रात्रि ‘ अमेरिका में कहीं भी उपलब्ध नहीं थी।

मार्टिन स्कारसेसे और हमारी टीम ने बहुत मिहनत करके इसे संरक्षित करने का काम हाथ में लिया। शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर की संस्था फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन साथ में जुड़े और गोल्डन ग्लोब फाउंडेशन का सहयोग मिला। सत्यजीत रे के बेटे संदीप राय ने भी सहयोग किया।सहज कल्पना की जा सकती है कि यदि सत्यजीत रे यह फिल्म अमेरिका में बनाते तो किन कलाकारों को लेते। यह एक क्लासिक उपन्यास की तरह है जिसमें चार शहरी दोस्त एक नए अनुभव के लिए जंगल में जाते हैं। इस प्रकार यह फिल्म शहर और गांव की सभ्यता का चरित्र उजागर करती हैं। यहां चरित्रों का मेमोरी गेम चमत्कृत करता है।  असीम नामक एक गुस्सैल बुद्धजीवी की भूमिका में महान अभिनेता सौमित्र चटर्जी और अपर्णा की भूमिका में महान अभिनेत्री शर्मिला टैगोर तथा एक आदिवासी लड़की दुली की भूमिका में सिमी ग्रेवाल ने बेजोड़ काम किया है। यह फिल्म सिनेमा में अपने समय का दस्तावेज है।

शर्मिला टैगोर ने कहा कि आज 55 साल बाद हम इस फिल्म का संरक्षित प्रिंट देखने जा रहे हैं। मैं इतनी दूर भारत से चलकर इसीलिए यहां आई हू। करीब पचपन साल पहले इसकी शूटिंग मध्य भारत के एक जंगल में हुई थी जहां बहुत तेज गर्मी पड़ती थी और एयर कंडीशनर जैसे सुख सुविधा का कोई साधन नहीं था। हम सब अलग-अलग खपरैल घरों में ठहरे थे। दो शिफ्ट में शूटिंग होती थी, सुबह साढ़े पांच से नौ बजे और शाम को तीन से छह बजे तक। बाकी समय हम अड्डा जमाते थे और एक दूसरे को जानने समझने की कोशिश करते थे और दोस्ती करते थे। बाद में हम सभी अद्भुत दोस्त बन गए। आप जानते हैं कि बंगालियों में अड्डेबाजी बहुत लोकप्रिय है। वहां हमने मानिक दा ( सत्यजीत रे को सब प्यार से मानिक दा बोलते थे) का जन्मदिन मनाया। सिमी ( ग्रेवाल) कोलकाता से केक ले आई। मानिक दा खुद ही कैमरा चला रहे थे क्योंकि उनके सिनेमैटोग्राफर इस फिल्म की शूटिंग के लिए उपलब्ध नहीं थे। वे खुद ही ट्राली से कैमरा इधर-उधर ले जाते थे। इस फिल्म से जुड़े करीब करीब सभी लोग अब इस दुनिया में नहीं है सिवाय मुझे और सिमी को छोड़कर। मेरे लिए उन सारे दोस्तों को फिल्म में एक बार फिर से देखना भावुक क्षण है।

सिमी ग्रेवाल ने कहा कि आज से ठीक 56 साल पहले इसी गर्मी के मौसम में हम जंगल में इस फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। वहां एयर कंडीशनर तो छोड़िए, बिजली और पानी का नल भी नहीं था। वहां कोई शौचालय तक नहीं था। कोई फोन भी नहीं, बाहरी दुनिया से कोई संवाद नहीं था। पर हमें इसकी परवाह नहीं थी क्योंकि हम विश्व के एक महान फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे के साथ काम कर रहे थे। हमारे लिए यह खुशी और आशीर्वाद हीं बहुत था। खासतौर से मेरे लिए इस फिल्म में काम करना मेरे जीवन का सबसे बड़ा गौरव और सम्मान था। मैं बंगाली लड़की नहीं थी और न हीं मुझे बांग्ला भाषा आती थी, फिर भी सत्यजीत रे ने इस फिल्म के लिए मुझे चुना, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी। उन्होंने कहा कि इस फिल्म से सत्यजीत रे के साथ मेरी दोस्ती की शुरुआत हुई और अंत तक चली। उन्होंने मुझे कई खत लिखे जिन्हें मैंने आज भी संभालकर रखा है।

यहां आने से पहले मैं उनके आखिरी खतों को पढ़ रही थी। उन्होंने लिखा था कि अब वे रिटायर हो गए हैं और शांति का जीवन जी रहे हैं पर अरण्येर दिन रात्रि की शूटिंग की यादें अभी भी उनके दिमाग में ताजा है। इस खत के एक साल बाद उनकी मृत्यु हो गई। हम जानते हैं कि फिल्में बनती है और चली जाती है। पर मैं मार्टिन स्कारसेसे, वेस एंडरसन, शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर आदि से कहना चाहती हूं कि हम सबको चाहिए कि क्लासिक फिल्में कभी भी भुलाई नहीं जानी चाहिए जैसे अरण्येर दिन रात्रि हमेशा के लिए अमर है। आपने न केवल सत्यजीत रे के इस मास्टर पीस को रिस्टोर हीं नहीं किया है वल्कि इसे अमर बना दिया है। इससे  युवा पीढ़ी को महान सिनेमा को देखने और अनुभव करने और पसंद करने का अवसर मिलेगा।

फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन के प्रमुख शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने कहा कि यह मेरी प्रिय फिल्म है और इसे रिस्टोर करके मुझे अपार खुशी हो रही है। उन्होंने इस फिल्म के रिस्टोरेशन का सुझाव देने के लिए वेस एंडरसन को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह काम वेस एंडरसन और मार्टिन स्कारसेसे जैसे लोगों के सहयोग के बिना संभव नहीं था।

‘ अरण्येर दिन रात्रि ‘ में मुख्य भूमिकाएं सौमित्र चटर्जी ( असीम), शर्मिला टैगोर ( अपर्णा) अपर्णा सेन ( हरि की पूर्व प्रेमिका), सिमी ग्रेवाल ( दुली), शुभेंदु चटर्जी ( संजोय) समित भांजा ( हरि), काबेरी बोस ( जया) आदि ने निभाई है। इस फिल्म की शूटिंग पलामू ( तब बिहार) झारखंड के जंगल में हुई थी। यह फिल्म बांग्ला के मशहूर लेखक सुनील गंगोपाध्याय के उपन्यास ‘ अरण्येर दिन रात्रि ‘ पर आधारित है। इसके तैंतीस साल बाद गौतम घोष ने इस फिल्म के जीवित कलाकारों को लेकर 2003 में ‘ आबार अरण्ये ‘ नाम से इसकी रीमेक बनाई थी । उन्होंने इसकी शूटिंग भी उसी जगह की थी जहां सत्यजीत रे ने किया था।  

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