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उच्चतम न्यायालय का आदेश: स्ट्रीट डॉग मानवीय और टिकाऊ समाधान ही सही- अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू

By Riya Kumari

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Supreme Court's order Street dogs are the only humane and sustainable solution-- Advocate Sudhir Kumar Pappu

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सोशल संवाद / जमशेदपुर :  रेबीज़ को नियंत्रित करने का एकमात्र सिद्ध और प्रभावी त:रीका है  बड़े पैमाने पर टीकाकरण और नसबंदी। और यह काम कौन कर रहा है? वही फ़ीडर्स और रेस्क्यू करने वाले लोग, जिनको आप दोष दे रहे हैं, जो अपनी जेब से पैसे खर्च कर कुत्तों का टीकाकरण और नसबंदी करा रहे हैं, क्योंकि जिन अधिकारियों पर आप भरोसा करते हैं, उन्होंने यह काम करने की ज़हमत ही नहीं उठाई।

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टीकाकृत और नसबंदी किए हुए कुत्तों को हटाने से उनकी जगह नए, अनटिकाकृत और आक्रामक कुत्ते आ जाएंगे, जिससे रेबीज़ का खतरा और बढ़ेगा। तो अगर आप सच में रेबीज़ और उससे मरने वालों की चिंता करते हैं, तो उन लोगों का साथ दीजिए जो इसे हल करने में लगे हैं, न कि उनका विरोध कीजिए। “अगर आपको इतने प्यार हैं तो घर ले जाइए”  अगर हमारे पास जगह और पैसे होते, तो हम ले जाते। लेकिन फिलहाल हमारे सारे संसाधन इन्हीं कुत्तों का टीकाकरण और नसबंदी करने में लग रहे हैं, ताकि लोगों और कुत्तों दोनों की सुरक्षा हो और तब भी आप समर्थन नहीं देते।

सिर्फ़ दिल्ली में 3 लाख से अधिक कुत्ते हैं। क्या आप समझते हैं कि कुछ गिने-चुने नागरिकों से पूरे देश की दशकों पुरानी समस्या का हल निकालने की उम्मीद रखना कितना बेतुका है? जो लोग असल में कुछ कर रहे हैं, उनका मज़ाक उड़ाना आपकी “दलील” है? ज़रा तर्कसंगत बनिए। मांग कीजिए कि जिन अधिकारियों का काम है, और जिनके लिए आप टैक्स देते हैं, वही टीकाकरण और नसबंदी करें, और जिम्मेदारी से मैनेज करें।

हम डूबते जहाज़ में छेद बंद करने की कोशिश कर रहे हैं; आप हमसे कह रहे हैं कि पूरा जहाज़ घर ले जाओ। दूसरे देशों में आवारा कुत्ते नहीं हैं  और क्यों? क्योंकि उन्होंने लगातार नसबंदी, टीकाकरण और छोड़ने पर सख्त कार्रवाई की न कि एक बार में सब हटाकर। जिन देशों का आप उदाहरण देते हैं, वहाँ काम करने वाली नागरिक व्यवस्था, फंडिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर है। हमारे शहर भी वहाँ पहुँच सकते हैं, लेकिन कुत्तों को भीड़भाड़ वाले, कम फंड वाले शेल्टर में ठूंसकर नहीं, जहाँ ज़्यादातर मर जाते हैं।

भारत में “शेल्टर” का मतलब अक्सर होता है एक भीड़भाड़ वाला शेड, जहाँ कुत्ते भूख, संक्रमण या चोट से मरते हैं। दिखावे में भले आप इसे “रीहोमिंग” या “केयर” कह दें, लेकिन अच्छे नाम के साथ भी क्रूरता, क्रूरता ही रहती है। कुत्तों को हटाना जीत जैसा दिख सकता है, लेकिन असल में यह असफलता की तैयारी है। एक बार जब वे हट जाएंगे, अधिकारी “समस्या सुलझ गई” घोषित कर देंगे, नसबंदी और टीकाकरण का बजट घट जाएगा, और जब नए, अनटिकाकृत कुत्ते आएंगे (और वे ज़रूर आएंगे), तब हमारे पास उन्हें नियंत्रित करने की और भी कम क्षमता होगी।

हम सब साफ़, सुरक्षित सड़कें चाहते हैं। हम सब कम कुत्ते चाहते हैं। लेकिन यह आदेश सही तरीका नहीं है  यह क्रूरता है। जो सोचते हैं कि इससे दिल्ली सुरक्षित होगी, वे भोले हैं। यह सिर्फ़ कुछ समय के लिए दिखावा है, जो ढह जाएगा जैसे ही अनटिकाकृत कुत्ते आ जाएंगे। हमारा लक्ष्य “कुत्तों को हमेशा खुले में घूमने देना” नहीं है। लक्ष्य है  नियंत्रित, टीकाकृत, नसबंदी किए हुए कुत्तों की आबादी, जिसे मानवीय तरीके से और लंबे समय की योजना से संभाला जाए। यह आदेश पहले से किए गए अच्छे काम को मिटा देता है, सार्वजनिक धन बर्बाद करता है, और समस्या को और बदतर बनाता है।

“बस शेल्टर बना देंगे” की गलतफहमी  जो लोग सोचते हैं कि दिल्ली में अचानक लाखों कुत्तों के लिए वर्ल्ड-क्लास सुविधाएं बन जाएंगी, वे भ्रम में जी रहे हैं। अगर अधिकारी सच में सक्षम और इच्छुक होते, तो नसबंदी और टीकाकरण सालों पहले काम कर चुका होता।सस्ती, आसान और सिद्ध प्रक्रिया को भी वे संभाल नहीं पाए, तो आप क्यों सोचते हैं कि वे लाखों जानवरों के लिए शेल्टर बनाएंगे, स्टाफ रखेंगे, और अनिश्चितकाल तक चलाएंगे? सबसे पहले पकड़े और पिंजरे में डाले जाएंगे वही टीकाकृत, नसबंदी किए हुए और शांत कुत्ते, जो अभी रेबीज़ और आक्रामकता को नियंत्रित रख रहे हैं। वे भूख, बीमारी और चोट से मर जाएंगे, क्योंकि हमारे पास लाखों कुत्तों की देखभाल का इन्फ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है।

अब आपकी “खाली” सड़कों पर आ जाएंगे नए, अनटिकाकृत, आक्रामक कुत्ते। इसका मतलब है  ज़्यादा रेबीज़, ज़्यादा काटने के मामले, ज़्यादा अफरा-तफरी। वही चीज़, जिसे हम रोकना चाहते हैं। यह लोगों और कुत्तों के बीच चुनने का मामला नहीं है। यह है काम करने वाले समाधान और क्रूर दिखावे में फर्क करने का मामला। हमारे पास पहले से एक सिद्ध, मानवीय सिस्टम है, जो रेबीज़ और कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करता है  बस उसे बड़े स्तर पर लागू करने की ज़रूरत है। इसे छोड़कर एक असंभव, अल्पकालिक ड्रामे का पीछा करना न सिर्फ़ कुत्तों के साथ, बल्कि दिल्ली के लोगों के साथ भी धोखा है। वह बच्चा जो रेबीज़ से मरा, वे बुजुर्ग जो अब और ज़्यादा अनटिकाकृत कुत्तों के सामने होंगे  सबकी सुरक्षा खतरे में है।

अगर सच में सुरक्षित सड़कें, कम काटने के मामले, और रेबीज़-मुक्त शहर चाहिए, तो हमें क्षमता चाहिए  न कि इस दिखावे में भागीदारी। आप छत के रिसाव को पानी भरकर नहीं रोकते, और आप रेबीज़ को उन कुत्तों को मारकर नहीं रोक सकते जो इसे रोक रहे हैं। यह आदेश “साहसी” या “व्यावहारिक” नहीं है  यह आलसी, क्रूर और खतरनाक है। अगर आप इसका समर्थन करते हैं, तो आप समस्या हल नहीं कर रहे। आप समस्या का हिस्सा हैं।

आज ही सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सही रास्ता वही है  नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को वापस उनकी जगह छोड़ा जाए, आक्रामक और रेबीज़ से संक्रमित कुत्तों को अलग रखा जाए, और फ़ीडिंग केवल निर्धारित पॉइंट्स पर ही हो, न कि सड़कों पर। यह आदेश इस बात की गवाही है कि समाधान मानवीय, टिकाऊ और वैज्ञानिक नीति में है, न कि दिखावटी और क्रूर कदमों में। अदालत ने वही दोहराया है जिसे हम बरसों से कह रहे हैं कुत्तों को हटाना नहीं, बल्कि व्यवस्थित और ज़िम्मेदार मैनेजमेंट ही रेबीज़ और बाइट केसों को कम करेगा। अब यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि इस दिशा में सरकार पर अमल कराने का दबाव बनाएँ, ताकि दिल्ली और पूरे भारत में सचमुच सुरक्षित, रेबीज़-मुक्त और मानवीय समाज बने।

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