सोशल संवाद/डेस्क : मजदुरों का पक्ष रखते हुए अखिलेश श्रीवास्तव ने जमीन के विवाद पर अदालत को बताया की 350 एकड जमीन टाटा स्टील को सरकारी अनुदान के रूप में 1969 में बिहार सरकार से मिली। बिहार सरकार ने उन जमीनों को उस क्षेत्र में हजारों वर्षों से रहने वाले पांच गावों के आदिवासियों को विस्थापित कर उन जमीनों को हासिल किया।
टाटा स्टील को उक्त सरकारी अनुदान के अनुसार एक वर्ष के अंदर फैक्ट्री बनानी थी और विस्थापित हुए आदिवासियों के लिए रोजगार सृजित करना था जो टाटा स्टील ने नहीं किया। 1969 से उक्त 350 एकड़ जमीन टायो रोल्स लिमिटेड कंपनी की है जिसने फैक्ट्री लगायी और लोगों को रोजगार दिया। टायलेट रोल्स 1969 में बनी है और 1972 में आयडा अस्तित्व में आया और 350 एकड जमीन जो कि 1895 के सरकारी अनुदान कानून के अनुसार टाटा स्टील को मिली थी जो टायो रोल्स की हो चुकी थी को आयडा को दूसरे सरकारी अनुदान के अनुसार स्थानांतरित किया गया और इस प्रकारटाटा स्टील का उस पर कोई दावा बाकी नहीं रहा।
उस 350 एकड जमीन में टाटा योडोगावा नाम की कंपनी बनी यानी इस जमीन में जो कंपनी बनी उसे नियमतः इस भूमि का एलाॅटमेंट सरकारी अनुदान कानून के तहत हो गया और टाटा योडोगावा 350 एकड़ जमीन की मालिक बन गयी। उन्होंने बताया कि 1969 से अव तक टायो रोल्स लिमिटेड अस्तित्व में है और कानूनी रुप से इस जमीन के सारे अधिकार टायो को ही है इसलिए इस कंपनी का इस 350 एकड़ जमीन पर पुनरुद्धार कानूनी तौर पर बिल्कुल सही है।
उन्होंने आगे बताया कि रिजोल्यूशन प्रोफेशनल ने टाटा स्टील को फायदा पहुंचाने के लिए फर्जीवाड़ा कर महज 50 एकड़ जमीन पर एक्सप्रेशन ऑफ इन्ट्रेस्ट जारी किया और झारखण्ड बिजली वितरण निगम लिमिटेड ने फर्जीवाड़ा कर सिर्फ 50 एकड़ जमीन पर रिजोल्यूशन प्लान दाखिल किया है और 50 एकड़ पर इंडस्ट्रियल पार्क बनाने की योजना दी है जो पुनरुद्धार की योजना नहीं है इसलिए टाटा 350 एकड़ जमीन पर दावा और रिजोल्यूशन प्लान दोनों को खारिज किया जाना चाहिए।