सोशल संवाद / डेस्क ( सिद्धार्थ प्रकाश ) : 28 फरवरी 2025 को, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने पुराने अंदाज़ में एक और धमाका किया। जनाब ने मेक्सिको, कनाडा और यूरोपीय संघ से आयात पर 25% का टैक्स ठोक दिया, जिसे अगले हफ्ते लागू किया जाएगा। इस कदम ने दुनिया भर में हलचल मचा दी है।
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डेमोक्रेट सीनेटर रॉन वायडेन ने तो सीधे कह दिया कि, “ट्रम्प अमेरिकी अर्थव्यवस्था को दीवार में ठोक रहे हैं।” और यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। जैसे ही यह ऐलान हुआ, यूरोप में ऑटोमोबाइल कंपनियों की हालत खराब हो गई—बीएमडब्ल्यू के शेयर 4% लुढ़क गए और पोर्शे के 3.6% गिर गए। काइल इंस्टीट्यूट ने साफ़ चेतावनी दी कि अगर यूरोप ने जवाबी हमला किया, तो अमेरिका और यूरोप दोनों को आर्थिक झटका लगेगा।
अब अमेरिका के स्टॉक बाजार की भी सुन लो। S&P 500 तगड़ा लुढ़का, और केवल एक दिन में 1.3 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। निवेशक अभी तक सदमे में हैं, और बाजार में बेरोजगारी के आंकड़ों ने और कोहराम मचा दिया है। मज़े की बात यह है कि ट्रम्प बाबू अभी तक कोई आधिकारिक बयान देने की जहमत नहीं उठाए हैं। वैसे भी, उनके हालिया “देशभक्तिपूर्ण” फैसले—चाहे टैरिफ हो या विदेशी सहायता में कटौती—ने दुनिया को झकझोर दिया है।
मोदी जी के लिए तोहफा!
अब ज़रा भारत पर नज़र डालें। ट्रम्प साहब ने अपने “अच्छे दोस्त” मोदी जी को 25% टैरिफ का उपहार भेज दिया है। यह वही अमेरिका है जिसके साथ मोदी जी की दोस्ती के पुल बांधे जाते हैं, और जिसे लेकर भारतीय मीडिया दिन-रात शंखनाद करता है। अब देखिए, इस 25% टैरिफ से भारत को कौन-कौन से “अच्छे दिन” देखने को मिलेंगे।
हालांकि कुछ सेक्टर, जैसे फार्मा और आईटी, इसका फायदा उठा सकते हैं, लेकिन भाई, झटका भी कम नहीं लगेगा। ग्लोबल इन्वेस्टर्स की चिंता बढ़ेगी, भारतीय शेयर बाजार में हलचल होगी, और FDI में गिरावट आ सकती है। और अगर यूरोप और कनाडा भी पलटवार करते हैं, तो सप्लाई चेन में और गड़बड़ी होगी।
अब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी की तरफ़ भी रुख़ करते हैं। जिनकी आर्थिक नीतियां वैसे भी “प्रभावशाली” होती हैं, अब देखना होगा कि इस झटके को संभालने के लिए कौन-सा नया “आत्मनिर्भर भारत” प्लान निकाला जाएगा। शायद किसी नए “महान” पैकेज की घोषणा कर दी जाए, जिसमें जीडीपी की जगह “गोल्डन डेटा पॉइंट्स” दिखाए जाएं।
अब भारत क्या करेगा?
ट्रम्प का यह फैसला एक चेतावनी है कि दुनिया तेजी से बदल रही है और भारत को चुपचाप बैठे रहने से कुछ नहीं मिलने वाला। अब ज़रूरत है कि भारत यूरोपीय संघ, आसियान और ब्रिक्स जैसे देशों से अपने संबंध मजबूत करे और व्यापारिक समझौतों को तेजी से आगे बढ़ाए।
लेकिन असली सवाल यह है—क्या भारत की सरकार इन चुनौतियों के लिए तैयार है, या फिर “मित्र” ट्रम्प से अगला कोई नया उपहार मिलने का इंतज़ार करेगी?
