सोशल संवाद / नई दिल्ली : हाल ही में जारी सिंधु घाटी वार्षिक रिपोर्ट 2025, जो कि जानी-मानी वेंचर कैपिटल फर्म ब्लूम वेंचर्स द्वारा भारत की आर्थिक परिदृश्य और स्टार्टअप इकोसिस्टम का विश्लेषण करती है, भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहराई से प्रकाश डालती है।
इस रिपोर्ट की सबसे चिंताजनक बात भारत के घरेलू वित्तीय हालात से जुड़ी है।
- भारत की COVID-19 के बाद की आर्थिक पुनर्बहाली (recovery) मुख्य रूप ऋण द्वारा संचालित उपभोग वृद्धि पर आधारित थी। महामारी के बाद के वर्षों में, उपभोक्ता ऋण निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) का लगभग 18% था।
- इस दौरान, व्यक्तिगत ऋण ने उद्योग ऋण की जगह ले ली और यह गैर-कृषि ऋण का सबसे बड़ा हिस्सा बन गया। यह निजी निवेश के स्तर में गिरावट को दर्शाता है।
- इस ऋण वृद्धि का बड़ा कारण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) द्वारा दिए गए छोटे टिकट व्यक्तिगत ऋण (STPL) थे – वर्ष 2024 में जारी किए गए नए व्यक्तिगत ऋणों में से 82% इन्हीं से आए।
- ऋण वृद्धि अब ईंधन की खपत को जारी रखने के बजाय घरेलू ऋण संकट पैदा कर दिया है। सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले घरेलू ऋण लगभग 43% के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है
- घरेलू ऋण बढ़ने के एक नकारात्मक पहलू के रूप में, परिवारों की बचत—विशेष रूप से आर्थिक बचत—घटती जा रही है। वित्त वर्ष 2000 में जहां घरेलू बचत का हिस्सा 84% था, वह वित्त वर्ष 2023 तक घटकर 61% रह गया, जो कि गैर-निवेशित कॉर्पोरेट मुनाफे में वृद्धि को दर्शाता है।निवेश के लिए आवश्यक पूंजी की कमी, पर्याप्त बचत के बिना और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में सुस्ती के चलते, भारत निजी निवेश में भारी मंदी के दौर से गुजर रहा है।
इस गहरे संकट की मूल जड़ वास्तविक मजदूरी में ठहराव है, चाहे वह वेतनभोगी क्षेत्र हो या असंगठित ग्रामीण क्षेत्र। जब तक श्रम उत्पादकता और मजदूरी नहीं बढ़ती, उपभोग में कोई भी वृद्धि अस्थिर ऋण उछाल पर निर्भर रहेगी। यह संकट पहली बार उभरने के दस साल बाद और COVID-19 के पांच साल बाद भी सरकार इसे स्वीकार करने से इनकार कर रही है।
यह रिपोर्ट विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करती है, और यह बयान केवल घरेलू ऋण संकट पर केंद्रित है। आगे और बयान जारी किए जाएंगे।