सोशल संवाद / डेस्क ( सिद्धार्थ प्रकाश ) :
प्रमुख बिंदु:
- 2015 से 2020 के बीच मोदी ने बिहार के लिए करीब 10 ठोस वादे किए, लेकिन इनमें से कई अधूरे रह गए, खासकर नौकरियों और आवास के मामले में।
- 2025 के लिए संभावित नए वादे बुनियादी ढांचे और युवाओं पर केंद्रित हो सकते हैं, हालिया रुझानों को देखते हुए।
- बिहारियों में मोदी को लेकर अविश्वास बढ़ा है, खासकर बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण।
वादों का सच और हकीकत की तस्वीर
2013 से अब तक, नरेंद्र मोदी के बिहार को लेकर किए गए वादों का विश्लेषण किया जाए तो 2014 और 2019 के आम चुनावों में राष्ट्रीय स्तर के संकल्प सामने आए, लेकिन 2015 और 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में कुछ राज्य-विशेष वादे किए गए।
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2015 के विधानसभा चुनाव में वादे
- दलित और महादलित परिवारों को मुफ्त रंगीन टीवी सेट।
- 50,000 छात्रों को लैपटॉप।
- 5,000 मेधावी लड़कियों को स्कूटी।
- 24×7 बिजली आपूर्ति।
- रोजगार सृजन।
हालांकि, बीजेपी चुनाव हार गई, इसलिए इन वादों पर अमल नहीं हुआ। 2017 में नीतीश कुमार के फिर से बीजेपी के साथ आने के बाद कुछ योजनाओं पर काम शुरू हुआ, लेकिन कोई ठोस आँकड़ा उपलब्ध नहीं है।
2020 के विधानसभा चुनाव में वादे:
- 19 लाख नौकरियाँ।
- सभी को मुफ्त COVID-19 टीकाकरण (राष्ट्रीय स्तर पर लागू हुआ)।
- 30 लाख लोगों के लिए पक्के घर।
- इनमें से आवास योजना में कुछ प्रगति दिखी, लेकिन नौकरियों के मामले में स्थिति निराशाजनक रही।
2025 के लिए संभावित नए वादे
आने वाले चुनाव में मोदी सरकार बिहार में सड़क, पुलों और युवाओं के लिए रोजगार योजनाओं का वादा कर सकती है। 2024 के बजट में बिहार के लिए कुछ धन आवंटित किया गया है, जिससे कृषि और बुनियादी ढाँचे पर ध्यान देने की संभावना है। हालांकि, यह महज अटकलें हैं, क्योंकि पिछली घोषणाओं की तरह ये भी हवा-हवाई हो सकते हैं।
मोदी और उनकी सरकार पर बिहारियों का अविश्वास क्यों?
- झूठे रोजगार के दावे: 19 लाख नौकरियों का वादा अभी भी अधूरा है। बेरोजगारी चरम पर है और सरकारी आँकड़े भी इसे नकार नहीं सकते।
- भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप: बिहार में एनडीए सरकार के दौरान कई घोटाले उजागर हुए, जिससे सरकारी योजनाओं पर से जनता का भरोसा उठा है।
- राजनीतिक पलटीबाज़ी: नीतीश कुमार के बार-बार पाला बदलने से बीजेपी और जेडीयू की साख को गहरा धक्का लगा है।
- विकास का अभाव: बिहार अब भी सड़क, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा में पीछे है, जबकि मोदी सरकार ने कई बार बड़े-बड़े दावे किए थे।
वादों की सच्चाई पर निष्कर्ष
| वर्ष | वादा | स्थिति |
| 2015 | मुफ्त टीवी सेट | अधूरा |
| 2015 | 50,000 छात्रों को लैपटॉप | आंशिक रूप से लागू |
| 2015 | 5,000 लड़कियों को स्कूटी | आंशिक रूप से लागू |
| 2015 | 24×7 बिजली आपूर्ति | अधूरा |
| 2015 | रोजगार सृजन | असफल |
| 2020 | 19 लाख नौकरियाँ | अधूरा |
| 2020 | मुफ्त COVID टीकाकरण | पूरा (राष्ट्रीय स्तर पर) |
| 2020 | 30 लाख पक्के घर | आंशिक रूप से लागू |
यह साफ़ दिखता है कि मोदी सरकार के वादे ज़्यादातर दिखावे तक ही सीमित रहे हैं। बिहार के लोगों के लिए “अच्छे दिन” अब भी एक छलावा बने हुए हैं। बिहार को खोखले नारों की नहीं, ठोस नीतियों और जवाबदेही की ज़रूरत है। सवाल यह है कि क्या 2025 में जनता फिर से इन्हीं झूठे वादों के जाल में फँसेगी, या इस बार जवाब मांगेगी?