March 22, 2025 9:00 am

भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखना और उधारी के बोझ को कम करना है –  फॉक्स पेट्रोलियम ग्रुप के अध्यक्ष, डॉ. अजय कुमार

फॉक्स पेट्रोलियम ग्रुप के अध्यक्ष, डॉ. अजय कुमार

सोशल संवाद / डेस्क ( रिपोर्ट – सिद्धार्थ प्रकाश ) : डॉ. अजय कुमार, पीएचडी, अध्यक्ष, फॉक्स पेट्रोलियम ग्रुप के विचार बजट 2025 से पहले भारत में आगामी बजट 2025 को लेकर व्यापार जगत और आम नागरिकों में काफी उम्मीदें हैं। इस संदर्भ में फॉक्स पेट्रोलियम ग्रुप के अध्यक्ष, डॉ. अजय कुमार ने कुछ महत्वपूर्ण विचार साझा किए हैं। उनका मानना है कि इस बजट में सरकार को आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता और समृद्धि मिल सके।

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डॉ. अजय कुमार का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखना और उधारी के बोझ को कम करना है। भारत की बढ़ती जनसंख्या, उच्च कर्ज़ और वैश्विक मंदी के कारण आगामी समय में अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ सकता है। ऐसे में सरकार को एक मजबूत वित्तीय योजना बनानी होगी, जो न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा दे, बल्कि वित्तीय घाटे को भी कम करे। उन्होंने विशेष रूप से कर्ज़ के बढ़ते बोझ और ब्याज दरों में हो रही वृद्धि की तरफ इशारा किया।

2025 का भारतीय बजट: आर्थिक चुनौतियों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश

भारत 2025 के केंद्रीय बजट के पेश होने का इंतजार कर रहा है, और नागरिकों को वित्तीय स्थिरता, कर सुधार, और सार्वजनिक खर्च में वृद्धि जैसे उपायों की उम्मीद है। लेकिन एक बड़ा सवाल सभी के मन में है: पैसा आएगा कहां से? निवेशक 1929 जैसी महामंदी की संभावना को लेकर चिंतित हैं, और इसका प्रमुख कारण है भारत की बढ़ती जनसंख्या और यहाँ की 96% गरीब आबादी। अगर भारत में ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो इसका अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। इसके साथ ही, इस संकट से बचने के लिए कैश रखने का महत्व भी बढ़ जाता है।

आर्थिक चुनौतियां

डॉ. अजय कुमार ने हाल ही में भारतीय अर्थव्यवस्था में आ रही समस्याओं पर भी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि भारत का सरकारी और कॉर्पोरेट क्षेत्र दोनों ही कर्ज़ में डूबे हुए हैं, और ब्याज चुकाने के लिए नए कर्ज़ लेने की प्रक्रिया में सरकार फंसी हुई है। इस स्थिति को सुधारने के लिए सरकार को अपने कर्ज़ को नियंत्रित करने और स्थिरता बनाए रखने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर समय रहते इस दिशा में सही कदम नहीं उठाए गए, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकता है।

भारत की वित्तीय स्थिति गंभीर दबाव में है। सरकार और कॉर्पोरेट क्षेत्र दोनों भारी कर्ज से जूझ रहे हैं। वित्त वर्ष 2024 में भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 5.9% था। वहीं, बैंकों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की समस्या बनी हुई है, जिससे कॉर्पोरेट ऋण का बोझ बढ़ रहा है।

सरकार की कुल आय का लगभग 40% हिस्सा ब्याज चुकाने में ही खर्च हो रहा है। यह पैसा विकास और कल्याणकारी योजनाओं के लिए इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। नई उधारी लेकर पुराने कर्ज का ब्याज चुकाने की यह प्रक्रिया एक कर्ज चक्र (Debt Spiral) में बदलती जा रही है।

1929 जैसी मंदी क्यों आ सकती है?

1.वैश्विक कर्ज का बोझ:

आजकल दुनिया भर में सार्वजनिक और निजी कर्ज का स्तर अभूतपूर्व ऊंचाई पर है। केंद्रीय बैंक, जैसे कि भारत का रिजर्व बैंक, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं, जो कर्ज में कमी और आर्थिक मंदी का कारण बन सकता है।

2.बाजारों का अधिक मूल्यांकन:

भारत समेत कई देशों के शेयर बाजार ऐतिहासिक रूप से ऊंचे मूल्यांकन पर ट्रेड कर रहे हैं। अगर बाजार में गिरावट आती है तो यह निवेशकों के लिए बड़े नुकसान का कारण बन सकती है।

3.वैश्विक मंदी:

वैश्विक व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला की समस्याओं, साथ ही भू-राजनीतिक तनावों ने विश्व अर्थव्यवस्था को मंद कर दिया है। अगर बड़ी अर्थव्यवस्थाएं जैसे अमेरिका और यूरोप संकट में पड़ती हैं, तो इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ सकता है।

भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

1.गरीबी और असमानता में वृद्धि:

भारत की 96% जनसंख्या आर्थिक रूप से कमजोर है। ऐसी स्थिति में बेरोजगारी बढ़ने, उपभोक्ता खर्च में कमी आने और लाखों लोगों के गरीबी रेखा के नीचे चले जाने की संभावना है।

2. शेयर बाजार में गिरावट:

भारतीय शेयर बाजार एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) के निवेश पर निर्भर करता है। अगर ये निवेशक अपने पैसे निकालते हैं, तो सेंसेक्स और निफ्टी जैसी प्रमुख सूचकांकों में गिरावट आ सकती है, जिससे निवेशकों का धन घट सकता है।

3. रुपये की कमजोरी और महंगाई:

ऐसी मंदी के दौरान पूंजी पलायन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे रुपया कमजोर हो सकता है। इससे आयात महंगे हो जाएंगे और महंगाई बढ़ सकती है, जो विशेष रूप से पेट्रोल, खाद्य वस्तुओं जैसे आवश्यक सामानों की कीमतों पर प्रभाव डालेगा।

4. बैंकिंग क्षेत्र पर दबाव:

भारतीय बैंक पहले से ही गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) से जूझ रहे हैं। अगर संकट के दौरान कंपनियाँ और उधारकर्ता ऋण चुकाने में असमर्थ होते हैं, तो इससे बैंकिंग क्षेत्र में और अधिक दबाव बढ़ेगा।

5. लोकतांत्रिक व्यवस्था पर खतरा:

आर्थिक संकट सामाजिक असंतोष को बढ़ा सकता है, जिससे विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है। यह भारत की लोकतांत्रिक संरचना के लिए खतरे का संकेत हो सकता है।

कैश क्यों रखना चाहिए? डॉ. अजय कुमार ने निवेशकों को सलाह दी है कि वे आने वाले समय में संभावित आर्थिक संकट के कारण, अपने निवेश पोर्टफोलियो में विविधता बनाए रखें। उन्होंने कैश रखने के महत्व पर बल दिया, क्योंकि संकट के दौरान तरलता सबसे महत्वपूर्ण होती है। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय जनता को आर्थिक संकट से बचने के लिए अपने खर्चों को नियंत्रित करने और भविष्य के लिए अधिक सोच-समझ कर निवेश करने की आवश्यकता है।

  1. तरलता (Liquidity) सबसे महत्वपूर्ण है:

संकट के समय, कैश होने से आप तत्काल आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं और संकट के बाद कम कीमतों पर अच्छे निवेश का लाभ उठा सकते हैं।

  • बाजार के उतार-चढ़ाव से बचाव:

कैश रखने से आप बाजार की उथल-पुथल से बच सकते हैं, और आपके पास अपनी संपत्ति की सुरक्षा करने का एक तरीका होता है।

  • अनिश्चितता से बचाव:

भारत में जहां अधिकांश लेन-देन नकद में होते हैं, कैश आपको विकट परिस्थितियों में आवश्यक चीजों तक पहुंच प्रदान करता है।

विदेशी निवेशकों का पलायन और वैश्विक दबाव

भारत के पूंजी बाजार का एक अहम स्तंभ, विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs), देश से धन निकाल रहे हैं। 2024 में, FIIs ने भारतीय शेयर बाजार से ₹1.5 लाख करोड़ ($18 बिलियन) से अधिक की निकासी की। इसके अलावा, अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और निर्यात पर असर डालने वाले नए नियमों ने स्थिति को और खराब कर दिया है।

क्षेत्रों में गिरावट: खतरे की घंटी

देश के कई आर्थिक क्षेत्र धीमी गति से आगे बढ़ रहे हैं, जो एक चिंताजनक संकेत है:

विनिर्माण (Manufacturing): प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना का विस्तार होने के बावजूद, 2024 में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि 4.5% तक सीमित रही।

रियल एस्टेट: ऊंची ब्याज दरों और कमजोर बाजार धारणा के कारण निवेश घटा है।

कृषि: अनियमित मानसून और सिंचाई ढांचे में निवेश की कमी से किसान परेशान हैं।

प्रौद्योगिकी (IT): वैश्विक आईटी खर्च में गिरावट के कारण सॉफ्टवेयर निर्यात राजस्व प्रभावित हुआ है।

नागरिकों की उम्मीदें

इस मुश्किल समय में लोग राहत की उम्मीद कर रहे हैं। व्यवसायों के लिए कम ब्याज दर पर फाइनेंसिंग, मध्यम वर्ग के लिए कर राहत, और कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से रोजगार सृजन सबसे बड़ी मांग है। PLI और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को मजबूत करना भी निर्यात और विनिर्माण को पुनर्जीवित करने के लिए बेहद जरूरी है।

सरकार का रास्ता

सरकार निवेश को बढ़ावा देकर, खर्च को नियंत्रित करके, और लक्षित सार्वजनिक खर्च के माध्यम से इन चुनौतियों से निपटना चाहती है। लेकिन यह रास्ता आसान नहीं है:

आय बढ़ाना: दिसंबर 2024 में ₹1.8 लाख करोड़ का GST संग्रह एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन राजकोषीय घाटे को भरने के लिए यह पर्याप्त नहीं है।

खर्च पर नियंत्रण: सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना और कल्याणकारी योजनाओं को बेहतर तरीके से लक्षित करना जरूरी है।

• निवेश को प्रोत्साहन: सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSUs) के निजीकरण में तेजी लाना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना आवश्यक है।

स्थिति कितनी गंभीर है?

भारत की अर्थव्यवस्था एक नाजुक दौर से गुजर रही है। कर्ज का GDP अनुपात 90% के करीब पहुंच चुका है, जिससे वित्तीय सुधारों की गुंजाइश कम होती जा रही है। वैश्विक आर्थिक मंदी और भू-राजनीतिक तनाव ने भारत की कमजोरियों को और बढ़ा दिया है।

निष्कर्ष

डॉ. अजय कुमार का मानना है कि आगामी बजट 2025 में सरकार को अपनी नीतियों और योजनाओं के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर और विकसित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। यदि इन योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है, तो भारत की अर्थव्यवस्था न केवल वैश्विक मंदी से उबर सकती है, बल्कि अगले कुछ वर्षों में तेजी से विकास भी कर सकती है। भारत को आत्मनिर्भर बनाने और उसकी समृद्धि में योगदान देने के लिए इस बजट के निर्णय महत्वपूर्ण होंगे।

भारत की अर्थव्यवस्था एक नाजुक स्थिति में है, और 1929 जैसी मंदी की आशंका के बीच, सरकार और नागरिकों को मिलकर इस संकट से बचने के उपायों पर काम करना होगा। अगर सही कदम उठाए जाते हैं तो भारत आर्थिक सुधार की दिशा में आगे बढ़ सकता है, लेकिन इसके लिए सरकार को पारदर्शिता, जवाबदेही और मजबूत नीतियों की जरूरत होगी। क्या सरकार और जनता इस संकट का सामना करने के लिए तैयार हैं? 2025 का बजट केवल एक वित्तीय दस्तावेज नहीं है; यह भारत को इस कठिन दौर से निकालने का खाका भी है। नीतिगत बदलाव और साहसिक निर्णयों के माध्यम से ही इस संकट से उबरा जा सकता है। सवाल यह है: क्या भारत इस चुनौती का सामना कर पाएगा?

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