सोशल संवाद / नई दिल्ली (सिद्धार्थ प्रकाश ) : मुंबई की धारावी, एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्तियों में से एक, जहाँ लाखों लोग कड़ी मेहनत कर सालाना 1 अरब डॉलर से अधिक का आर्थिक योगदान देते हैं, अब एक नए ‘कारोबारी खेल’ की शिकार बन चुकी है। और इस बार भी बाज़ी मार ले गए गौतम अदानी, सरकार की खुली मिलीभगत के साथ!
₹7,200 करोड़ से ₹5,069 करोड़: अदानी को सस्ते में बड़ा सौदा!
धारावी पुनर्विकास परियोजना पर 1997 से चर्चा हो रही थी, लेकिन 2018 में यूएई की सेकलिंक टेक्नोलॉजीज कॉर्पोरेशन (STC) ने सबसे ऊंची बोली ₹7,200 करोड़ लगाकर इसे जीत लिया। लेकिन सरकार ने 2020 में अचानक इस टेंडर को रद्द कर दिया, बहाना बनाया गया कि 45 एकड़ रेलवे भूमि जोड़ दी गई है।
2022 में फिर से बोली लगाई गई और इस बार अदानी प्रॉपर्टीज़ को यह प्रोजेक्ट केवल ₹5,069 करोड़ में मिल गया! अरे, STC की पेशकश ₹2,000 करोड़ ज़्यादा थी, फिर भी सरकार ने इसे ठुकरा दिया? लगता है, सरकारी नियमों में एक नया नियम जुड़ गया है—“ऊंची बोली लगाओ, फिर भी अदानी जीतो!”
कानूनी लड़ाई या बस दिखावा?
STC ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी, लेकिन दिसंबर 2024 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। STC ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने 7 मार्च 2025 को महाराष्ट्र सरकार और अदानी प्रॉपर्टीज़ से जवाब मांगा। इतना ही नहीं, STC ने तो 20% अधिक बोली लगाकर परियोजना को फिर से हासिल करने की पेशकश भी की, लेकिन सरकार और अदानी की जोड़ी के लिए यह मायने नहीं रखता।
सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि तत्काल कोई रोक नहीं लगाई, लेकिन अगली सुनवाई 25 मई 2025 के लिए निर्धारित कर दी। उधर अदानी प्रॉपर्टीज़ ने 2,000 मज़दूरों को काम पर लगा दिया और निर्माण कार्य ज़ोर-शोर से शुरू कर दिया! अरे भई, जब सरकार ही समर्थन कर रही हो, तो अदालत के फैसले का इंतज़ार क्यों करना?
सरकार से 5 बड़े सवाल
जब ₹7,200 करोड़ की ऊंची बोली थी, तो इसे ठुकराकर ₹5,069 करोड़ की बोली को क्यों चुना गया?
2018 का टेंडर अचानक क्यों रद्द किया गया?
STC द्वारा 20% अधिक बोली लगाने की पेशकश के बावजूद अदानी को ही क्यों फायदा दिया गया?
सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने के बावजूद अदानी को निर्माण कार्य शुरू करने की अनुमति कैसे मिली?
क्या इस पुनर्विकास से धारावी के असली निवासियों को फायदा मिलेगा या उन्हें शहर से बाहर खदेड़ दिया जाएगा?
निष्कर्ष: सरकार और अदानी की जुगलबंदी का नया अध्याय
सिद्धांत रूप से, धारावी पुनर्विकास परियोजना झुग्गीवासियों की ज़िंदगी सुधारने के लिए होनी चाहिए थी। लेकिन अब यह सरकार और कॉरपोरेट की दोस्ती का नया उदाहरण बन चुकी है।
एयरपोर्ट हो, बंदरगाह हो, कोयला हो या अब धारावी—हर सरकारी सौदे में अदानी का नाम कैसे आ जाता है? क्या सुप्रीम कोर्ट इस सौदे को रोकने की हिम्मत दिखाएगा, या फिर यह भी केवल औपचारिकता बनकर रह जाएगा? अभी 25 मई की सुनवाई बाकी है, लेकिन लगता है कि धारावी का भविष्य पहले ही तय हो चुका है—झुग्गीवासियों के नहीं, बल्कि बड़े बिल्डरों और अमीर निवेशकों के लिए!
बने रहिए हमारे साथ, अगली लूट की कहानी जल्द ही!