सोशल संवाद/डेस्क : बांग्लादेश में एक ऐतिहासिक और बेहद चौंकाने वाला फैसला सामने आया है। देश के अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल-1 ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों के मामले में सजा-ए-मौत सुनाई है। वहीं दूसरी ओर, उन्हीं घटनाओं में कथित तौर पर गोली चलवाने वाले पूर्व पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्ला अल-ममून को मात्र 5 साल की कैद की सजा दी गई है। एक ही मामले में इतना बड़ा सज़ा का अंतर लोग समझ नहीं पा रहे हैं और इसके पीछे की वजह चर्चा का बड़ा विषय बन गई है।

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क्यों शुरू हुआ यह पूरा मामला?
यह पूरा प्रकरण बांग्लादेश में 2024 के बड़े छात्र आंदोलन से जुड़ा है, जिसे देश में “जुलाई छात्र विद्रोह” के नाम से जाना गया। उस दौरान हजारों छात्र सड़कों पर उतर आए थे और सरकार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हुए थे। प्रदर्शन इतना उग्र हुआ कि सरकार ने सुरक्षा बलों को आंदोलन को किसी भी तरह नियंत्रित करने का आदेश दिया था।
इसी दौरान कई गंभीर आरोप लगे ड्रोन सर्विलांस, हेलीकॉप्टर से की गई कार्रवाई, भीड़ पर सीधी फायरिंग और बल का अनुचित उपयोग। अदालत ने फैसले में माना कि यह सब “मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध” की श्रेणी में आता है।
ट्रिब्यूनल ने क्या कहा?
अदालत की तीन-सदस्यीय पीठ ने कहा कि शेख हसीना “सुपीरियर अथॉरिटी” थीं और उनके निर्देशों के बिना इतना बड़ा कदम उठाया ही नहीं जा सकता था। न्यायालय ने माना कि उन्होंने सुरक्षा बलों को स्थिति संभालने के बजाय “बल प्रयोग की अनुमति देकर नागरिकों की जान जोखिम में डाली।”
यह भी कहा गया कि उस समय की सरकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों को दबाने में पूरी तरह विफल रही और छात्रों के खिलाफ अत्यधिक ताकत का प्रयोग किया गया।
फिर ममून को सिर्फ 5 साल क्यों?
लोगों का सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि जब मुख्य आरोपी को मौत की सजा हुई, तो गोली चलवाने के सीधे आरोपी और पुलिस प्रमुख को इतनी हल्की सजा क्यों मिली?
इस सवाल का जवाब अदालत की कार्यवाही में छिपा है
क्योंकि पूर्व पुलिस प्रमुख ममून ने अदालत में राज्य गवाह (turning approver) बनने की सहमति दी।
उन्होंने माना कि उन्होंने जो कुछ भी किया, वह सरकार और उच्च अधिकारियों के निर्देश पर किया गया। साथ ही उन्होंने सभी घटनाओं का विस्तृत ब्यौरा अदालत को उपलब्ध कराया, जिसने ट्रिब्यूनल को फैसले तक पहुंचने में बहुत मदद की।
ममून ने अदालत में माफी भी मांगी और कहा कि वह चाहते हैं कि “देश सच जाने और भविष्य में कोई सत्ता गलत आदेशों का दुरुपयोग न करे।”
पीड़ित परिवारों में नाराजगी
हसीना के खिलाफ आया फैसला जहां कुछ लोगों के लिए न्याय की जीत है, वहीं ममून के कम दंड से कई पीड़ित परिवार निराश हैं। उनका कहना है कि जिस व्यक्ति की निगरानी में पुलिस ने फायरिंग की, उसे इतनी हल्की सजा देना उचित नहीं है।
कई मानवाधिकार संगठनों ने भी कहा है कि लोगों की मौत के लिए सिर्फ राजनीतिक नेतृत्व को नहीं, बल्कि घटनास्थल पर मौजूद अधिकारियों की भी सख्त जवाबदेही तय होनी चाहिए थी।
राजनीतिक हलकों में तूफ़ान
यह फैसला बांग्लादेश की राजनीति को हिला देने वाला है।
कुछ पार्टियों का कहना है कि यह फैसला “देश के लोकतांत्रिक इतिहास में मील का पत्थर” है, क्योंकि पहली बार किसी पूर्व प्रधानमंत्री को मानवता विरोधी अपराधों पर ऐसी कठोर सजा सुनाई गई है।
जबकि दूसरी ओर हसीना समर्थक दल इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” करार दे रहे हैं। उनका दावा है कि यह निर्णय उन ताकतों का परिणाम है जो पुराने राजनीतिक हिसाब चुकता करना चाहती हैं।
हसीना इस समय कहां हैं?
सजा सुनाए जाने के समय शेख हसीना देश में मौजूद नहीं थीं। वे कुछ समय से विदेश विशेषकर भारत में रह रही हैं। अदालत ने कई बार उन्हें पेश होने का नोटिस जारी किया, लेकिन उपस्थित न होने पर उनके खिलाफ अनुपस्थिति में ही मुकदमा चलाया गया।
इतिहास में दर्ज होने वाला फैसला
यह मामला इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि बांग्लादेश में इससे पहले किसी शीर्ष नेता को मानवता विरोधी अपराधों के लिए इतनी कठोर सजा नहीं दी गई थी।यह फैसला देश की न्याय प्रणाली, प्रशासनिक जवाबदेही और राजनीतिक संतुलन पर आने वाले वर्षों में गहरा असर छोड़ सकता है।
आगे क्या?
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि हसीना इस फैसले को अंतरराष्ट्रीय अदालतों में चुनौती दे सकती हैं। वहीं बांग्लादेश सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह देश में शांति बनाए रखे क्योंकि फैसला आते ही देश में विरोध और समर्थन के स्वर दोनों तेज हो गए हैं।








