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जब एक कार्टून से सरकार कांप उठे, तो समझ लो लोकतंत्र खतरे में है!  मद्रास हाई कोर्ट ने सरकार की अकड़ उतारी  -लोकतंत्र बचाने के लिए जज को सरकार से लड़ना पड़ा – शर्मनाक!

By Tamishree Mukherjee

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लोकतंत्र बचाने के लिए जज को सरकार से लड़ना पड़ा – शर्मनाक!

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सोशल संवाद / डेस्क ( सिद्धार्थ प्रकाश ) : कार्टून एक दृश्य कला का रूप है, जिसमें चित्रों के माध्यम से हास्य, व्यंग्य या सामाजिक टिप्पणी प्रस्तुत की जाती है। यह अख़बारों, पत्रिकाओं, डिजिटल मीडिया और एनिमेशन में देखने को मिलता है। कार्टून वास्तविक घटनाओं, काल्पनिक स्थितियों या प्रतीकात्मक चित्रों के रूप में हो सकते हैं, जो सोचने पर मजबूर करते हैं, मनोरंजन करते हैं या समाज की विसंगतियों पर कटाक्ष करते हैं। आधुनिक युग में, कार्टून राजनीतिक विमर्श, पत्रकारिता और मनोरंजन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं, जो जटिल मुद्दों को सरल और प्रभावशाली तरीके से दर्शाते हैं।

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यह फैसला भारतीय लोकतंत्र के चेहरे पर करारा तमाचा है। मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस भारत चक्रवर्ती ने सरकार के उस बेशर्म फैसले को ध्वस्त कर दिया, जिसमें एक पत्रिका पर सिर्फ इसलिए बैन लगाया गया था क्योंकि उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक विवादित कार्टून छपा था। यह निर्णय सिर्फ एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संदेश है—अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलने की किसी भी सरकारी साजिश को न्यायपालिका बर्दाश्त नहीं करेगी।

सरकार ने इस कार्टून को ‘लोक व्यवस्था के लिए खतरा’ बताकर प्रतिबंध लगाया, मानो प्रधानमंत्री की आलोचना करना देशद्रोह हो। लेकिन जस्टिस चक्रवर्ती ने इस बेहूदा तर्क को सिरे से खारिज कर दिया और लोकतंत्र का असली मतलब याद दिलाया—सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग आलोचना से परे नहीं होते। अगर किसी सरकार को एक कार्टून से डर लगता है, तो इससे ज़्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता।

इस न्यायिक झटके से सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति खुलकर सामने आ गई है। अब सवाल यह उठता है—क्या सरकार इतनी असहिष्णु हो चुकी है कि अदालत के फैसले भी उसे बर्दाश्त नहीं? प्रेस की आज़ादी को कुचलने की इस घटिया कोशिश को न केवल अदालत ने रौंद दिया, बल्कि पूरे देश को याद दिला दिया कि संविधान की रक्षा करने का असली जिम्मा न्यायपालिका का है, न कि सत्ताधारियों का।

जस्टिस चक्रवर्ती का यह फैसला पूरे न्यायिक तंत्र के लिए एक चेतावनी है—अगर लोकतंत्र को बचाना है, तो दबाव में झुकने वाले जजों को इस फैसले से सीख लेनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के जज भी ध्यान दें कि सच्चा न्याय क्या होता है। अगर निचली अदालतों के जज संविधान की रक्षा करने का साहस रखते हैं, तो उच्च न्यायालयों के लिए यह शर्म की बात होगी कि वे सत्ता के इशारों पर काम करें। न्यायपालिका की स्वतंत्रता कोई एहसान नहीं, यह लोकतंत्र की सांस है—और इसे रोकने की हर कोशिश को कुचलना ही न्याय की सच्ची जीत होगी।

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