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दिल्ली की सड़कों पर गाय माता की दुर्दशा: नगर निगम, मेयर और पार्षदों की घोर लापरवाही बेनकाब!

By Tamishree Mukherjee

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दिल्ली की सड़कों पर गाय माता की दुर्दशा

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सोशल संवाद / नई दिल्ली ( सिद्धार्थ प्रकाश ): भारत में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। वह हमारी संस्कृति, आस्था और जीवन का अभिन्न हिस्सा मानी जाती है। लेकिन आज, दिल्ली की सड़कों पर वही पूजनीय गाय माता कचरे में प्लास्टिक खाकर तड़प रही हैं, और इंसानों की लापरवाही का शिकार हो रही हैं। गायों के साथ होने वाली सड़क दुर्घटनाएं आम हो गई हैं, लेकिन इसके बावजूद प्रशासन आंख मूंदे बैठा है। तिमारपुर जैसे इलाकों में यह समस्या बेहद गंभीर हो चुकी है, मगर दिल्ली नगर निगम, मेयर, और स्थानीय निगम पार्षदों की निष्क्रियता साफ नजर आती है।

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विफल सफाई व्यवस्था और निगम की उदासीनता

दिल्ली नगर निगम का यह दायित्व है कि वह सड़कों की सफाई और कचरा प्रबंधन की जिम्मेदारी सही से निभाए। लेकिन हकीकत यह है कि सड़कों पर जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे रहते हैं, जिनमें गायें भूख से मजबूर होकर प्लास्टिक, गंदा खाना और जहरीले पदार्थ खा रही हैं। इससे न केवल गायों की जान को खतरा है, बल्कि पूरे क्षेत्र की सफाई व्यवस्था पर भी सवाल खड़े होते हैं। निगम की इस लापरवाही से न केवल धर्म और आस्था का अपमान हो रहा है, बल्कि एक जीवित प्राणी की जिंदगी भी दांव पर लगी है। क्या यह असंवेदनशीलता हमारे समाज पर एक काला धब्बा नहीं है?

सड़कों पर मंडराता बड़ा हादसे का खतरा

सड़क पर घूमने वाली गायें न सिर्फ अपनी जान जोखिम में डाल रही हैं, बल्कि वाहन चालकों के लिए भी खतरा बन रही हैं। आए दिन होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में गायें घायल हो रही हैं या उनकी मौत हो रही है, और कई बार वाहन चालक भी गंभीर रूप से घायल होते हैं। तिमारपुर जैसे व्यस्त इलाकों में ट्रैफिक के बीच गायों का घूमना किसी बड़े हादसे की ओर इशारा करता है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन किसी बड़ी त्रासदी का इंतजार कर रहा है?

निगम पार्षदों की निष्क्रियता और मेयर की चुप्पी

तिमारपुर क्षेत्र की आम आदमी पार्टी की निगम पार्षद प्रमिला गुप्ता ने कई बार सफाई व्यवस्था और गौसंरक्षण की मांग उठाई है, लेकिन इसका प्रभाव ज़मीनी स्तर पर नजर नहीं आता। दूसरी ओर, दिल्ली की मेयर, जिनका कर्तव्य है कि वह इन बुनियादी समस्याओं का समाधान निकालें, वह भी चुप्पी साधे हुए हैं। मेयर की यह उदासीनता और निगम की निष्क्रियता प्रशासनिक असफलता को दर्शाती है। क्या यह शर्मनाक नहीं है कि जिन गायों को हम माता मानते हैं, वे हमारी ही लापरवाही की वजह से दम तोड़ रही हैं?

समाज और प्रशासन की साझा जिम्मेदारी

गायों की रक्षा केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं है, बल्कि यह एक मानवीय जिम्मेदारी भी है। नगर निगम को चाहिए कि वह नियमित सफाई अभियान चलाए, कचरा प्रबंधन को सख्ती से लागू करे, और सड़कों पर भटकने वाली गायों के लिए आश्रय की व्यवस्था करे। स्थानीय पार्षदों को सिर्फ बयानबाजी से ऊपर उठकर ठोस कार्यवाही करनी होगी। साथ ही, नागरिकों को भी आगे आकर प्लास्टिक के उपयोग को कम करना चाहिए, गायों के लिए चारे की व्यवस्था करनी चाहिए, और प्रशासन पर निरंतर दबाव बनाना चाहिए ताकि वे अपनी जिम्मेदारी निभाने को मजबूर हों।

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