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आदिवासी गांव समाज को बर्बादी और गुलामी की जंजीरों में जकड़ने के लिए सर्वाधिक दोषी हैं: सालखन मुर्मू

By admin

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सोशल संवाद डेस्क :  आदिवासी गांव समाज को बर्बादी और गुलामी की जंजीरों में जकड़ने के लिए सर्वाधिक दोषी हैं – आदिवासी स्वशासन व्यवस्था या ट्राइबल सेल्फ रुल सिस्टम के नाम पर वंशानुगत नियुक्त माझी- परगना आदि। यह व्यवस्था जनतंत्र, संविधान, कानून और मानव अधिकारों को नहीं मानता है। अंततः लगभग सभी आदिवासी गांव समाज में नशापान, अंधविश्वास (डायन प्रथा आदि) राजनीतिक कुपोषण आदि जारी है। यह व्यवस्था इसको खत्म करने की जगह इसको बढ़ाने का काम करता  है।

परंपरा के नाम पर वंशानुगत नियुक्त अधिकांश माझी परगना आदि अनपढ़, पियक्कड़, संविधान कानून से अनभिज्ञ होने के कारण इनको नाचने- गाने, खाने-पीने, मौज मस्ती करने से ज्यादा कुछ नहीं समझ में आता है। नतीजनन आदिवासी अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी आदि की सुरक्षा और संवर्धन में इनका योगदान नगण्य है। माझी- परगना व्यवस्था के अगुआ गांव समाज में मरांग बुरु बचाने, सरना धर्म कोड लागू करने, संताली को झारखंड की राजभाषा बनाने, सीएनटी एसपीटी कानून लागू करने, गांव के लोगों को एकजुट करने आदि की चर्चा नहीं करते हैं। आदिवासी समाज में उपलब्ध शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार मिले, स्थानीयता, आरक्षण, रोजगार नीति आदि लागु करने जैसी बातें इनकी समझ से बहुत दूर है। अंततः रुमुग, बुलुग, डंडोम, वारोंन, डान- पनते, महिला विरोधी मानसिकता, ईर्ष्या द्वेष, वोट को हँड़िया दारु में खरीद- बिक्री आदि आदिवासी गांव समाज का जीवन शैली बन चुका है।

दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा इस कुव्यवस्था को अपनी वोट बैंक के लोभ – लालच में बढ़ावा देते हुए समर्थन करता है। घोषणा करता है सभी माझी परगना आदि को मासिक मानदेय मिलेगा, मोटरसाइकिल दिया जाएगा, माझी हाउस भी प्रदान करेगा। यह आदिवासी गांव समाज को और बर्बाद करने की कवायद है। गलत है। आदिवासी सेंगेल अभियान इसका विरोध करता है। मगर जनतांत्रिक और संविधान की मर्यादा रखने वाले माझी परगना को सरकार सहयोग करे तो सेंगेल उसका समर्थन कर सकती है।

सेंगेल ट्राइबल सेल्फ रुल सिस्टम में जनतांत्रिक और संवैधानिक सुधार के लिए 16 मार्च 2022 को देश के महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ज्ञापन पत्र प्रदान किया है। उसी प्रकार 26 अगस्त 2022 को महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलकर राष्ट्रपति भवन में इसके अविलंब सुधार के लिए ज्ञापन पत्र प्रदान किया है। अब जरूरत आन पड़ी है की इस कुव्यवस्था को सुधार के लिए मान्य सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करते हुए आदिवासी गांव समाज को जनतांत्रिक और संवैधानिक ढांचे में परिवर्तित करते हुए आदिवासी समाज को सुरक्षित और संवर्धित करने की। सेंगेल जल्द ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटायगी।

मगर सेंगेल का नारा रहेगा – “वंशानुगत नियुक्त माझी- परगना गद्दी छोड़ो या सुधर जाओ और साथ दो। आदिवासी गांव- समाज को बर्बादी और गुलामी से मुक्ति देना होगा।”

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