February 16, 2025 11:45 am

सिद्धार्थ प्रकाश (पत्रकार, सोशल संवाद) और डॉ. अजय कुमार (चेयरमैन, फॉक्स पेट्रोलियम ग्रुप) के बीच विशेष चर्चा

सिद्धार्थ प्रकाश (पत्रकार, सोशल संवाद) और डॉ. अजय कुमार (चेयरमैन, फॉक्स पेट्रोलियम ग्रुप)

सोशल संवाद / डेस्क : विषय: BRICS NDB बनाम विश्व बैंक/IMF – वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भू-राजनीतिक प्रभाव

सिद्धार्थ प्रकाश: डॉ. अजय, सबसे पहले तो आपका स्वागत है। हाल ही में BRICS और पारंपरिक वित्तीय संस्थानों—विशेष रूप से विश्व बैंक और IMF—के बीच एक स्पष्ट टकराव देखा जा रहा है। क्या आपको लगता है कि BRICS का NDB (न्यू डेवलपमेंट बैंक) वास्तव में विश्व बैंक और IMF को चुनौती दे सकता है?

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डॉ. अजय कुमार: धन्यवाद, सिद्धार्थ। देखिए, जब 2014 में BRICS NDB की स्थापना हुई थी, तब इसका मुख्य उद्देश्य था विकासशील देशों को फंडिंग का एक वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराना, ताकि वे विश्व बैंक और IMF की कठोर शर्तों से बच सकें। लेकिन आज स्थिति यह है कि BRICS NDB न केवल एक वित्तीय संस्था बन चुका है, बल्कि यह पश्चिमी देशों के वित्तीय प्रभुत्व को चुनौती देने की ओर बढ़ रहा है।

सिद्धार्थ प्रकाश: लेकिन क्या यह वास्तव में संभव है? अमेरिका और यूरोप के पास डॉलर की ताकत है, और IMF तथा विश्व बैंक दशकों से वैश्विक वित्तीय व्यवस्था पर नियंत्रण रखते आए हैं। ऐसे में BRICS की रणनीति कितनी प्रभावी हो सकती है?

डॉ. अजय कुमार: बिल्कुल सही सवाल है। सबसे बड़ी चुनौती यही है कि डॉलर आज भी वैश्विक व्यापार की मुख्य मुद्रा है। BRICS ने अपनी स्वतंत्र मुद्रा व्यवस्था विकसित करने का प्रयास किया है, लेकिन अभी तक यह डॉलर के मुकाबले कोई ठोस विकल्प प्रस्तुत नहीं कर पाया है। चीन और रूस इस दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अन्य सदस्य देश अभी इस बदलाव के लिए तैयार नहीं दिखते।

सिद्धार्थ प्रकाश: हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS के खिलाफ एक कड़ा बयान दिया, जिसमें उन्होंने चेतावनी दी कि BRICS अगर अमेरिकी डॉलर को चुनौती देने की कोशिश करेगा, तो उसे गंभीर आर्थिक परिणाम भुगतने होंगे। इस पर आपकी क्या राय है?

डॉ. अजय कुमार: ट्रंप का बयान वैश्विक राजनीति की वास्तविकता को दर्शाता है। अमेरिका यह नहीं चाहता कि कोई भी संस्था या गठबंधन उसके आर्थिक प्रभुत्व को चुनौती दे। BRICS अगर डॉलर को कमजोर करने की कोशिश करेगा, तो अमेरिका और यूरोपीय देश IMF और विश्व बैंक के माध्यम से इन देशों की वित्तीय स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं। अमेरिका अपनी वित्तीय ताकत का उपयोग करके कई देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है, जैसा हमने रूस और ईरान के मामलों में देखा है।

सिद्धार्थ प्रकाश: तो क्या BRICS NDB की दीर्घकालिक सफलता संदिग्ध है?

डॉ. अजय कुमार: देखिए, BRICS NDB का लक्ष्य सही हो सकता है, लेकिन इसकी कार्यप्रणाली अभी भी अस्थिर है। IMF और विश्व बैंक के पास पूंजीगत आधार (CAPEX) कहीं अधिक है और वे उधारी देने में ज्यादा प्रभावी हैं। इसके विपरीत, BRICS के सदस्य देशों की अपनी आर्थिक और राजनीतिक समस्याएँ हैं। चीन का मंदी में जाना, भारत की सरकारी निवेश पर निर्भरता, रूस पर पश्चिमी प्रतिबंध और ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका की आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता—यह सब BRICS की स्थिरता पर सवाल खड़े करते हैं।

सिद्धार्थ प्रकाश: क्या इसका मतलब यह है कि BRICS केवल एक राजनीतिक मंच बनकर रह जाएगा और इसकी आर्थिक ताकत सीमित ही रहेगी?

डॉ. अजय कुमार: हाँ, फिलहाल यही दिखता है। BRICS का गठन आर्थिक सहयोग के लिए हुआ था, लेकिन यह अब भू-राजनीतिक मंच बन चुका है। अगर BRICS वास्तव में एक मजबूत आर्थिक संगठन बनना चाहता है, तो उसे वैश्विक आर्थिक ढांचे में सुधार लाने के लिए अधिक प्रभावी रणनीतियाँ अपनानी होंगी। सिर्फ अमेरिकी डॉलर का विरोध करने से कुछ नहीं होगा।

सिद्धार्थ प्रकाश: तो क्या BRICS के लिए विश्व बैंक और IMF से सहयोग करना बेहतर होगा?

डॉ. अजय कुमार: बिल्कुल! मुझे लगता है कि टकराव से बेहतर होगा कि BRICS NDB, IMF और विश्व बैंक के साथ संवाद स्थापित करे और अपनी शर्तों पर सहयोग के अवसर तलाशे। अगर BRICS सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाए और वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी बढ़ाए, तो इसका प्रभाव अधिक स्थायी और प्रभावशाली होगा।

सिद्धार्थ प्रकाश: बहुत रोचक चर्चा रही, डॉ. अजय। आपने बेहद संतुलित दृष्टिकोण रखा है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

डॉ. अजय कुमार: धन्यवाद, सिद्धार्थ! चर्चा काफी उपयोगी रही। आशा है कि आगे भी ऐसे संवाद होते रहेंगे।

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