ये योगी 5000 साल से माने जाते है जीवित, मृत व्यक्ति को जीवित कर देने में है सक्षम

 सोशल संवाद / डेस्क (रिपोर्ट: तमिश्री )- श्यामाचरण लाहिरी ,जिन्हें लाहिरी महाशय कहा जाता है , एक अध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने गृहस्थ लोगों के बीच क्रियायोग को लोकप्रिय बनाने का काम किया था। उन्होंने साधना के नियमों को सरल बनाया, ताकि अपने कामों के बीच साधना मार्ग पर चल कर लोग परमात्मा को जान सकें। “क्रिया योग एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से मानव विकास की प्रकिया को तेज़ किया जा सकता है। क्रिया योग एक प्राचीन ध्यान की तकनीक है, जिससे हम प्राण शक्ति और अपने श्वास को नियंत्रण में ला सकते हैं। यह तकनीक एक व्यापक आध्यात्मिक जीवन का हिस्सा है, जिसमे शामिल हैं अन्य ध्यान कीं तकनीक अवं सात्विक जीवन शैली।

ये एक वैज्ञानिक  तकनीक है जो हमारे पूर्वजो को अच्छे से ज्ञात थी। शतकों तक इसका रहस्य छुपा हुआ था।यह तकनीक 1861 में  पुनर्जीवित  हुई लाहिरी महाशय  द्वारा।लाहिड़ी महाशय ने फिर यह तकनीक अपने शिष्यों को सिखाई, जिनमे से एक स्वामी श्री युक्तेश्वर जी थे, जिन्होंने अपने शिष्यों को यह तकनीक सिखाई, जिनमे से एक परमहंस योगानंद जी थे।

योगानंद जी ने फिर अपनी किताब ‘एक योगी की आत्मकथा’ के द्वारा और पश्चिमी देशों में इसके शिक्षण द्वारा क्रिया योग को प्रचलित किया।

अब लाहिरी महाशय को किसने सिखाई , इसके पीछे एक रोचक कहानी है। दरअसल बात ये है की श्यामचरण लाहिरी एक मामूली अकाउंटेंट हुआ करते थे British gov of India के।एक दिन उनके सीनियर  ने उन्हें रानीखेत की पहाड़ो आर्मी बेस में ट्रान्सफर कर दिया। लाहिरी जी भी घोड़े पर स्वर होकर चल पड़े 500 मिल कि यात्रा पर । लाहिरी जी को ये to पता था की इन वादियों में सिद्ध साधुओ का वास है। उन्ही वादियों से गुज़रते हुए उन्हें एक अजीब सी आवाज़ सुनाई दी जो उनका नाम पुकार रही थी। उन्होंने उसी आवाज़ का पिचा करना शुरू कर दिया।पर वो आवाज़ उन्हें अंधेरो में ले जा रही थी।दर गए थे वो ये सोचकर की सायद उस अँधेरे से उजाला उन्हें नहीं मिल पायगा । डरे सहमे होते हुए भी वे पहाड़ो की उंचाई पर जाते रहे , जहा उन्हें एक अध्यात्मिक और दैवीय अनुभूति का एहसास हुआ।

वहाँ  एक लम्बे चौधे साधू खड़े थे।जिनके ताम्बे की रंग की तरह बाल थे, और उनके आस पास रहने से ऐसा महसूस हो रहा था मानो किसी देवता के सम्मुख खड़े हो। लाहिरी जी उनको देख कर भौचक्के रह गए , उन्हें समझ नहीं आ रह था की उनके सामने ये योगी की तरह दिखने वाले दैवीय शक्ति के धारण करता है कौन । उसके बाद उस पुण्यात्मा ने कहा , तुम आ गए लाहिरी।

इसके बाद वो योगी देव उन्हें अपनी गुफा में ले गए । और लाहिरी जी से पुचा की उन्हें ये गुफा याद है या नहीं। लाहिरी जी को तो  ये भी नहीं समझ आ रहा था की उनके भीतर और बहार चल क्या रहा था।उसके बाद योगी देव ने उनके कपाल में हाथ रखा उसके बाद जो हुआ वो दुनिया के सबसे बड़े रहस्यों से कम नहीं है।

कहते है योगी देव ने उनके कपाल को छूटे ही लाहिरी जी को अपना पूर्व जन्म याद आया , साथ ही वो सारे जन्म याद आय जो उनकी आत्मा ने अलग अलग शारीर धारण कर किये थे। अपने आत्मा की हर एक तय किये हुए सफ़र को जानने के साथ ही वो ये भी जाने की सामने खड़ा वो सिद्ध पुरुष उनके पिछले जन्म के गुरु थे। वे उनके चरणों में गिर कर रो पड़े।

वो सिध् पुरुष को आज महावतार  बाबाजी के नाम से जाना जाता है।बाबाजी उनके हर जन्म में उनके गुरु रहे थे और उनके हर एक जन्म की पूर्ति के बाद वो इंतज़ार करते और उन्हें अपनी संतान की  तरह उनके संभाला और उनका निर्देशन किया था और इस जन्म में भी वे वही कर रहे थे। उसके बाद बाबाजी ने उनका सुधिकरण किया और उन्हें दीक्षा दी ।जिसके पश्चात लाहिरी जी बेहोश हो गए और जब उनकी आँखे खुली तो वो एक नदी किनारे पर लेते हुए थे । बाबाजी ने लाहिरी जी को क्रिया योग को पुनजीवित करने के लिए चुना था। जिसे लाहिरी महाशय ने बखूबी आगे बढाया। लाहिरी महाशय ने अपनी डायरी में लिखा कि महावतार बाबाजी भगवान कृष्ण थे।

महावतार  बाबाजी को अवतार माना जाता है , यानि एक ऐसा प्राणी जिसके शारीर में देवत्व  समाया हो। नंगी आँखों से बाबाजी की दिव्यता को देख पाना असंभव है क्यूंकि उनकी दिव्यता प्रकृति के नियमो से पड़े है। महावतार  बाबाजी एक अमर योगी है जिन्होंने समय , के कालचक्र को मात देने में सफलता हासिल की है। उन्होंने ही क्रिया हॉग को पुर्नार्जिवित करने के लिए लाहिरी महाशय को दीक्षित किया। क्रिया योग एक वज्ञानिक योग है जो वो परमात्मा से पृथ्वी लोक पर ले आय थे. क्रिया योग लुप्त हो चूका था।और हर किसी को इसकी जानकारी व् नहीं थी। भगवतगीता में इस योग का वर्णन मिलता है , जो की श्री कृष्ण ने अर्जुन  को महाभारत से ठीक पेहले सिखाई थी, संत मनु और पतंजलि भी इस योग के ज्ञाता थे। महावतार बाबाजी को उनका ये नाम लाहिरी महाशय ने दिया था। वे उनके पहले शिष्य नहीं थे परन्तु उनके प्रथम शिष्यों के नाम का कुछ पता नहीं है। लेकिन हा कुछ लोग उन्हें नागराज कहते है।

उनके शिष्यों की माने तो वे 18-25 साल की उम्न्र के नौजवान दीखते है जो कभी बूढ़े नहीं होते , उनका उम्र उसी समय पर अटक गया है। गहुआ शरीर , ताम्बे के रंग  के बाल और शांत और ज्ञानी आँखे है उनकी। उनके चारो और एक दिव्य और अध्यात्मिक चक्र है जिसे मेह्स्सूस किया जा सकता है। बाबाजी हर एक भाषा में बात कर सकते है और बिन कुछ बोले भी अपने मन और दिमाग की शक्ति से वार्तालाप कर सकते है।कहते है वे 5000 साल से भी ज्यादा समय से जीवित है और अपने शिष्यों के माध्यम से सन्देश भेजते रहते है। इनकी उम्र का पता किसी को भी नहीं है , माना जाता है की वे दक्षिण भारत में पैदा हुए थे और 15 साल की उम्र में अपना घर चोर श्री लंका आ गये थे सन्यासियों के पास ।

मान्यताओ के अनुसार जिस जगह वो जा रहे थे वो एक गुप्त अध्यात्मिक स्थान है , जहा तक सिर्फ वो लोग पहुच सकते है जिनके भाग्य में वह जाना लिखा हो। नागराज को वो जगह अपने पूर्ण जन्म से याद थी जह औसने तपस्या में लीं होकर अपने प्राण त्यागे थे।वह पहुचकर उन्होंने योग साधना शुरू की।कहते है उन्होंने महर्षि अगस्त्य से कुण्डलिनी प्राणायाम सिखा था। उन्होंने अपनी साधना पूर्ण कर उत्तर की और चल दिया और माना जाता है उन्होंने सूक्ष्म मोक्ष मोक्ष की प्राप्ति कर ली है  ,यानि वो एक ऐसी स्थिति में चले गए है जहा प्रकृति का कोई नियम लागू नहीं होता । उनकी उम्र नहीं बढती , उनके भूख , प्यास नहीं लगती। वे कोई भी रूप धारण कर लेते है। अपने मस्तिस्क की शक्ति से कही भी जा सकते है और वे किसी से भी दिमाग की शक्ति से बातचीत कर सकते है। इस चीज़ को टेलिपाथी कहते है ।वो सिर्फ अपने कुछ चुनिन्दा शिष्यों को ही दर्शन देते है । जिनमे लाहिरी महाशय और परमहंस योगानंद जी शामिल है।

आधुनिक काल में सबसे पहले लाहड़ी महाशय ने महावतार बाबा से मुलाकात की फिर उनके शिष्य युत्तेश्वर गिरि ने 1894 में इलाहाबाद के कुंभ मेले में उनसे मुलाकात की थी। युत्तेश्वर गिरि की किताब ‘द होली साइंस’ में भी उनका वर्णन मिलता है। उनको 1861 से 1935 के दौरान कई लोगों के द्वारा देखे जाने के सबूत हैं। जिन लोगों ने भी उन्हें देखा है, हमेशा उन्होंने उनकी उम्र 25 से 30 साल की ही बताई है।

 योगानंद ने जब उनसे मिले थे तो वे सिर्फ 19 साल के नजर आ रहे थे। योगानंद ने किसी चित्रकार की मदद से उन्होंने महावतार बाबा का चित्र भी बनवाया था, वही चित्र सभी जगह प्रचलित है। परमहंस योगानंद को बाबा ने 25 जुलाई 1920 में दर्शन दिए थे इसीलिए इस तिथि को प्रतिवर्ष बाबाजी की स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।

वर्तमान में पूना के गुरुनाथ भी महावतार बाबाजी से मिल चुके हैं। उन्होंने बाबाजी पर एक किताब भी लिखी है जिसका नाम ‘द लाइटिंग स्टैंडिंग स्टील’ है। दक्षिण भारत के श्री एम. भी महावतार बाबाजी से कई बार मिल चुके हैं। सन् 1954 में बद्रीनाथ स्‍थित अपने आश्रम में 6 महीने की अवधि में बाबाजी ने अपने एक महान भक्त एसएए रमैय्या को संपूर्ण 144 क्रियाओं की दीक्षा दी थी।

लाहिरी महाशय ने अपनी डायरी में लिखा कि महावतार बाबाजी भगवान कृष्ण थे। योगानंद भी अक्सर जोर से ‘बाबाजी कृष्ण’ कहकर प्रार्थना किया करते थे। परमहंस योगानंद के दो शिष्यों ने लिखा कि उन्होंने भी कहा कि महावतार बाबाजी पूर्व जीवनकाल में कृष्ण थे।  महावतार बाबा की एक गुफा भी है। महावतार बाबा की गुफा आज भी उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में कुकुछीना से 13 किलोमीटर दूर दूनागिरि में स्थित है। फिल्म अभिनेता रजनीकांत और जूही चावला भी बाबा की गुफा के दर्शन को आते रहे हैं। रजनीकांत ने उनके ऊपर एक फिल्म भी बनाई थी।

परमहंस योगानंद ने बाबा से जुड़ीं दो घटनाओं का अपनी किताब में जिक्र किया है। योगानंद ने लिखा है कि बाबाजी एक बार रात में अपने शिष्यों के साथ धूने के पास बैठे थे। धूने में से एक जलती हुई लकड़ी को उठाकर बाबाजी ने एक शिष्य के कंधे पर दे मारी जिसका शिष्यों ने विरोध किया। तब बाबा ने बताया कि ऐसा करके मैंने आज होने वाली तुम्हारी मृत्यु को टाल दिया है।

इसी तरह की दूसरी घटना का जिक्र करते हुए योगानंद लिखते हैं कि एक बार बाबाजी के पास एक व्यक्ति आया और वह बाबाजी से दीक्षा लेने की जिद करने लगा। बाबाजी ने जब मना कर दिया तो उसने पहाड़ से कूद जाने की धमकी थी। बाबा ने कहा कि जाओ कूद जाओ और वह व्यक्ति तुरंत ही कूद गया। यह दृश्य देख वहां मौजूद लोग सकते में आ गए। तब बाबाजी ने कहा कि पहाड़ी से नीचे जाओ और उसका शव लेकर आओ। शिष्य गए और शव लेकर आए। शव क्षत-विक्षत हो चुका था। बाबाजी ने शव के ऊपर जैसे ही हाथ रखा, वह धीरे धीरे करके ठीक होने लगा और जिंदा हो गया। तब बाबा ने कहा कि यह तुम्हारी अंतिम परीक्षा थी। आज से तुम भी मेरी टोली में शामिल हुए।

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