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सरकारी बैंकों की दर्दभरी विदाई – एक नई शुरुआत या अंत की शुरुआत?

By Tamishree Mukherjee

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सरकारी बैंकों की दर्दभरी विदाई

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सोशल संवाद / डेस्क ( सिद्धार्थ प्रकाश ): भारत सरकार ने आखिरकार अपने “अनमोल रत्न” कहे जाने वाले सरकारी बैंकों से दूरी बनाने का फैसला कर लिया है। कभी 22 की गिनती में आने वाले ये बैंक अब सिमटकर केवल 12 रह गए हैं। यह सरकारी रणनीति बैंकों के स्वास्थ्य सुधारने के लिए है या अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पाने का प्रयास – यह एक बड़ा सवाल है।

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विलुप्त होते सरकारी बैंक – अब बचा है सिर्फ 12 का कुनबा

सरकार की देखरेख में चलने वाले 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जो अभी अस्तित्व में हैं, वे हैं:

•          भारतीय स्टेट बैंक (SBI)

•          पंजाब नेशनल बैंक (PNB)

•          बैंक ऑफ बड़ौदा

•          केनरा बैंक

•          यूनियन बैंक ऑफ इंडिया

•          बैंक ऑफ इंडिया

•          इंडियन बैंक

•          सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया

•          इंडियन ओवरसीज बैंक

•          यूको बैंक

•          बैंक ऑफ महाराष्ट्र

•          पंजाब एंड सिंध बैंक

इन बैंकों की हालत कितनी “शानदार” है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि एक समय इनका गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) दर 11% तक पहुंच चुका था।

सरकार की दयालुता – निजीकरण की ओर एक कदम

सरकार ने छह बैंकों को निजी हाथों में सौंपने की योजना बनाई है। इनमें शामिल हैं:

•          बैंक ऑफ इंडिया

•          सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया

•          इंडियन ओवरसीज बैंक

•          यूको बैंक

•          बैंक ऑफ महाराष्ट्र

•          पंजाब एंड सिंध बैंक

किसके लिए फायदेमंद? बैंकिंग सेक्टर या सरकार?

बैंकिंग सेक्टर के लिए:

बैंकों में प्राइवेट सेक्टर का दखल बढ़ने से सर्विस चार्ज बढ़ेंगे, कर्ज वसूली के नए आक्रामक तरीके अपनाए जाएंगे, और ग्राहकों को हर छोटी-बड़ी सुविधा के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी।

सरकार के लिए:

निजीकरण से सरकार को मोटी रकम मिलेगी, जिससे वह अपने बजट को संतुलित कर सकती है। इसके अलावा, सरकारी बैंकों का घाटा सरकार की चिंता से बाहर हो जाएगा।

जनता की प्रतिक्रिया – ताली या थाली?

आम जनता के लिए यह बदलाव अच्छी खबर है, अगर वह बैंकिंग को एक महंगी और चुनौतियों से भरी सेवा के रूप में देखना चाहती है। सरकारी बैंकों में अब तक जो “सुविधाएं” मुफ्त या सस्ती मिलती थीं, वे अब महंगी हो जाएंगी।

निष्कर्ष – एक गरीब लेकिन ईमानदार विचार

सरकार की नीति को देखकर यही कहा जा सकता है: “बचपन में गुल्लक तोड़ने से मना किया जाता था, लेकिन सरकार आज पूरी तिजोरी ही बेचने को तैयार है!”

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