सोशल संवाद/डेस्क : हाल ही में मशहूर मेकअप आर्टिस्ट आरुषि ओसवाल ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर की। इसमें उन्होंने बताया कि इयरबड्स के लगातार 8 घंटे इस्तेमाल के बाद उनकी एक कान की सुनने की क्षमता 45% तक कम हो गई। उन्होंने एक यात्रा के दौरान पूरे दिन इयरबड्स कान में लगाए रखे थे। अगली सुबह उन्हें सुनने में परेशानी महसूस हुई। इसके बाद डॉक्टर से संपर्क किया। डॉक्टर ने बताया कि यह ‘सडन सेंसोरीन्यूरल हियरिंग लॉस’ (SSHL) का है। यह ऐसी स्थिति है, जिसमें अचानक सुनने की क्षमता कम हो जाती है और इलाज में देर होने पर यह स्थायी भी हो सकती है।
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आरुषि ने अपनी पोस्ट के जरिए यह अपील की कि लोग ईयरबड्स या हेडफोन का जरूरत से ज्यादा और लगातार इस्तेमाल न करें क्योंकि सुनने की क्षमता एक बार चली जाए तो वापस आना मुश्किल है।
तो चलिए बात करेंगे कि इयरबड्स से सुनने की क्षमता कैसे प्रभावित हो सकती है? साथ ही जानेंगे कि-
- सडन सेंसरिन्यूरल हेयरिंग लॉस (SSHL) क्या है?
- इयरबड्स का सेफ इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं?
एक्सपर्ट: डॉ. रोहित सक्सेना, हेड ऑफ डिपार्टमेंट, ENT, हेड एंड नेक सर्जरी, शारदा हॉस्पिटल, नोएडा
सवाल- क्या इन-इयर डिवाइसेज सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकते हैं?
जवाब- इन-इयर डिवाइस आवाज को सीधे कान के अंदर भेजते हैं। अगर तेज आवाज में और लंबे समय तक इन्हें इस्तेमाल किया जाए तो इससे सुनने की क्षमता टेम्परेरी या परमानेंट कम हो सकती है। दरअसल रोजाना 85 डेसीबल (dB) से ज्यादा तेज आवाज लंबे समय तक सुनने से कान के अंदर मौजूद नाजुक ‘हेयर सेल्स’ (बाल जैसी कोशिकाएं) खराब हो सकती हैं। यही सेल्स आवाज का दिमाग तक सिंग्नल पहुंचाने का काम करती हैं। एक बार ये खराब हो जाएं तो दोबारा नहीं बनती हैं। इस वजह से लगातार तेज आवाज में सुनने की आदत से स्थायी सुनने की हानि हो सकती है, जिसे मेडिकल भाषा में सेंसरिन्यूरल हियरिंग लॉस (SHL) कहा जाता है।
सवाल- लंबे समय तक इयरबड्स या हेडफोन का इस्तेमाल करना क्यों खतरनाक है?
जवाब- नोएडा के शारदा हॉस्पिटल के ENT, हेड एंड नेक सर्जरी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. रोहित सक्सेना बताते हैं कि इयरबड्स जैसी डिवाइस 100 डेसिबल तक की आवाज निकाल सकती हैं, जो मोटरसाइकिल या कार हॉर्न जितनी तेज होती है। जबकि सामान्य बातचीत सिर्फ 60 डेसिबल के करीब होती है।सिर्फ 50 मिनट तक 95 डेसिबल की आवाज (मोटरसाइकिल का शोर) भी सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है। 100 डेसिबल की आवाज (पास से गुजरती ट्रेन या कार हॉर्न) सिर्फ 15 मिनट में असर डाल सकती है।
मायो क्लिनिक के अनुसार, 12 से 35 साल के करीब 24% लोग बहुत तेज म्यूजिक सुनते हैं, जिससे हियरिंग लॉस का खतरा बढ़ जाता है।