सोशल संवाद / नई दिल्ली ( लेखक – सिद्धार्थ प्रकाश) : बॉलीवुड को पीछे छोड़िए, असली ब्लॉकबस्टर तो भारत की सत्ता के गलियारों में देखने को मिली! कतर के अमीर, महामहिम शेख तमीम बिन हमद अल-थानी, एक शाही काफिले के साथ नई दिल्ली पहुंचे। उनके साथ मंत्री, बिजनेस टाइकून और वो तमाम हाथ मिलाने वाले लोग थे, जिनकी संख्या देखकर कोई भी हस्तरेखा विशेषज्ञ अपना पेशा छोड़ दे।
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आधिकारिक मुलाकात – गले मिलना और वादों की बारिश ऊपर से देखने पर, इस यात्रा में व्यापार समझौतों, ऊर्जा सौदों और आपसी प्रशंसा का संगम था। भारत और कतर ने अगले पांच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना कर $28 बिलियन तक ले जाने का संकल्प लिया, क्योंकि जब काजू मिल सकते हैं तो मूंगफली पर क्यों समझौता किया जाए? सबसे बड़ा आकर्षण $78 बिलियन का एलएनजी समझौता रहा, जिससे यह पक्का हो गया कि 2048 तक कतर भारत का प्राकृतिक गैस प्रदायक बना रहेगा। डिप्लोमैटिक भोज में “संबंधों को मजबूत करने” और “क्षेत्रीय सहयोग” की मिठास भी उदारता से घोली गई।
परदे के पीछे – बड़े उद्योगपतियों की गहरी नजरें लेकिन आइए, जरा हकीकत को भी देखें! पीएम मोदी और अमीर के कैमरे के सामने मुस्कुराने के दौरान, कुछ लोगों के कैलकुलेटर यह गिनने में लगे थे कि इस सौदे से किनके खजाने भरने वाले हैं। और यहाँ एंट्री होती है दो सबसे बड़े नामों की – अडानी और अंबानी, जिन्हें भारत की आर्थिक लॉटरी के चैंपियन कहना गलत नहीं होगा।
अडानी की बाजी:
• अडानी टोटल गैस, जो धामरा एलएनजी टर्मिनल संचालित करता है, इस डील से गदगद है। ज्यादा कतर गैस आने का मतलब, भारत के पूर्वी तट पर यह टर्मिनल गैस कारोबार का केंद्र बनने जा रहा है।
• भविष्य में विस्तार? आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया, लेकिन कहीं न कहीं किसी एक्सेल शीट में पूरा प्लान तैयार होगा।
• अडानी के इतिहास को देखें, तो जल्द ही शहरी गैस नेटवर्क और औद्योगिक गैस प्रोजेक्ट्स की बाढ़ आ सकती है।
अंबानी का दांव:
• रिलायंस इंडस्ट्रीज हाइड्रोजन इकोनॉमी की ओर बढ़ रही है, और प्राकृतिक गैस इसमें एक बेहतरीन लॉन्चपैड साबित हो सकता है।
• सस्ती कतर गैस का मतलब है कि रिलायंस की पेट्रोकेमिकल गतिविधियों को एक सोने की चिड़िया मिल गई।
• हाइड्रोजन ट्रकों, गैस-आधारित प्रोजेक्ट्स और कुछ अज्ञात महायोजनाओं की शुरुआत? मुकेश अंबानी कोई सामान्य चाल नहीं चल रहे, वह 4D शतरंज खेल रहे हैं।
छुपे हुए संकेत – जो समझने वाले समझ गए यह यात्रा सिर्फ ऊर्जा और अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं थी। ऊंची आवाज़ में कही गई राजनयिक घोषणाओं के पीछे कई सूक्ष्म संकेत भी छिपे थे। एक छोटा लेकिन धनवान देश कतर, भारत के साथ अपने कूटनीतिक रिश्तों को और गहराई देना चाहता है, खासकर तब, जब मध्य पूर्व में हालात बदल रहे हैं।
रक्षा सहयोग, समुद्री सुरक्षा, और रणनीतिक क्षेत्रों में निवेश? कोई खुलकर नहीं कह रहा, लेकिन आंखों की भाषा सब कुछ बयान कर रही थी।
निष्कर्ष: कौन जीता, कौन मुस्कुराया?
• भारत को सस्ती एलएनजी और एक नया व्यापार लक्ष्य मिला।
• कतर को एक वैश्विक आर्थिक ताकतवर देश के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने का मौका मिला।
• अडानी और अंबानी को एक और गोल्डन पाइपलाइन मिली, जिससे उनके साम्राज्य और सुदृढ़ होंगे।
• और आम भारतीय? वे पेट्रोल और गैस की कीमतों के उतार-चढ़ाव को देखते रहेंगे, यह सोचते हुए कि क्या इन अरबों डॉलर के सौदों का कोई फायदा उन्हें भी मिलेगा।
अंत में, यह कतर यात्रा कूटनीति से ज्यादा ‘डील मेकिंग’ पर केंद्रित रही – एक ऐसा सबक जिसमें पावर प्ले, आर्थिक शतरंज और यह समझने की कला शामिल है कि अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों से असल में फायदा किसे होता है।
बने रहिए, “इंडिया की अरबपति महागाथा” का अगला एपिसोड जल्द ही आने वाला है!