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विधेयक संख्या 24 (2025) का आलोचनात्मक विश्लेषण – नागरिकों की निजता और अधिकारों पर संकट : “राइट टू अर्न, प्राइवेसी और फ्रीडम ऑफ स्पीच पर हमला

By Tamishree Mukherjee

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विधेयक संख्या 24 (2025) का आलोचनात्मक विश्लेषण

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सोशल संवाद / डेस्क ( सिद्धार्थ प्रकाश ) : ‘राइट टू अर्न, राइट ऑफ प्राइवेसी और राइट ऑफ स्पीच’ पहले से ही खतरे में हैं, और अंततः यह विधेयक भारत को पूर्णत: निरंकुश शासन के अधीन कर देगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत आयकर विधेयक, 2025, भारत के छह दशक पुराने आयकर कानून को एक अधिक सुव्यवस्थित ढांचे से बदलने का प्रयास करता है। फिलहाल, यह विधेयक संसद में प्रस्तुत किया जा चुका है और आगे की विधायी कार्रवाई लंबित रहते हुए इसे एक चयन समिति द्वारा समीक्षा के लिए भेजा गया है।

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आयकर विधेयक, 2025 सरकार को वित्तीय लेन-देन, व्यक्तिगत डेटा और डिजिटल गतिविधियों पर व्यापक अधिकार देता है। यह विधेयक टैक्स अनुपालन को सुगम बनाने का दावा करता है, लेकिन इसमें ऐसे प्रावधान शामिल हैं जो नागरिकों की निजता का उल्लंघन करते हैं और सरकार की निगरानी को बढ़ाते हैं।

अतिक्रमणकारी तलाशी और जब्ती प्रावधान

इस विधेयक का सबसे चिंताजनक पहलू कर अधिकारियों को दी गई विस्तृत तलाशी और जब्ती की शक्तियाँ हैं:

• निजी संपत्तियों तक अनियंत्रित पहुंच: कर अधिकारी किसी भी भवन, वाहन, विमान, या डिजिटल स्पेस में बिना पूर्व सूचना के प्रवेश कर सकते हैं यदि उन्हें छिपी हुई वित्तीय जानकारी का संदेह हो।

• सुरक्षित डेटा तक पहुँच: अधिकारी पासवर्ड और सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर कंप्यूटर और डिजिटल भंडारण तक पहुंच सकते हैं।

• व्यक्तिगत तलाशी: यदि किसी व्यक्ति पर वित्तीय जानकारी छुपाने का संदेह हो तो उसकी व्यक्तिगत तलाशी ली जा सकती है।

• निजी संपत्तियों की जब्ती: अदालत के आदेश के बिना ही वित्तीय दस्तावेज, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, और निजी सामान जब्त किए जा सकते हैं।

• संपत्ति कुर्की: कर विभाग बिना किसी ठोस प्रमाण के अस्थायी रूप से किसी भी संपत्ति को जब्त कर सकता है।

यह क्यों खतरनाक है?

• बिना वारंट छापेमारी नागरिकों के कानूनी संरक्षण को समाप्त कर देती है।

• निर्दोषता सिद्ध करने का दायित्व नागरिकों पर डाल दिया जाता है।

वित्तीय लेन-देन पर बड़े पैमाने पर निगरानी

विधेयक सभी वित्तीय गतिविधियों पर सरकारी नियंत्रण को बढ़ाता है:

• इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन अनिवार्य: ₹10,000 से अधिक की नकद राशि को आय माना जाएगा यदि वह डिजिटल रूप में नहीं है।

• नकद भुगतान को कानूनी मान्यता नहीं: बैंक या डिजिटल माध्यम से किया गया भुगतान ही वैध माना जाएगा।

• व्यापारियों को सरकारी-स्वीकृत भुगतान ट्रैकिंग सिस्टम स्थापित करना अनिवार्य होगा।

• बड़े लेन-देन पर सीमा: ₹2 लाख से अधिक के भुगतान को इलेक्ट्रॉनिक रूप से करना अनिवार्य होगा।

यह क्यों खतरनाक है?

• सरकार वित्तीय गतिविधियों की पूर्ण निगरानी कर सकती है।

• नकद लेन-देन को अपराधीकरण से छोटे व्यापारी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।

• नागरिकों को बैंकों और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर निर्भर बनाकर राज्य की निगरानी को मजबूत किया जाएगा।

हर लेन-देन को आधार और पैन से जोड़ना

यह विधेयक सभी वित्तीय और आधिकारिक गतिविधियों को आधार और पैन से जोड़ने को अनिवार्य बनाता है।

• बिना आधार या पैन के वित्तीय लेन-देन पर दंड लगेगा।

• इन दस्तावेजों को प्रस्तुत न करने पर स्वचालित दंड और ब्लैकलिस्टिंग संभव होगी।

यह क्यों खतरनाक है?

• अनिवार्य बायोमेट्रिक ट्रैकिंग से व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रभावित होगी।

• पहचान की चोरी और डेटा लीक का खतरा बढ़ेगा।

• नागरिकों के वित्तीय अधिकारों पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण होगा।

‘फेसलेस असेसमेंट’: कोई मानव उत्तरदायित्व नहीं

विधेयक टैक्स विवादों को एआई-आधारित निर्णय प्रणाली के माध्यम से हल करने का प्रस्ताव रखता है:

• अपील और कर विवादों को डिजिटल रूप से निपटाया जाएगा, जिसमें सीधे बातचीत की कोई सुविधा नहीं होगी।

• स्वचालित प्रणाली ‘संदिग्ध’ गतिविधियों की पहचान कर दंड लागू कर सकती है।

• एआई द्वारा की गई त्रुटियों को अदालत में चुनौती देने का कोई प्रावधान नहीं है।

यह क्यों खतरनाक है?

• निर्णयों में गलतियों की संभावना बढ़ेगी।

• मानव उत्तरदायित्व की कमी से नौकरशाही तानाशाही जन्म ले सकती है।

• नागरिक अनुचित एआई-निर्णयों को चुनौती नहीं दे पाएंगे।

कठोर दंड और अपील की अनुपस्थिति

विधेयक कर उल्लंघन के लिए कठोर दंड प्रस्तुत करता है:

• विलंब से कर रिटर्न दाखिल करने पर प्रति अवसर ₹10,000 का स्वतः दंड लगेगा।

• निर्दोष गलतियों पर भी खाते फ्रीज किए जा सकते हैं और कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

• एक निश्चित सीमा के बाद दंड के विरुद्ध अपील की अनुमति नहीं होगी।

यह क्यों खतरनाक है?

• ईमानदार करदाताओं को उत्पीड़न का शिकार बनाया जा सकता है।

• कई मामलों में दंड के विरुद्ध अपील करने का कोई विकल्प नहीं होगा।

• छोटे व्यवसायों के लिए आर्थिक दिवालियापन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

सरकार किसी भी डेटा तक पहुंच सकती है

विधेयक सरकार को बिना अनुमति किसी भी व्यक्ति या व्यापार के वित्तीय डेटा तक पहुंचने का अधिकार देता है:

• बैंकिंग रिकॉर्ड, कॉल लॉग, और डिजिटल लेन-देन तक सरकारी पहुंच संभव होगी।

• व्यक्तिगत वित्तीय इतिहास को देखने के लिए अदालत के आदेश की आवश्यकता नहीं होगी।

• नागरिकों को सूचित किए बिना उनके डेटा का उपयोग किया जा सकता है।

यह क्यों खतरनाक है?

• व्यापक सरकारी निगरानी और व्यक्तिगत वित्तीय स्वतंत्रता पर नियंत्रण।

• वित्तीय गोपनीयता का हनन और सत्ता के दुरुपयोग की संभावना।

• भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा दुरुपयोग की संभावना।

निष्कर्ष

विधेयक संख्या 24 (2025) वित्तीय स्वतंत्रता और निजता पर गंभीर प्रहार है। यह सरकार को असीमित निगरानी की शक्ति देता है, नकद लेन-देन को अपराध घोषित करता है, कठोर दंड लागू करता है।

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