सोशल संवाद / मुंबई ( सिद्धार्थ प्रकाश): स्टैंड-अप कॉमेडियन कुनाल कमरा ने अपने शो “नया भारत” में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को “गदार” कहकर मानो राजनीति के अखाड़े में भूचाल ला दिया। उनके इस बयान के बाद जहां सोशल मीडिया पर मीम्स और बहसों की बाढ़ आ गई, वहीं शिवसेना कार्यकर्ताओं ने मुंबई के खार क्षेत्र में The Habitat स्टूडियो पर अपना गुस्सा निकालते हुए उसे नुकसान पहुंचाया।
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शो से लेकर तोड़फोड़ तक: पूरी कहानी
कुनाल कमरा ने अपने शो में 1997 की फिल्म “दिल तो पागल है” के प्रसिद्ध गीत “भोली-सी सूरत” का पैरोडी वर्जन पेश किया, जिसमें उन्होंने शिंदे के 2022 में बीजेपी के साथ गठबंधन बनाने के फैसले का मज़ाक उड़ाया।
शो का वीडियो वायरल होते ही शिवसेना (शिंदे गुट) के कार्यकर्ताओं का खून खौल उठा और वे The Habitat स्टूडियो पर टूट पड़े। यह वही जगह थी जहां कमरा ने परफॉर्म किया था। गुस्साए कार्यकर्ताओं ने स्टूडियो में तोड़फोड़ की, जिसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ। इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 11 शिवसेना कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया।
कानूनी दांव-पेंच और नेताओं की प्रतिक्रियाएं
इस पूरे घटनाक्रम के बाद मुंबई पुलिस ने मानहानि के आरोप में कुनाल कमरा के खिलाफ FIR दर्ज की। यह शिकायत शिवसेना (शिंदे गुट) के विधायक मुर्जी पटेल द्वारा की गई थी।
इस मामले पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी जमकर आईं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कमरा से माफी मांगने को कहा, यह तर्क देते हुए कि “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी सीमाएं होती हैं।”
वहीं, दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन और शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कमरा का समर्थन करते हुए कहा, “गदार को गदार कहना गलत कैसे हो सकता है?”
शिवसेना के कुछ नेताओं, जैसे नरेश मस्के, ने तो कमरा को धमकी देते हुए कह दिया कि अगर उन्होंने माफी नहीं मांगी, तो उन्हें भारत छोड़ना पड़ सकता है।
कमरा का जवाब: “सत्ता की चाटुकारिता नहीं करूँगा”
कुनाल कमरा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे माफी नहीं मांगेंगे। उन्होंने बयान दिया, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सिर्फ नेताओं की चापलूसी के लिए नहीं है। नेताओं पर चुटकी लेना कोई अपराध नहीं है।”
बड़ी बहस: राजनीति बनाम कॉमेडी
यह घटना भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक संवेदनशीलता के बीच की खाई को एक बार फिर उजागर करती है। एक तरफ, राजनीतिक नेता आलोचना और व्यंग्य को बर्दाश्त करने में असमर्थ दिखते हैं, तो दूसरी तरफ कॉमेडियन और कलाकार इसे अपनी आज़ादी का हिस्सा मानते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत में राजनीतिक व्यंग्य को एक अपराध माना जाएगा, या फिर लोगों को अपने नेताओं पर मज़ाक उड़ाने की स्वतंत्रता बनी रहेगी? इस बहस का कोई अंत नहीं, लेकिन इतना तय है कि कुनाल कमरा के इस बयान ने फिर एक बार राजनीति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के टकराव को सुर्खियों में ला दिया है।