सोशल संवाद/डेस्क : बाजार में दूध खरीदते समय आजकल “A1” और “A2” लेबल वाले पैकेट तेजी से दिखाई देते हैं। कंपनियाँ इन्हें स्वास्थ्य के लिहाज से अलग और बेहतर बताती हैं, जबकि ग्राहक इनमें से किसे चुनें इस उलझन में रहते हैं। हाल ही में खाद्य नियामक FSSAI ने भी इस लेबलिंग को लेकर कंपनियों को चेताया है कि उपभोक्ता भ्रमित न हों। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि A1 और A2 दूध के पीछे का असली विज्ञान क्या है, और क्या यह वाकई हमारे स्वास्थ्य पर कोई महत्वपूर्ण असर डालता है।

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A1 और A2 दूध में फर्क क्या है?
दूध में मौजूद प्रोटीनों में से एक प्रमुख प्रोटीन है बीटा-केसीन। इसी प्रोटीन के प्रकार के आधार पर दूध को A1 और A2 में बांटा जाता है।
- A1 बीटा-केसीन मुख्य रूप से कुछ विदेशी नस्ल की गायों जैसे होल्स्टीन और फ्राइज़ियन में पाया जाता है।
- A2 बीटा-केसीन भारतीय देसी नस्ल की कई गायों और कुछ अन्य देशों की जर्सी जैसे ब्रीड में अधिक पाया जाता है।
प्रोटीन की यह मामूली-सी जेनेटिक भिन्नता ही इन दोनों तरह के दूध को अलग बनाती है। पोषण के लिहाज से दोनों में कार्बोहाइड्रेट, वसा और विटामिन लगभग समान होते हैं।

पाचन पर क्या असर पड़ता है?
अक्सर दावा किया जाता है कि A1 दूध पेट में पचने के दौरान एक विशेष पिप्टाइड बनाता है, जिससे कुछ लोगों में
- पेट भारी लगना
- गैस
- सूजन
- असहजता
जैसी परेशानियाँ हो सकती हैं। इसी कारण कहा जाता है कि A2 दूध अपेक्षाकृत अधिक “जेंटल” होता है और ज़्यादा लोगों के लिए आसानी से पच सकता है।
लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि हर व्यक्ति की पाचन क्षमता अलग होती है। यह नहीं कहा जा सकता कि A1 दूध सभी के लिए खराब है या A2 दूध सभी के लिए बेहतर।
वैज्ञानिक प्रमाण अभी सीमित हैं
A1 और A2 दूध को लेकर दुनिया भर में कई शोध हुए हैं, जिनमें से कुछ में A1 दूध से संभावित असहजता का संकेत मिला है। लेकिन इन दावों को सार्वभौमिक रूप से सिद्ध नहीं माना गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि:
- उपलब्ध शोध अभी पर्याप्त नहीं हैं
- नमूने छोटे रहे हैं
- और कई परिणामों में विरोधाभास भी पाया गया है
इसलिए, इस विषय पर अभी तक स्पष्ट वैज्ञानिक सहमति नहीं बनी है।
FSSAI की भूमिका और उपभोक्ता सुरक्षा
जब यह ट्रेंड भारत में तेजी से बढ़ने लगा, तो FSSAI ने ध्यान दिया कि कई कंपनियाँ A1-A2 दूध, घी, दही और अन्य उत्पादों पर इस आधार पर प्रीमियम चार्ज कर रही हैं, जबकि इसका स्पष्ट मानक भारतीय नियमों में मौजूद नहीं है।
इसी कारण:
- नियामक ने कंपनियों को भ्रामक दावे करने से बचने को कहा
- उपभोक्ताओं को सचेत रहने की सलाह दी
- और इस विषय पर व्यापक अध्ययन की आवश्यकता बताई
बाद में चर्चा के लिए सलाह वापस भी ली गई, लेकिन यह संकेत स्पष्ट है कि A1–A2 लेबलिंग अभी वैज्ञानिक रूप से ठोस आधार पर खड़ी नहीं है।

मार्केटिंग या स्वास्थ्य—कहां खड़ा है A2 दूध?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि A2 दूध का ट्रेंड काफी हद तक मार्केटिंग-ड्रिवन है। कंपनियाँ देसी नस्ल या A2 प्रोटीन के नाम पर उत्पादों को “प्रीमियम” बताकर बेचती हैं।
हालाँकि, ग्राहक यह मानकर महंगा दूध खरीदते हैं कि यह सामान्य दूध से ज्यादा स्वास्थ्यकर है जो हर मामले में सही नहीं है।
दूसरी ओर, यह भी सच है कि कुछ लोगों को सामान्य दूध से असहजता होती है और वे A2 दूध आजमाने पर बेहतर महसूस कर सकते हैं। इसलिए A2 दूध कुछ व्यक्तियों के लिए उपयोगी हो सकता है, पर इसे सभी के लिए श्रेष्ठ कहना उचित नहीं।
क्या चुनें? आपका शरीर बताएगा
विशेषज्ञों के अनुसार, सबसे बेहतर तरीका यह है कि आप:
- अपने पाचन की प्रतिक्रिया देखें
- यदि दूध से समस्या होती है, तो A2 एक विकल्प की तरह ट्राई कर सकते हैं
- यदि कोई समस्या नहीं है, तो A1 या A2 का फर्क आपके लिए बहुत मायने नहीं रखता
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि दूध विश्वसनीय स्रोत से आए और शुद्ध हो।
A1 और A2 दूध का मुद्दा दिखने में सरल लगता है, लेकिन इसमें विज्ञान, उपभोक्ता जागरूकता और मार्केटिंग—तीनों का मिश्रण है। A2 दूध कुछ लोगों के लिए पाचन में फायदेमंद हो सकता है, लेकिन इसे सार्वभौमिक रूप से स्वस्थ विकल्प कहना वैज्ञानिक रूप से अभी सही नहीं है।
खरीदते समय यह याद रखें कि:
- दूध का पोषण दोनों में लगभग समान है
- फर्क प्रोटीन के प्रकार में है
- और निर्णय आपकी व्यक्तिगत सहनशीलता पर निर्भर करता है
आख़िरकार, कौन सा दूध बेहतर है—इसका सबसे सही जवाब आपका शरीर खुद देगा।








