काशी विश्वनाथ मंदिर से भी पुराना है ये मंदिर, खिचड़ी से उत्पन्न हुए थे महादेव

सोशल संवाद डेस्क:  काशी… यहां शिव के हजारों शिवालय है, उन्हीं में से एक है केदारघाट पर विराजमान गौरी केदारेश्वर मंदिर। यहाँ  खिचड़ी से भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए। जी हा भोले के इस अनोखे स्वरूप के दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु काशी आते हैं। काशी के इस महादेव को भक्त हिमालय के केदारनाथ का प्रतिरूप मानते हैं। काशी में बसे महादेव के इस स्वरूप को गौरी केदारेश्वर महादेव के नाम से जाता है। काशी के केदारेश्वर महादेव 15 कला में विराजमान है। इनके दर्शन से बाबा विश्वनाथ के दर्शन का फल मिलता है। सोमवार के साथ ही हर दिन यहां सुबह के शाम तक भक्तों की भीड़ होती है।

पौराणिक वर्णन के अनुसार पहले ये मंदिर भगवान विष्णु का हुआ करता था। काशी के राजा मांधाता शिव के अनन्य भक्त थे। राजसिंहासन छोड़ने के बाद वह संन्यासी रूप में शिव की साधना करते। बताया जाता है कि ऋषि मान्धाता अपनी साधना के बल पर भगवान शिव को भोजन कराने हिमालय पहुंच जाते थे। चूंकि मान्धाता हमेशा खिचड़ी बनाते थे इसलिए वो भोलेनाथ को भी वही खिलाते थे। पुराणों के अनुसार ऋषि मुनि भगवान को भोग लगाने के बाद बचे हुए खिचड़ी के दो हिस्से करते थे। जिसमें वो एक हिस्सा खुद खाते थे और दूसरा लोगों में बांट देते थे। मगर बाद में मान्धता बीमार रहने लगे तो वे भोग लगाने हिमालय नहीं जा पाते थे। बताया जाता है कि तब भगवान शिव खुद ऋषि की कुटिया में आकर खिचड़ी खाते थे और उन्हीं की तरह इसके दो हिस्से करते थे। कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ ने मान्धाता की निष्ठा से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनका एक हिस्सा हमेशा के लिए काशी में रहेगा।

एक दिन उन्होंने खिचड़ी बने तो खिचड़ी का भोग पत्थर में बदल गया। वह बहुत ही परेशान हो गए और रोने लगे। इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और कहा कि यह पाषाण (पत्थर) जो खिचड़ी से बनी है। वही शिवलिंग है। तब से माता पार्वती के साथ बाबा भोले खिचड़ी रूप में यही विराजित हो गए।

ऐसी मान्यता है कि गौरी केदारेश्वर का यह मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर से भी पुराना है। इस मंदिर का शिवलिंग दो भागों में बंटा है। माना जाता है कि एक भाग में माता पार्वती के साथ भगवान शिव निवास करते हैं। वहीं, दूसरे भाग में माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु निवास करते हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात है यहां की पूजन विधि ,यहाँ पुजारी बिना सिले हुए वस्त्र पहेन कर ही पुँज करते है. बाबा को प्रिय बेलपत्र व दूध गंगाजल के साथ-साथ यहां खिचड़ी की भी भोग लगाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि यहां बाबा स्वयं भोग ग्रहण करने आते हैं।

ऋषि मांधाता के हिमालय चले जाने के बाद मंदिर के रख-रखाव ठीक से नहीं हो पाई। फिर कई सालों बाद जब रानी अहिल्याबाई होल्कर काशी आईं और मंदिर के दर्शन किए, तब उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इसी के साथ ही मद्रास में एक विशाल भू-खंड चावल की खेती के लिए खरीदा, जिससे यहां भोग लगाए जा सकें और तो और उन्होंने साल के 365 दिन के हिसाब से 365 कमरों की धर्मशाला भी बनवाया। मंदिर पुजारी की मानें तो यहां अपने शासनकाल के दौरान मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने के लिए यहां हमला कर दिया था। इसका प्रमाण आज भी मंदिर में विराजित नंदी के पीठ पर चाकू के निशान देखने से मिलता है। कहा जाता है कि मंदिर तोड़ने के लिए नंदी महाराज पर चाकू से हमला किया गया था फिर बाबा के चमत्कार के चलते मुगल शासन ने घुटने टेक दिए।

मंदिर के पास खिचरी तालाब है, जिसका विशेष महत्व है। इसी तालाब के जल से श्रद्घालु महादेव का अभिषेक करते हैं। इसके साथ ही आसपास हरियाली होने से दृश्य काफी मनोरम रहता है, जिसे देखकर भक्तों को आत्मिक शांति मिलती है। कहते है  काशी के कोतवाल काल भैरव है इसलिए यहां मरने वालों को यम यातना से नहीं मिलती बल्कि काशी के दंडाधिकारी उन्हें उनके कर्मों का फल देते हैं। लेकिन केदारखंड में मरने वालों को इन भैरव यातना भी नहीं मिलती। काशी के इस मंदिर में महादेव को 15 अलग-अलग रूपों में दर्शाया गया है। इस मंदिर की महिमा अपरम्पार है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस शिवलिंग के दर्शन करने से उत्तराखंड में केदारनाथ के दर्शन के बराबर फल मिलता है। और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।

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