November 9, 2024 12:55 pm
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जाने नर्मदा यात्रा का महत्त्व

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सोशल संवाद / डेस्क : माँ नर्मदा, पश्चिम की ओर बहने वाली सबसे लंबी नदी है। यह अमरकंटक से निकलती है, फिर ओंकारेश्वर से गुजरती हुई गुजरात में प्रवेश करती है और खंभात की खाड़ी में मिल जाती है। इसका अधिकतर भाग मध्यप्रदेश में ही बहता है। पुराणों में इसे रेवा नदी कहते हैं। इसकी परिक्रमा का बहुत ही ज्यादा महत्व है। 

ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने नर्मदा को उनकी सभी इच्छाएं पूरी करने का आशीर्वाद दिया और साथ ही उन्हें कुंवारी रहने और हमेशा के लिए स्वतंत्र और शुद्ध रूप से बहने का आशीर्वाद दिया, जिससे यह नदी भारत में हिंदू भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र हो गई।

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नर्मदा यात्रा एक धार्मिक यात्रा है, जो पैदल ही पूरी करना होती है। लेकिन जिसने भी नर्मदा या गंगा में से किसी एक की परिक्रमा पूरी कर ली उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा काम कर लिया। उसने मरने से पहले वह सब कुछ जान लिया, जो वह यात्रा नहीं करके जिंदगी में कभी नहीं जान पाता। 

नर्मदा परिक्रमा या यात्रा दो तरह से की जाती है। पहली है हर महीने नर्मदा पंचक्रोशी यात्रा और दूसरी है नर्मदा की परिक्रमा। यह यात्रा तीर्थ नगरी अमरकंटक, ओंकारेश्वर और उज्जैन से शुरू होती है। यह वहीं समाप्त होता है जहां यह शुरू होता है।

कुछ लोग कहते हैं कि ‍यदि अच्छे से नर्मदाजी की परिक्रमा की जाए तो नर्मदाजी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और 13 दिनों में पूर्ण होती है, परंतु कुछ लोग इसे 108 दिनों में भी पूरी करते हैं। परिक्रमावासी लगभग 1,312 किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते हैं। 

मध्य प्रदेश के पर्यटन विभाग द्वारा नर्मदा यात्रा दो परिक्रमा मार्गों को पूरा करती है – एक जबलपुर  से शुरू होती है जबकि दूसरी शुरू होती है इंदौर या भोपाल से। जबलपुर से शुरू होकर, तीर्थयात्री सबसे पहले अमरकंटक की ओर जाते हैं, जहां नर्मदेश्वर मंदिर भी है, वह पवित्र स्थान जहां से पवित्र नदी नर्मदा का उद्गम होता है। नर्मदा यात्रा का एक और पड़ाव भारत के सबसे पवित्र और सबसे प्राचीन शहरों में से एक, उज्जैन में है, जो महाकाव्य महाभारत और कुंभ मेले में अपने उल्लेख के लिए भी लोकप्रिय है। यात्रा व्यक्ति को ओंग्करेश्वर और महेश्वर भी ले जाती है। तीर्थयात्रा सर्किट को पूरा करना यात्रा के लिए महत्वपूर्ण है, जिसमें कुल 14 दिन और 15 रातें लगती हैं।

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नर्मदाजी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है व श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोडता है।

परिक्रमावासियों के लिए कई सामान्य नियम है।

1. नर्मदा जी में प्रतिदिन स्नान करना।
2. श्रद्धापूर्वक भोजन करना ।
3. वाणी पर संयम रखना।

कहीं भी नर्मदा जी को पार नहीं करना चाहिए। जहां नर्मदा जी में टापू हो गए वहां भी नहीं।

चतुर्मास में परिक्रमा नहीं करना चाहिए।

बाल ना कटवाय। नाख़ून भी ना कटवाय । ब्रह्मचर्य का पूरा पालन करें। श्रृंगार की दृष्टि से तेल आदि कभी न लगावें। साबुन का प्रयोग न करें। शुद्ध मिट्टी का सदा उपयोग करें।

 जब परिक्रमा परिपूर्ण हो जाये तब किसी भी एक स्थान पर जाकर भगवान शंकरजी का अभिषेक कर जल चढ़ाये। पूजाभिषेक करें कराएं। मुण्डनादि कराकर विधिवत् पुनः स्नानादि, करें। श्रेष्ठ ब्राह्मण, साधु, अभ्यागतों को, कन्याओं को भी भेजन अवश्य कराएं फिर आशीर्वाद ग्रहण करके संकल्प निवृत्त हो जाएं और अंत में नर्मदाजी की विनती करें।

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